अहम्
अहम्


कुछ लोगों में हर बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहने की एक बड़ी विचित्र प्रवृत्ति होती है। दस का सौ, तिल का ताड़ और राई का पहाड़ करे बिना जैसे उन्हें चैन नहीं आता। विनय का भी यही स्वभाव था। हर बात को अनावश्यक रूप से बढ़ा-चढ़ाकर बताना। एक बार वो अपने घनिष्ठ मित्रों राहुल, नंदन, सुरेन्द्र और विवेक के साथ अपने एक चचेरे भाई विकास से मिलने गया। विनय ने अपने मित्रों के सामने विकास की खूब प्रशंसा की। विकास से मिलने के बाद सबका विचार कहीं आसपास ही पैदल घूमने का बना। सब काॅलोनी से बाहर मुख्य सड़क की तरफ पैदल चल पड़े और बहुत देर तक वहीं घूमते रहे। वहाँ थोड़ी आगे एक सरकारी कार्यालय था। उस भवन का उद्यान बड़ा ही सुन्दर था। वो विद्युत् विभाग का एक बड़ा ऑफिस था जो एक बहुत बड़े क्षेत्र में फैला था। विनय ने सबसे कहा-"चलो यहाँ घूमते हैं और थोड़ी देर यहीं बेंच पर बैठते हैं।" इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए विवेक ने कहा-"ये बोर्ड लगा है सामने। इसे अच्छे से पढ़ लो।
केवल कार्यालय के कर्मचारियों को छोड़कर अन्य लोगों का प्रवेश निषेध है। क्यों ऐसी जगह जाना चाहते हो जहाँ बाद में दो बातें सुननी पड़ें। यहाँ से आगे चलो।" यह बात विनय को अच्छी नहीं लगी। उसने बड़ा बुरा सा मुँह बनाकर विवेक से कहा-"भाई, तू ये बात-बात पर भाषण मत दिया कर। विकास यहीं का रहने वाला है और यहाँ लोकल के लोगों को कोई नहीं टोकता। डरने की कोई जरूरत नहीं है।" विवेक को विनय का यह अहं अच्छा नहीं लगा। फिर भी बिना क्रोधित हुए उसने कहा-"यहाँ एक और बोर्ड लगा है। कुत्तों से सावधान।
हर ऑफिस में कुत्ते नहीं रखे जाते। इसका मतलब साफ है कि यहाँ नियम बहुत सख्त हैं। मेरी मानो कहीं आगे चलते हैं।" विनय को विवेक का यह तर्क बहुत बुरा लगा। अपनी बात पर जोर देते हुए उसने कहा-"भाई, तू क्या इस जगह के बारे में मुझसे और विकास से ज्यादा जानता है। यहाँ के कुत्ते भी हमें पहचानते हैं। वैसे भी मुझे कुत्तों से निपटना आता है। मेरे चाचा के घर में एक भी एक पालतू कुत्ता है। कुत्ते तो खेलते हैं मेरे साथ।
तुम सब टेंशन मत लो।" इतना कहकर विनय ने बड़े आत्मविश्वास से सबकी ओर देखा। सुरेंद्र ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा-"तू कभी-कभार जरुरत से कुछ ज्यादा ही सोचने लगता है विवेक। जब अपना भाई इतने विश्वास से कह रहा है, तो जरूर सच ही कह रहा होगा। वैसे भी सब थक गए हैं। चल अब अंदर चलकर बैठते हैं।" नंदन ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलते हुए कहा-"हाँ यार, अभी आराम करने का मन कर रहा है। अभी अंदर चलो। अब जो होगा देखा जायेगा।" विवेक अकेला पड़ गया था। अपने क्रोध को मन में दबाकर के वो चुपचाप सबके साथ उस उद्यान में चला गया।
उद्यान में अंदर एक खूबसूरत फव्वारा भी बना था पर वह बंद था। सब उसी की और चले गये। पास जाकर देखा तो उस गोलाकार फव्वारे की चौड़ाई आठ फीट से ज्यादा थी और उसकी गहराई दस फीट से ज्यादा थी। उस फव्वारे में बिल्कुल भी पानी नहीं था और उसकी तली में पेड़-पौधों की सूखी पत्तियाँ पड़ी थीं। यह देखकर विवेक कुछ चकित रह गया। विवेक के देखते ही देखते सब उस फव्वारे की चौड़े पाट पर बैठ गये।
विवेक ने सबको टोकते हुए कहा-"ये कोई बैठने की जगह नहीं है। पीछे इस फव्वारे की गहराई देखो। यदि गलती से गिर गये तो? कहीं बैंच पर टिककर बैठते हैं।" विनय ने जैसे विवेक का उपहास करते हुए कहा-"भाई, हम लोग तो यहीं बैठेंगे। तुझे डर लग रहा है तो कहीं और चला जा।" ये बात सुनकर सब हँस पड़े। विवेक को सबका उसे देखकर इस तरह हँसना बहुत बुरा लगा। पर इससे पहले कि विवेक उन सबसे कुछ कह पता,
अचानक वहाँ कुत्तों के बहुत जोर-जोर से भौंकने की आवाज सुनाई देने लगी। सबने आवाज की दिशा की तरफ देखा तो भवन की ओर से पाँच बड़े आकार के कुत्ते तेजी से दौड़ते हुए उनकी तरफ आ रहे थे। यह देखकर सब डर गये पर इससे पहले कि कोई अपनी जगह से हिल भी पाता, वो कुत्ते सबके सामने बिल्कुल पास आकर खड़े हो गये और देखकर गुर्राने लगे। यह दृश्य देखकर सब बुरी तरह से डर गये और विकास का संतुलन बिगड़ गया। वो पीछे फुव्वारे में गिर ही पड़ता कि उसी के पास खड़े विवेक ने फुर्ती से उसे पकड़ लिया।
यह देखकर एक कुत्ता फिर जोर से भौंका और उनके बहुत नजदीक आ गया। विकास, विनय और राहुल के पसीने छूट गए। विवेक ने धीमी आवाज में सबसे कहा-"कोई अपनी जगह से हिलना मत। हम जरा भी हिले तो गये काम से।" विवेक की आवाज सुनकर वो सब कुत्ते फिर भौंके। सब लोग बहुत डर गये थे और विवेक की बात मानकर अपनी-अपनी जगह पर जैसे अचल हो गये थे। अचानक भवन में से किसी पुरुष के चिल्लाने की आवाज आयी-"ये कुत्ते क्यों भौंक रहे हैं? देखो वहाँ जाकर।" मात्र एक-दो मिनिट बाद तेज कदमों से चलते हुए चार अधेड़ पुरुष वहाँ आये। उनके चेहरे पर व्यग्रता और जिज्ञासा के भाव थे। उनमें से गार्ड की तरह दिखने वाले एक व्यक्ति ने कड़क आवाज में कहा-"कौन हो आप लोग और यहाँ कैसे आये?" उसके इस प्रश्न के उत्तर में मिमियाती सी आवाज में विकास ने कहा-"मैं यहीं कॉलोनी में रहता हूँ। ये मेरे कॉलेज के दोस्त हैं। इन्हें घुमाने लाया था।" तब कुछ क्रोधपूर्ण स्वर में उनमें से ऑफीसर की तरह दिखने वाले एक व्यक्ति ने कहा-"यदि तुम यहीं के रहने वाले हो तो तुम्हें तो पता होगा कि यहाँ आम लोगों का प्रवेश वर्जित है। ये कोई सरकारी पार्क नहीं है दोस्तों के साथ घूमने के लिये। बिजली विभाग का हेड ऑफिस है। बाहर लगा बोर्ड भी दिखाई नहीं दिया क्या ?"
विकास से कुछ कहते ना बना। विनय के चेहरे से भी डर झलक रहा था। तब विनम्र स्वर में विवेक ने कहा-"सॉरी अंकल। हम लोग बहुत देर से पैदल घूम रहे थे। बहुत थक गये थे इसलिए ये पार्क जैसी जगह को देख कर अंदर आ गए। बोर्ड पर किसी का ध्यान नहीं गया। सॉरी, हम लोगों के कारण आप सब को डिस्टर्ब हुआ। आप ये कुत्तों को पीछे कर लीजिये तो हम लोग चले जाते हैं।" तब उनमें से एक अन्य व्यक्ति ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा-"बाहर एक नहीं दो बोर्ड लगे थे। दोनों नहीं दिखे। ये इतने बड़ी बिल्डिंग भी नहीं दिखी। ये गेट के ऊपर लगा इतना बड़ा बोर्ड भी नहीं दिखा।
किस कॉलेज के छात्र हो भाई ?" विवेक सहित बाकी सब को भी ये उपहास अच्छा नहीं लगा पर पुनः बात सँभालते हुए विवेक ने कहा-"जी नहीं, हम लोगों का ध्यान नहीं गया किसी भी बोर्ड पर। हम लोग यहाँ पहली बार आये हैं।" तब उस गार्ड ने विकास की तरफ इशारा करते हुए कहा-"पर ये तुम्हारा दोस्त तो सब जानता था ना। ये तो तुम लोगों को यहाँ घुमाने लाया था। कितना झूठ बोलोगे भाई तुम लोग।"
यह बात सुनकर विवेक को क्रोध आ गया पर स्वयं को संयत करके और गार्ड की आँखों में देखकर वो दृढ़ स्वर में बोला-"ये हमें कॉलोनी घुमाने लाया था, ये जगह नहीं। और यहाँ आने की गलती के लिये मैं सबकी तरफ से माफ़ी माँग चुका हूँ। आप बात को ज्यादा मत बढ़ाइये। ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है। हम सब थक गये थे इसलिये यहाँ सुस्ताने आ गये। हमने जानबूझकर ये नहीं किया। हम अपनी गलती मानते हैं। अब इन कुत्तों को हटाईये ताकि हम जा सकें।" तब उस गार्ड ने उसी रौबपूर्ण अंदाज में कहा-"ठीक है। पर अब अगली बार से ध्यान रखना।" ये कहकर उसने एक कुत्ते के गले में बंधा पट्टा पकड़कर उसे कुछ पीछे खींचा और बाकी कुत्तों को उसके पीछे आने का इशारा करते हुए कहा-"चलो इधर आओ।" तब उस ऑफीसर ने विवेक से कहा-"अब आप लोग जाइये।" तब धीमी आवाज में -"थैंक यू सर"- कहकर विवेक आगे बढ़ गया। उसके पीछे-पीछे सभी पार्क से बाहर आ गये।
पार्क से निकलते हुए उन्हें उन लोगों के बातें करने और हँसने की आवाजें सुनाई दे रही थीं-"ये आज कल के लड़के खुद को कुछ ज्यादा ही स्मार्ट समझते हैं। बोर्ड दिखाई नहीं दिया। हम लोगों को बिल्कुल मूर्ख समझ रखा है इन लोगों ने। इतनी बड़ी बिल्डिंग भी दिखाई नहीं दी।" ये सब बातें विवेक, राहुल, नंदन और सुरेंद्र को बहुत बुरी लगीं पर सब चुपचाप विकास के घर की तरफ चले जा रहे थे। सब थके हुए थे और सबका मूड बहुत खराब हो चुका था इसलिये किसी ने विनय और विकास से कुछ नहीं कहा। विकास के चेहरे पर पछतावे और शर्म के भाव थे और विनय क्रोध से लाल हो रहा था। आज सबके सामने उसका झूठा अहं खंडित हो गया था।