बुढ़ापे की लाठी कौन ?
बुढ़ापे की लाठी कौन ?
विनीत ऑफिस से आ कर अपनी फाइलों में खोया हुआ था और माधवी अपने मोबाइल में....तभी लता उनकी बरसो पुरानी मैड, उनके लिए चाय और कटलेट लेकर आई। माधवी ने उसे प्रशंशा भरी निगाह से देखते हुए कहा "लता तुम नहीं होती तो पता नहीं क्या होता! ऑफिस से थके हुए आकर चाय पीने के लिए भी खुद ही मेहनत करनी पड़ती।"
लता ने कहा "अरे बहुरानी कैसी बाते करती हो। मैं तो यहाँ तब से हूँ जब मैं सिर्फ सत्रह बरस की थी और वीनू भाई सिर्फ पांच साल का था। बाढ़ में आई तबाही से मेरा घर-बार मेरा परिवार सब भगवान छीन लिया...अभी लता अपनी बात पूरी बोल पाती इतने में विनीत की मम्मी शालिनी जी के खांसने कि आवाज़ सुन लता विनीत से बोली "वीनू भाई मां जी की दवाइयां ख़त्म होने वाली हैं| ले आये क्या तुम ? कल मैंने तुम्हें परचा दिया था"| विनीत ने चिल्लाते हुए कहा "तुम्हें दिख नहीं रहा, मैं ज़रूरी काम कर रहा हूँ। बीच में ही शोर मचा दिया|" माधवी ने भी विनीत की तरफ़दारी करते हुए कहा "हाँ लता मम्मी का तो रोज़ का ही ये सब लगा रहता है। हम दोनों अपना सारा काम-काज छोड़ उनकी सेवा के लिए तो नहीं बैठ सकते। रोज़-रोज़ की उनकी बीमारियों से मैं तंग आ चुकी हूँ।"
लता ने सकपकाते हुए कहा "भाई को दवा पर थोड़ी छूट मिल जाती है। मैंने तो इसलिए इन्हें लाने को बोला था...नहीं तो मैं ही ले आती।" कहते हुए रोती हुई सी लता उनके कमरे के बाहर आ गयी और सीधा शालिनी जी के कमरे में जा कर उन्हें पानी दिया और उनकी कमर सहलाने लगी। शालिनी जी ने अपने आंसू अंदर ही अंदर पीते हुए लता से कहा "पगली है तू मेरा कोई भी काम उन दोनों को मत बोला कर। अपने बुढ़ापे के लिए अभी भी रुपया है, मेरे पास। मेरी दवाई तू ही लाया कर चाहे जितने की भी आये।" लता ने उनके गले लगते हुए कहा "मुझ अनाथ पर तरस खा कर आप अपने साथ मुझे अपने घर ले आयी थी।
आपने तो कितनी बार मुझसे मेरी शादी के लिए कहा पर मांजी मैंने भी तो अपनी दुनिया इसी घर को समझा है और आप तो माँ-बाप से भी बड़ कर हो मेरे लिए। आपकी तकलीफ़ नहीं देखी जाती मां जी। "अच्छा चुपकर अब मुझे भी रुलायेगी क्या"? इससे पहले कि मेरी वजह से तुझे दुबारा डांट पड़े, पूछ ले माधवी से खाने में क्या बनेगा और खाने की तैयारी कर ले।" लता ने उठते हुए कहा "बहुरानी तो कुछ तला-पला ही बोलेगी बनाने को, वो आपको तो नुक्सान करेगा। आपके लिए थोड़ी सी तौरई की सब्ज़ी बना शालिनी जी ने उसे प्यार भरी डांट लगाते हुए कहा "हर समय मेरी चिंता में लगी रहती है...पगली तेरी तो इस घर में मुझसे ज़्यादा कद्र है। ज़्यादतर अपना सब कुछ विनीत के नाम कर के....मैं तो इस घर की एक ऐसे अनचाही वस्तु की तरह हूँ जो न तो फैंकते बनती है और घर में रखी हुई भी चुभती है।" लता का दिल शालिनी जी की इस बात से बहुत अंदर तक टूट गया था।
वह बिना कुछ बोले माधवी के कमरे की तरफ जा रही थी....तभी विनीत और माधवी की लड़ाई की आवाज़ों से उसके कदम वही रुक गए। उसके कानों ने जो सुना उसे उस पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। माधवी विनीत से अपनी सास को अभी तक ओल्ड एज होम ना भेजने के लिए लड़ रही थी। विनीत उसे कह रहा था "थोड़ा सब्र तो रखो, चार पांच जगह पता लगाया है। एकदम ऐसे कहीं पर भी तो छोड़ कर आ नहीं जाऊँगा....आखिर है तो वो मेरी माँ।" लता को तो लग रहा था जैसे उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। इतने में माधवी वहाँ पैर पटकती हुई आयी और लता पर गुस्सा करते हुए बोली "तू यहाँ खड़ी- खड़ी हमारी बातें सुन रही थी....अब तो मेरा इस घर में रहना ही मुश्किल है"| लता ने बात को संभालते हुए कहा "बहुरानी मैं तो आपके कमरे की तरफ खाने में क्या बनेगा पूछने के लिए आ रही थी।" माधवी भी सब समझती थी पर लता को नाराज़ करके उसका काम नहीं चल सकता था इसलिए जल्दी से उसे सब बता कर बाहर बालकनी में चली गयी। लता फटाफट खाना तैयार करने में जुट गयी। खाना बनते ही वो शालिनी जी के लिए खाना लगाकर अभी रसोई से बाहर ही निकल रही थी तभी माधवी ने उसे बीच में टोकते हुए कहा "तुम्हें कितनी बार मना किया है की आजकल तौरई बहुत महंगी है, मत लाया करो....समझ नहीं आता तुम्हें? एक दिन मम्मी भी मलाई- कोफ्ता खा लेती तो कुछ हो नहीं जाता उन्हें।"
कहते हैं न कभी न कभी तो सबकी सहनशक्ति जवाब दे देती है...आज कुछ ऐसा ही लता के साथ भी हुआ। लता की आँखें, नाक-कान सब लाल हो गए। उसने चिल्लाते हुए कहा "बस करो माधवी भाभी...बस करो।" विनीत को पालने- पोसने में मां जी ने दिन-रात कैसे एक किया है वो मैं जानती हूँ। बाबूजी तो ज़्यादातर शहर से बाहर ही रहते थे। विनीत की बहनकाजल को हमेशा मां जी छेड़ते हुए कहती थी "तू तो पराये घर चली जायेगी पर मेरी बहु, बेटी बन कर आ जायेगी" पर भगवान ने शायद उनकी किस्मत में बेटी का सुख लिखा ही नहीं था।
काजल की एक्सीडेंट से मौत होने के बाद भी माँ जी सब से यही कहती रही "भगवन ने एक बेटी छीन ली पर विनीत की बहू के रूप में मेरी काजल वापिस आयेगी पर वो क्या जानती थी, बेटी तो बहुत दूर की बात उनकी बहू..बहू भी नहीं बन पायेगी"....तभी विनीत वहां पर गुस्से में भरा हुआ आया और लता के मुंह पर एक चांटा मारता हुआ बोला "नौकरानी है...नौकरानी बन के रह, अपनी भाभी से माफ़ी मांग।" शालिनी जी जो इतनी देर से मौन धारण कर के बैठी-बैठी अपने कमरे से सब सुन रही थी, लड़खड़ाती हुई वहां आयी और लता को गले लगाती हुई बोली "पगली, भगवान ने तो मुझे पहले से ही बेटी दे रखी थी। मैं ही नहीं पहचान पायी। चल जा कर अपना और मेरा सामान पैक कर। विनीत के पापा को पता नहीं मेरी कितनी चिंता थी, उन्होंने मेरे लिए एक और फ्लैट लेकर रख दिया था। अब हम दोनों वहीँ चल कर रहेंगे। मैं बेकार में ही यहाँ बेटे-बहू के मोह में फंसी रही" कह कर लता का हाथ पकड़ शालिनी जी अपने कमरे की तरफ चल दीं।