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Amit Soni

Drama

4  

Amit Soni

Drama

बुद्धि

बुद्धि

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राकेश को अपनी बुद्धिमानी और अपने भाग्य पर बड़ा अभिमान था। मोहल्ले में उससे ज्यादा पढ़ा-लिखा कोई नहीं था, इसलिए लोगों के सामने अपनी हेकड़ी दिखाने का कोई मौका वो छोड़ता ना था। मोहल्ले के सबसे धनी परिवार का होने का अभिमान तो उसे था ही, तिस पर उसकी सरकारी नौकरी भी लग गयी थी। शादी भी अच्छे घर में हो गयी थी और दो बेटे भी हो गए। बस, जब कभी भी उसे चार लोगों के सामने बोलने का मौका मिलता, वो स्वयं को श्रेष्ठ और बाकियों को अपने से कमतर जरूर बताता। सबको उसकी ये आदत बुरी लगती थी, पर कोई उससे कुछ नहीं कहता था। सब हंसी में टाल जाते थे।


रविवार का दिन था। राकेश के घर कुछ पड़ोसी बैठे हुए थे। सब चाय पी रहे थे। राकेश सबको बड़ा मगन होकर बता रहा था कि उसके दोनों बेटे मोहल्ले के बाकी बच्चों से कितने समझदार हैं और वो कैसे उनको अच्छी-अच्छी बातें सिखाता है कि इतने में राकेश की पड़ोसन सुशीला जी उसके दोनों बेटों को लेकर आ गयीं। दोनों तौलिए लपेटे हुए थे जैसे अभी नहाया हो। उनको देखकर सब चौंक गए।


"क्या हुआ चाची ? ये दोनों नहाये हुए से क्यों लग रहे हैं ? इनके कपड़े कहाँ गए ?”, राकेश ने हैरानी से देखते हुए पूछा।


"क्या बताऊँ बेटा। मिट्टी का तेल डाल लिया था तेरे दोनों लाड़लों ने अपने सिरों में। दोनों को सर्फ से नहलाया है।”, सुशीला जी बोलीं।


"क्या ?", सबके मुँह से जैसे ये शब्द एक साथ निकल गया। राकेश तो उत्तेजना में उठ कर खड़ा हो गया।


"पर ये दोनों तो घर से नहा-धोकर ही निकले थे खेलने के लिए। इन्हें मिट्टी का तेल कहाँ मिल गया ?", राकेश ने सुशीला जी से पूछा।


"ये मेरे घर के आँगन में खेल रहे थे। मैंने स्टोव में भरने के लिए मिट्टी के तेल की कुप्पी निकाली थी। उसमें थोड़ा सा तेल बचा था। फिर बहू ने आवाज दी तो मैं अंदर चली गयी। थोड़ी देर बाद इनके रोने की आवाज सुनकर मैं और बहू दौड़कर बाहर आये। देखा तो दोनों रो रहे थे और दोनों के सिर और कपड़े मिट्टी के तेल में भीगे थे। मैंने और बहू ने तुरंत इनको पकड़कर सर्फ से सिर धुलाकर नहला दिया। दोनों के कपड़े धुलने के लिए सर्फ में भिगोकर रख दिए हैं एक बाल्टी में", सुशीला जी ने कहा।


"वो तो ठीक है चाची पर ये मिट्टी के तेल में भीग कैसे गए ?”, राकेश ने दोनों बेटों के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा।


"तेरे बड़े लाड़ले ने बताया कि उसने मिट्टी का तेल खुद अपने और अपने छोटे भाई के सिर में लगाया था। कह रहा था कि पापा ने कहा कि सिर में तेल डालने से दिमाग ठंडा रहता है और बाल काले रहते हैं", सुशीला जी ने ये बात कुछ तंज सा मारने के अंदाज में कही।


"क्या ?", राकेश को जैसे सुशीला जी की बात पर विश्वास न हुआ हो, "पर मैंने कब कहा था की मिट्टी का तेल सिर में डालते हैं ? क्यों ?”, राकेश ने कुछ गुस्से से देखते हुए अपने दोनों बेटों की तरफ देखा।


राकेश का बड़ा बेटा मोहन बड़ी मासूमियत से डरते हुए बोला, "पापा, पापा, उस दिन आप जब ऑफिस के लिए तैयार हो रहे थे, तो आपने हम दोनों के सिर में उस शीशी से तेल डाल दिया था और फिर कंघी की थी। आपने ही तो कहा था कि सिर में तेल लगाने से दिमाग ठंडा रहता है, बाल काले रहते हैं और आँखों की ज्योति बनी रहती है। इसलिए मैंने दादी के यहाँ रखा तेल अपने और छोटू के सर में लगा लिया। पर उससे हमारी आँखों में जलन होने लगी। तब दादी और चाची ने हमको नहला दिया।" सब उसकी बात सुनकर हैरान रह गए। कुछ को हँसी भी आ गयी। पर राकेश को गुस्सा आ गया। उसने सोहन से ऊँची आवाज में कहा, "पर मैंने मिट्टी का तेल कब कहा था। बालों में लगाने वाला तेल दूसरा होता है। अकल है कि नहीं तेरे पास।" राकेश की डाँट सुनकर मोहन जाकर सुशीला जी से लिपट गया।


उसे प्यार से पुचकारते हुए सुशीला जी ने राकेश से कहा, "उसे क्यों डाँट रहे हो। नौ साल का बच्चा ही तो है। तुमने उसे अधूरी बात बताई। ये भी तो बताना था कि कौन-कौन से तेल सिर में लगाते हैं। उसने तो अपनी बुद्धि के हिसाब से काम किया। तुम्हारे घर में भी तो स्टोव है। क्या तुमने उन्हें कभी बताया नहीं की मिट्टी का तेल स्टोव में डालते हैं और इसे कभी लगाते नहीं।" राकेश को जैसे साँप सूंघ गया। झेंपते हुए उसने ना में सिर हिलाया।


"बच्चों में अकल होती ही कितनी है। उन्हें कभी अधूरी बात नहीं बतानी चाहिए। खेल-खेल में कुछ भी कर बैठते हैं। थोड़ी सी गलती तो मेरी भी है। इन्हें अकेले मिट्टी के तेल और स्टोव के पास नहीं छोड़ना था। भगवान का शुक्र है कि कोई दुर्घटना नहीं हुई", सुशीला जी बोलीं।


"नहीं चाची, इसमें ज्यादा गलती मेरी है। मुझे इन्हें अधूरी बात नहीं बतानी चाहिये थी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जो आपने इन्हें तुरंत नहला दिया। मैं खुद को कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान समझने लगा था। अब मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखूँगा। मुझे अपनी गलती समझ में आ गयी", राकेश ने कृतज्ञ भाव से सुशीला जी की तरफ देखते हुए कहा।


सुशीला जी ने गंभीर भाव से मुस्कुराते हुए कहा, "कोई बात नहीं बेटा। इन्हें कपड़े पहना दो", राकेश ने झुककर दोनों बेटों को गले से लगा लिया।


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