चाह
चाह


कविता आज बहुत उदास है,किसी भी काम में मन नहीं लग रहा है, चाय छान कर रखी रखी ठंडी हो चुकी है,बेटी स्कूल जा चुकी है और कल्पेश् भी ऑफिस जा चुके हैं।रोज उनके जाने के बाद चाय पीकर घर के कामों में जुटती है।
आज खोई खोई सी है,मन ज्यादा दुःखी हुआ तो चाय गरम करके कप लेकर बालकनी में आ गई ।कई बार ऐसा ही होता है जब वह उदास होती है यही चाय और बालकनी ही उसका सहारा बनी है,चाय का घूँट भरकर वह तरोताजा हो उठती है।
यही सोचते हुए जैसे ही उसने चाय पीनी शुरू की उसे उबकाई आई।मुँह पर हाथ रखकर वह वासबेसिन की ओर दौड़ पड़ी।अंदर जो भी था सब बाहर आ जाने के बाद उसे कुछ बेहतर
महसूस हुआ।
तभी फोन की घंटी बजने लगी अब वह फोन उठाने गई। कल्पेश का फोन था,अभी आ रहे है तैयार होकर रहने के लिए कहा है। उसकी उदासी बढ़ गई।बेमन से उठ कर पहले नहाने के लिए गई।फिर साड़ी पहनने के बाद बाल संवारे और थोड़ी लिपस्टिक और काजल लगाकर तैयार हो कर कल्पेश का इंतजार करने लगी।
गाड़ी में भी वह चुप रही।गाड़ी अपने गंतव्य तक पहुंच गई।दस मिनट के बाद दोनों डाक्टर के सामने बैठे थे,बातचीत पहले से ही हो चुकी थी ।बेटी के स्कूल से वापस आने से काफी पहले ही दोनों घर आ गए।कविता निढाल होकर बिस्तर में ढह सी गई।आंखों के कोर गीले हो रहे हैं ।अंदर का तूफान आंखों के रास्ते से बाहर आ रहा था। ये पाँचवी दफ़ा है जब कविता उस घिनौने प्रक्रिया से गुजरी है ।
उसे पुरानी बातें याद आ रही हैं,शादी का होना और उसका माँ बनना जल्दी ही हो गया।कुछ साल बेटी को बड़ा करने में लग गए।धीरे-धीरे दूसरे बच्चे के लिए परिवार की ओर से दबाव बनाया जाने लगा, दूसरी बार वह उम्मीद से हुई तो अम्मा जी ने कहा कि जाँच करा लो इस बार मुझे पोता ही चाहिए, और ये सिलसिला चल निकला ।
अगली बार फिर से यही हुआ फिर तीसरी बार भी और चौथी बार भी,और आज पाँचवी बार भी यही हुआ है।पति और परिवार के साथ वह खुद भी एक बेटे की माँ बनना चाहती है शायद इसलिए वह इस सब में शामिल हो जाती है, वरना पढ़ी-लिखी होकर भी वह ये अनपढ़ वाला काम कतई नहीं करती।
अब वह अगले बार का इंतजार करने लगी ।
(कन्या भ्रूण हत्या महापाप है लेकिन कुछ लोगों में बेटे की चाहत इतनी ज्यादा होती है कि बार बार ये पाप दोहराते रहते हैं ।भगवान ऐसे लोगों को सद् बुद्धि दे।उनकी ये रूढ़ीवादी सोच बदले यही उम्मीद करती हूँ।)