anuradha chauhan

Drama

2.4  

anuradha chauhan

Drama

चाँदी का छल्ला

चाँदी का छल्ला

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सुबह अँधेरे से काम में लगी बहू तैयार होकर पाठशाला के लिए निकली।

बसंती का बड़बड़ाना शुरू हो गया।सगरो काज हमारे ऊपर छोड़, महारानी मैडम बनन चल दी!

गाय को रंभाते सुन बसंती बाहर आई।अब तोये का चाही ?सुबहा से सोई थी का ?गाय को दानापानी देते हुए,हम सब जानत हैं!

बहुरिया को तकलीफ़ न हो सबई लोग चुप्पी साधे रहते हैं!

कौन से बतरा रही हो बिरजू का महतारी ?तनिक कछु चाय-पानी की व्यवस्था है कि नाही ? रामदीन बोले।

लावत है!हमई तोहार सबको कर्जा खाई बैठी हूँ!चाकरी तो करने ही पड़े ?

तो तू का चाहे ? जैइसन तू और तोहरे बच्चा हमाई छोटी सी पगार में मन मारकर गुजारा करत रहे ? बिरजू और उसके बच्चे भी वैसे ही जिएं ?

अरे बसंती चूल्हे-चौकें से बाहर निकल के दुनिया देख! मंहगाई कमर तोड़े है, अकेले आदमी के बस की बात नहीं रह गई!

पढ़ी-लिखी बहुरिया है! दोनों मिलकर साथ चलेंगे तो मुश्किलें दूर होगी!

और हमरा का,हम सारी ज़िंदगी तुम सब की चाकरी करवे के लिए हैं का ?

अरे अम्मा!तू तो मालकिन है चाकरी काहे करो ?तू तो हम सबको पैसा लेकर अपनी तिजोरी भरियो और कमरिया में चाँदी के छल्ले में चाबी लटकाइओ !

बिरजू की बात सुनकर हँस पड़ी बसंती और बसंती को हँसते देख रामदीन और बिरजू हँस पड़े।


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