सपना या सच

सपना या सच

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निरंजन बहुत गुस्से में बदहवास सा चला जा रहा था। रास्ते में कई लोगों ने उसे टोका भी और उससे पूछा भी कि वो कहॉं जा रहा है। लेकिन जान-बूझकर सबकी बातों को अनुसना करके वो चला जा रहा था। चलते-चलते थोड़ी देर बाद वो गॉंव की सीमा से बाहर जंगल में आ गया। जंगल में सुनसान पड़े उस मंदिर को देखकर एक पल के लिये वो ठिठक गया। उसे थकान महसूस हो रही थी। वो वहीं उस पुराने खंडहर मंदिर की सीढ़ियों पर छॉंव में बैठ गया। अपने बैग में से पानी की बॉटल निकाल कर उसने थोड़ा पानी पिया। सुबह ऑफिस में हुआ घटनाक्रम उसकी ऑंखों के सामने फिर से घूम गया। उसके उच्चाधिकारियों ने उसे पूरे स्टाफ के सामने बहुत बुरे तरीके से फटकारा था। वो एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में अधिकारी था। मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पचमढ़ी से लगभग चालीस किलोमीटर दूर ”मतजाना पहाड़” नाम के इस गॉंव में सड़क बनाने का काम उसी के अधीन था। उसे इस गॉंव से पचमढ़ी और अन्य शहरों तक जाने वाली मुख्य सड़कों तक पक्की सड़क का निर्माण करवाना था।

ये गॉंव घने जंगल के अंदर था और बाकी गॉंवों से इसका कोई संपर्क नहीं था। वैसे तो ये पूरी तरह पहाड़ों से ही घिरा हुआ था। पर इस गॉंव के पास जो सबसे बड़ी पहाड़ी थी उसके कारण ही इस गॉंव का ये विचित्र नाम पड़ा था। गॉंव के लोग उस पहाड़ी पर जाने से डरते थे और सबको वहॉं जाने से रोकते थे। सब उसे बाबा की पहाड़ी और काली पहाड़ी कहते थे। किसी को नहीं पता कि उस गॉंव का और उस पहाड़ के ये नाम कबसे हैं। हजारों सालों से उस गॉंव के लोग उस पहाड़ के बारे में एक कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते-सुनाते आ रहे थे। कहानी के अनुसार उस पहाड़ी पर एक पुराना खंडहर जैसा विचित्र मंदिर है। पर वो मंदिर किसी देवी-देवता का नहीं है। उस मंदिर में एक बाबा बैठता है जो सबसे खून मॉंगता है। बिना उसे खून दिये कोई उस पहाड़ी से वापस नहीं आ सकता। जो भी व्यक्ति उस पहाड़ी से लौटकर आता था, वो यही कहानी सुनाता था। पर उसके बाद वो व्यक्ति तुरंत गॉंव छोड़ कर चला जाता था। ऐसा ना करने पर उनकी मृत्यु हो जाती थी।

गॉंव वालों के अनुसार अब तक सैंकड़ों व्यक्ति उस पहाड़ से लौटने के बाद गॉंव छोड़ कर जा चुके थे। जो गॉंव में रुका, अगली सुबह ही वो मरा मिलता था। मरने वाले की मृत्यु कैसे होती थी, ये भी एक रहस्य था। कभी पहाड़ से लौटकर मरने वाले व्यक्ति के शरीर पर कोई घाव का निशान नहीं मिला। इसीलिये पहाड़ से लौटने के बाद जो गॉंव छोड़ कर जाता था, वो कभी वापस लौटकर नहीं आता था। जो कभी आये भी, वो दिन के उजाले में भी रहस्यमय तरीके से मृत पाये गये। पिछले कई सालों से गॉंव का कोई व्यक्ति उस पहाड़ पर नहीं गया था। लोगों के अनुसार वो पहाड़ी वाला बाबा नहीं चाहता था कि उस गॉंव से किसी आस-पास के गॉंव तक कभी पक्की सड़क बने। मुगलों से लेकर अंग्रेजों और वर्तमान भारत सरकार तक के अधिकारी उस गॉंव से दूसरे गॉंव तक कभी पक्की सड़क नहीं बनवा पाये। गॉंव में बिजली, पानी, स्कूल, थाना और अस्पताल से लेकर सब था, पर उस गॉंव को किसी दूसरे गॉंव से जोड़ने वाली पक्की सड़क नहीं थी। आज तक कोई दस किलोमीटर से ज्यादा सड़क नहीं बना पाया था जबकि उस गॉंव से सबसे पास का दूसरा गॉंव भी तीस किलोमीटर दूर था।

अब उसी गॉंव में सड़क बनाने का ठेका उस कंपनी ने लिया था जिसमें निरंजन अधिकारी था। कंपनी ने निरंजन को उस गॉंव के बारे में सब बता दिया था, पर निरंजन इन सब बातों को लोगों का अंधविश्वास मानता था। भारतीय पुरातत्व विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार उस पहाड़ी पर हैलीकाप्टर और सैटेलाइट से देखने पर भी कभी कोई मंदिर, खंडहर, पहाड़ पर आने-जाने के किसी रास्ते या किसी तरह की इमारत का कोई नामोनिशान तक नहीं मिला। वहॉं बस पेड़-पौधे दिखते थे। किसी मनुष्य के वहॉं पर रहने के कभी कोई प्रमाण नहीं दिखे। पर जो सरकारी अधिकारी भी वहॉं कभी गये, उन्होंने भी वही कहानी सुनाई जो गॉंव वाले बताते आये थे।

आखिरी बार वहॉं सड़क निर्माण का कार्य सन् 2000 में किया गया था। पर दस किलोमीटर सड़क बनाने के बाद काम करने वाले भाग गये थे। अब नौ साल बाद उस गॉंव से दूसरे गॉंव-शहर तक सड़क बनाना निरंजन की कंपनी के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। इसलिये काम सफलतापूर्वक पूरा होने पर निरंजन को प्रमोशन और बड़े पैकेज का प्रस्ताव दिया गया था।

निरंजन को मतजाना पहाड़ गॉंव आये चार महीने हो गये थे। इन चार महीनों से वो गॉंव में पिछली अधूरी बनी सड़कें, जो कि इतने सालों में ऊबड़-खाबड़ हो गयीं थीं, को उखड़वाकर वहॉं नई सड़के बनवा रहा था। वो एक साथ चार सड़कों का काम करवा रहा था जो कि गॉंव को चार दूसरे गॉंवों से जोड़ती थीं। पर यहॉं भी वही बात हुई। जैसे ही सड़कें दस किलोमीटर बनीं कि निरंजन के दो उच्चाधिकारी काम का निरीक्षण करने आ गये। संयोगवश जिस दिन उसके अधिकारी आये, उसी दिन अचानक ऑफिस से कुछ जरुरी फाइलें गायब हो गयीं जिनमें बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज थे।

बहुत ढूँढने पर भी वो फाइलें नहीं मिलीं। इसी बात पर निरंजन के उच्चाधिकारियों ने अगले दिन उसे सब के सामने जमकर फटकार लगा दी और उस पर घोटाला करने का आरोप लगा दिया। निरंजन के अधीनस्थ काम करने वाले कर्मचारियों ने उसका बचाव किया पर उसके उच्चाधिकरियों ने आरोप लगाया कि घोटाले में उसके साथ सब शामिल हैं। निरंजन ने अपने जीवन में पहली बार इतना अपमानित महसूस किया था।

कंपनी में उसकी पहचान एक सत्यनिष्ठ और कर्मठ कर्मचारी की थी। इसी बात पर से वो तनाव में था।

उसने अपने उच्चाधिकारियों को समझाने की बहुत कोशिश की पर वो माने नहीं। तब गॉंव के एक बुजुर्ग व्यक्ति दीनानाथ ने, जो कि उसका चपरासी था, उसे बताया कि ये सब उस पहाड़ी वाले बाबा की माया है। उससे पहले काम करने आये लोगों के साथ भी ऐसा ही हुआ है। कभी दस किलोमीटर से आगे यहॉं सड़क नहीं बनी। पहले से गुस्से में भरे हुए निरंजन का दिमाग ये बात सुनकर और भन्ना गया।

उसे लगा कि ये सब गॉंव वालों की कोई मिलजुल कर बनाई गयी योजना है उसे झूठे आरोप में फॅंसा कर काम रोकने की। उसने तय कर लिया कि सदियों से चलते आ रहे इस षड़यंत्र पर से आज वो पर्दा उठाकर ही रहेगा। उसी आवेेश में वो गॉंव की उस बिल्डिंग से, जिसमें कि उसका आफिस चल रहा था, पैदल ही उस पहाड़ी के लिये निकल गया। उसने अपने साथ एक छोटे बैग में एक कैमरा और पानी की बॉटल और एक रस्सी बस रखी थी। गॉंव की सीमा से निकल कर वो इस पुराने मंदिर तक आ गया था जिसमें कि कोई भी मूर्ति नहीं थी। गॉंव के लोग इस मंदिर तक भी कभी नहीं आते थे पर निरंजन निश्चय कर चुका था कि आज वो इस पहाड़ी की सच्चाई जानकर ही रहेगा। उसने घड़ी देखी तो साढ़े ग्यारह बज रहा था। उसने भगवान का नाम लेकर पहाड़ पर चढ़ना चालू किया।

उस पहाड़ पर चढ़ने के लिये कोई पगडंडी तक नहीं थी। निरंजन पहाड़ की पथरीली जमीन पर चला जा रहा था। पर उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना ना रहा जब थोड़ा आगे चलने के बाद उसे एक साफ-सुथरी पगडंडी मिल गयी। निरंजन फिर जैसे सम्मोहन में बंधा हुआ सा उस पगडंडी पर चला जा रहा था। उसे समय का कोई होश ही नहीं रहा। कुछ देर बाद उसे पहाड़ी के ही पत्थरों को काटकर बनाई गयी सीढ़ियॉं दिखीं। वहीं सीढ़ियों पर बैठा हुआ एक बुजुर्ग देहाती किसान जैसा दिखने वाला व्यक्ति भी दिखा। निरंजन ने उससे पूछा-”बाबा, आप कौन हो और यहॉं क्या कर रहे हो ?”

तब अपने गमछे से अपना पसीना पोंछते हुए उसने कहा-”बेटा मैं यहीं पहाड़पुर गॉंव का रहने वाला हूँ। ऊपर मंदिर में बाबा से मिलने जा रहा हॅूं। मेरे परिवार वालों ने मुझे घर से निकाल दिया है। बाबा सबकी सुनते हैं। मेरी बिगड़ी भी वही बनायेंगे। क्या तुम भी वहीं जा रहे हो?” निरंजन ने बिना कुछ कहे सिर्फ स्वीकृति में सिर हिला दिया। तब वो बूढ़ा उठकर खड़ा हो गया और उसने कहा-”चलो मैं आगे चलता हूँ।

तुम मेरे पीछे-पीछे आओ।” ऐसा कहकर वो बूढ़ा उन सीढ़ियों पर ऊपर की ओर चलने लगा। निरंजन सम्मोहित सा उस बूढ़े के पीछे चला जा रहा था। उसे भी समझ में नहीं आ आया कि वो ऐसा क्यों कर रहा है। पता नहीं कितनी देर तक वो उन सीढ़ियों पर चलते रहे। समय का जैसे निरंजन को कोई ध्यान ही नहीं रहा। फिर उनके सामने एक पत्थरों की ही बनी हुई द्वार जैसी संरचना आई। उसे देखते ही निरंजन रुक गया। उसका दिल बहुत तेजी से धड़क कर जैसे उसे रोकना चाह रहा था। तब उस बूढ़े ने फिर कहा-”मेरे पीछे चले आओ। बाबा सबके कष्ट दूर करते हैं।” उसके इतना कहते ही निरंजन के पैर जैसे अपने आप आगे की तरफ चलने लगे। द्वार के अंदर जाते ही वातावरण एकदम से जैसे बदल गया। एक विचित्र सा भारीपन हवा में आ गया। एक अनजाना डर निरंजन के मन में बैठ गया। निरंजन को ऐसा लगा जैसे वो किसी दूसरी दुनिया में आ गया हो। उसने अपने जीवन में पहले कभी ऐसा अनुभव नहीं हुआ था। पर उसके शरीर पर जैसे उसका कोई नियंत्रण ही नहीं था। उस बूढे़ की कही हुई बात जैसे कोई मंत्र थी जिससे बंधा हुआ निरंजन चला जा रहा था।

उस द्वार के अंदर जाते ही आगे की तरफ एक पुराने खंडहर की आकृति स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उसे देखते ही निरंजन को विश्वास हो गया कि यही वो मंदिर है जिसकी लोग कहानियॉं सुनाते हैं। जैसे-जैसे निरंजन उसके करीब पहुँच रहा था, उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। उसका हृदय बार-बार उसे संकेत दे रहा था कि कुछ बहुत भयानक होने वाला है और उसे तुरंत वापस लौटना चाहिये। पर वापस लौटना तो दूर निरंजन पीछे मुड़कर भी देख नहीं पा रहा था। अब उस मंदिर का सम्मोहन उसे अपनी ओर खींच रहा था। उसके कदम अपने आप आगे की ओर बढ़ रहे थे।

मंदिर के अंदर जाते ही वो बूढ़ा उसकी ऑंखों से ओझल हो गया। अब निरंजन को बहुत डर लगने लगा। पर वो मंदिर उसे जैसे अपनी तरफ खींच रहा था। मंदिर के अंदर आते ही निरंजन को ऐसा लगा जैसे अब उसके ऊपर उसका कोई भी नियंत्रण नहीं है और उसने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर दी है। वो जब मंदिर के अंदर कुछ आगे गया तो वहॉं उसे एक वृद्ध साधु दिखाई दिया। उसकी उम्र कोई साठ से सत्तर साल के बीच की रही होगी। उसके बाल ना पूरी तरह सफेद थे और ना पूरी तरफ काले। वो काले रंग की धोती पहने हुआ था और काले रंग का ही एक कपड़ा वो अपने बांयें कंधे पर गमछे की तरह डाले हुआ था जैसा की प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि ओढ़े रहते थे। उसके सिर पर कोई जटा नहीं थी, पर उसके कमर तक बाल लंबे थे और उसकी पीठ के पीछे लटक रहे थे।

उसकी मध्यम मोटी मूँछ और गले तक लंबी दाढ़ी थी। देखने में उसकी आकृति डरावनी नहीं थी और वह एक सामान्य मनुष्य ही लगता था, पर उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी और आतंकित कर देने वाली मुस्कान थी। जैसे ही उस साधु ने निरंजन को देखा तो निरंजन को लगा कि उसकेे शरीर में बह रहा खून डर के मारे जम गया हो। निरंजन के मन से ये विश्वास गायब हो गया कि वो इस साधु का कुछ बिगाड़ भी सकता है। वो अपने साथ रस्सी इसीलिये रख के लाया था कि इस पाखंडी को उसमें बॉंधकर गॉंव वालों के सामने घसीट कर ले जायेगा। पर अब निरंजन के मन में डर बैठ गया था कि वो स्वयं यहॉं से जिंदा वापस गॉंव पहुँच भी पायेगा या नहीं। धीरे-धीरे चलते हुए निरंजन उस साधु के सामने जाकर खड़ा हो गया।

यह कहानी बहुत ही लम्बी है। पूरी कहानी यहाँ प्रकाशित करना संभव नहीं है। पूरी कहानी कृपया मेरी पुस्तक "कयामत की रात" में पढ़ें जो कि एमाज़ॉन किंडल पर उपलब्ध है।



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