Mrugtrushna Tarang

Comedy Fantasy Thriller

4  

Mrugtrushna Tarang

Comedy Fantasy Thriller

बटरफ्लाईमैन

बटरफ्लाईमैन

4 mins
213


आज कुछ ख़लिश सी महसूस हुई। टहलने के इरादे से ही ऑंगन में जाने का सोचा, तो सिहरन सी दौड़ गई। क्या हुआ कुछ समझ पाती, कि, आकाशगंगा से एक श्वेताभ मेरी ओर आता हुआ दिखाई दिया। और दूसरे ही पल मैं चक्कर खाकर नीचे की ओर गिरती चली गई।

कुछ वक़्त तक मैं ऐसे ही औंधे मुंह लेटी रही। दाहिने कान के पीछे दर्द सा महसूस हुआ। चेक करने के लिए जैसे ही अपना बायां हाथ ऊपर की ओर उठाया, तो, जाना कि हाथ लोहे सा भारीपन जमा रहा था।

और मैं रत्तीभर भी न समझ पाई, कि, आख़िरकार मेरे साथ हो क्या रहा था ! !

'कोई है ? हेल्प मी प्लिज़ !' मेरी पुकार तेज़ होती चली गई। पर हेल्प के नाम पर श्यामल रंग का कोहरा ही नज़र आया। धुंध की चादर बिछी देख मन को सांत्वना मिली। और दिल ने दस्तक भी सुनी उसकी। 

'ए मेरे मालिक ! शुकर है कि मैं पृथ्वी पर ही विराजमान हूँ। उस झल्ली के साथ आसमां की सैर पर बिल्कुल भी नहीं हूँ।' 

और मेरे चहेरे पर एक मुस्कान ने अपनी जगह बना ही ली। पर वह ज़्यादा देर तक न टिक पाई।

आ ही गया प्यार के दुश्मन का राज़दार। मुझें और मेरे हेमराज को जुदा करने के लिए।

'इतना भी मत इतराओ जानेमन ! जीने की वज़ह तो तलाश लो !'

'कौन है ? और ये जुमलेबाजी जरा आमनेसामने हो तो बेहतर होगा।' मैंने अपनी घबराहट को अपने में ही दबाते हुए कहा।

'हा.... हा..... हा.... हा....' अट्टहास फिज़ा में घूमने लगा।

मैंने बिना हिलेडुले आसपास का मुआयना करने हेतु अपनी पैनी नज़र दौड़ाई। और एक झटके ने मेरी गर्दन की नस को तार तार करने का प्रयास किया। पर कामयाब न हो सका।

अपनी शिकस्त को झेल न पाते हुए उसने मुझ पर धावा बोल दिया। और उसे मुँह की खानी पड़ी।

दो बार मिली क़ामयाबी ने उसे बदहवास बना दिया था। और उसीका फ़ायदा जब मैंने उठाया तो वो झल्लाने लगा।

हमारे बीच का वो शीतयुद्ध प्रेक्षकों का आनंद दुगना चौगुना कर रहा था।

और ऑडियन्स को तालियाँ बजाते देख हम भी मन ही मन खुश हुए जा रहे थे। कि, आज की मैडम रुख्सार की शाही बिर्यानी की दावत तो पक्की ही समझो।

तभी, ऑडियन्स में से ही शायद किसीकी आवाज़ गूँजने लगी -

'छवि... ओ छवि... अपनी शक़्ल पे पर्दा डाल। जल्दी से। तेरे अप्पू तुझे ढूँढ़ते हुए यहीं आ रहे हैं, अंतरिक्षयान में।'

अब तक की सारी की सारी हेकड़ी मेरी टाईट हो गई। अप्पू से छिपते छिपाते ही तो ये सारे स्ट्रीट प्ले और ड्रामाज़ किये जा रही थी अब तक।

कुछ बनकर दिखाना चाहती थी अप्पू को। एक बार स्टेज पर अवॉर्ड लेने मुझें बुलाये बस। फिर अप्पू को दुनिया की ही क्या ! अंतरिक्ष की भी सैर कराऊँ। और उन्हें मेरे शौक़िया हुनर पर फ़क्र होने लगे।

लेकिन,

ये तो ख़्वाब में तब्दील होते नज़र आने लगा। आज के 'अंतरिक्षयान' नाटक मंडली के सौंवे प्रयोग का सफल होना बहोत जरूरी था। तभी तो एनसीईआरटी में मुफ़्त में दाखिला मिलता।

'ए ख़ुदा ! अप्पू की नज़रों में ऊँचा उठने का मौक़ा बख़्श दे। वादा करती हूँ कि, आज के बाद कभी झूठ नहीं बोलूँगी। क़सम से।'

अप्पू, मेरे फ्रेंड, फिलॉसॉफर कम गाइड थे। थे नहीं हैं। वैसे तो वे हमउम्र ही हैं। पर नॉलेज के मामले में वन्डरफुल हैं। और इसीलिए मैं भी उनकी इज़्ज़त करती हूँ। उनसे डरती नहीं हूँ, पर उन्हें दुःखी नहीं देख सकती। इसलिए कुछ हाँसिल करके उन्हें सरप्राइज देना चाहती हूँ।

इधर उधर घूम घूमकर अप्पू उर्फ़ अप्पेन्द्र घोषाल 'अंतरिक्षयान' नाटक मंडली छोड़ चले गए।

मैंने राहत की साँस ली। और नाटक का दूसरा और आखिरी अंक भी बखूबी निभाया।

ऑडियन्स की ओर से तालियों की गड़गड़ाहट थमने का नाम ही नहीं ले रही थी।

हम सब् बैकस्टेज पर अपने अपने कोसच्यूम्स को पैक करने में व्यस्त थे।

और स्टेज पर इंटर कॉलेज ड्रामा कॉम्पिटिशन के विनर्स का नाम घोषित करने जा रहे थे।

थर्ड पोज़िशन डिक्लेर हुआ। ऑडियन्स ने तालियों से विनर्स को नवाजा। सेकंड विनर्स का भी नाम घोषित हुआ। उन्हें भी जीभरकर सराहा गया।

हम सबका दिल धड़कना बंद हो चुका था। फर्स्ट पोज़िशन का नाम अनाउंस करने से पूर्व सबकी राय पूछी गई।

'एनी आइडिया ! ? कौन होगा विनर ?'

और ऑडियन्स ने 'बटरफ्लाईमैन' के नाम का जयघोष किया।

मेरा दिल मेरी हथेलियों में उछलकूद करने लगा। हर कोई मुझें बधाइयाँ देते नहीं थकता था।

मेरा नाम पुकारा गया। मेरी बरसों की तपस्या आज फलीभूत होने जा रही थी।

'मिस छवि सरगम को बेस्ट डिरेक्टर, बेस्ट एक्टर और बेस्ट राइटर के तौर पर फर्स्ट प्राइज़ से नवाजा जाता है।'

स्टेज पर जाते जाते मेरी निगाहें अप्पू को ढूँढ़ रही थी। और तभी मुझे कुछ वक़्त पहले की मेरी ही अरदास याद आ गई।

ख़ुदा ने एक और बार मेरी अनकही अरदास सुन ली थी। और पूरी भी की।

मैं अप्पू का हाथ थामे स्टेज पर हमक़दम हो चली थी।

और,

सारे अवॉर्ड्स अप्पू को देते हुए जी उठी। मुझें सबके सामने सराहने के लिए अप्पू आगे बढ़े। तीन तीन अवॉर्ड्स और मैडल्स के साथ वर्ल्ड टूर की दोनों टिकिट्स हाथ में लिए मेरी ओर झुके।

और उन्हींके पैरों में मुझें बेहोश पाकर वे हड़बड़ा उठे। 

मैंने हाथ जोड़कर उन्हें वंदन किया, और होश खो बैठी।

पाँचवें दिन मेरी आँखें साउथ वेल्स की हॉस्पिटल में खुली। सक्सेसफुल इमर्जन्सी ऑपरेशन के बाद। ब्रैन के तीनों क्लॉट्स को निकाल बाहर करने की ख़ुशहाली सभी के चहरे पर झलक रही थी।

वर्च्युअली हर कोई मुझसे जुड़ा था। चौदह घंटों के ऑपरेशन के दौरान भी।

और मैं अंतरिक्ष की सैर करके पृथ्वी पर लौटी थी बटरफ्लाईमेन की तऱह।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy