बसंत उत्सव
बसंत उत्सव
रीना तुमने कभी सोचा है वसंत ऋतु को हम रंगों की ऋतु, ऋतुराज क्यों कहते हैं? इसी समय हम होली का त्योहार क्यों मनाते हैं ?
हां थोड़ा-थोड़ा एहसास है दीपू लेकिन अगर तुम विस्तार से समझाओगी तो अच्छा लगेगा।
ठीक है, देखो हम सभी जानते हैं होली रंगों का त्योहार है और वसंत ऋतु में ही विभिन्न रंग के फूल खिलते हैं। हर तरह के रंग बिरंगे फूल चाहे लाल रंग के पलाश गुलमोहर गुलाब जासूद,पीले रंग के सूर्यमुखी,गेंदा। गुलाबी रंग के सदाबहार, गुलाब। इन सभी फूलों से वसंत ऋतु में प्रकृति रंगों की छटा बिखेरती है। पतझड़ का अंत होते ही हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। और बसंत में खिले इन रंग-बिरंगे फूलों के रंग से लोग एक दूसरे को रंग कर वसंत ऋतु का आनंद उठाते हैं। होली यानी बसंत उत्सव भाई-चारे का त्योहार है।
इसमें कोई जाति धर्म का बंधन नहीं है सभी एक समान बसंत उत्सव के भागीदार बनते हैं। इस उत्सव का उद्देश्य बहुत ही महान है। सभी लोग प्रकृति से आलिंगन करें, उसे करीब से समझे, उसकी सुंदरता का आनंद ले व प्रकृति का महत्व समझे। लेकिन कहते हैं ना जब हम किसी भी चीज की मूल आत्मा से भटक जाते हैं तो उसके विकृत रूप को अपनाकर आगे बढ़ने लगते हैं और होली के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। उद्देश्य तो था कि प्रकृति के रंगों में डूबे लेकिन अब कृत्रिम रंगों से लोग एक दूसरे को रंगते हैं और देखते ही देखते कई बीमारियों को खुला आमंत्रण दे बैठते हैं। इस दूरी का ही परिणाम है कि हम बहुत ही निर्ममता से प्रकृति का दोहन कर रहे हैं और अब इस स्तर तक पहुंच चुके हैं कि, खुद के अस्तित्व पर ही प्रश्नवाचक चिन्ह लगा बैठे हैं। पेड़ों को बेरहमी से काटना, भूजल का समाप्त होना, नदियां सूखना, बर्फ का पिघलना, बाढ़, सूखा और न जाने क्या-क्या।
तो ठीक है दीपू इस बार हम सभी प्रकृति के रंगों से ही एक-दूसरे को रंगेंगे और होली का खूब आनंद लेंगे। असल में देखा जाए तो प्रकृति हमें सब कुछ देती है। आवश्यकता है तो प्रकृति को समझने की, प्रकृति के महत्व को जानने की, प्रकृति का सम्मान करने की। हम प्रकृति से अलग नहीं बल्कि प्रकृति का ही एक हिस्सा है। प्रकृति के सानिध्य से मन शांत व प्रफुल्लित हो उठता है । आओ आज हम दोनों प्रण लेते हैं कि सभी को होली के मूल उद्देश्य के प्रति जागरूक कराएंगे और होली को ग्रीन होली बनाएंगे । बहुत सही रीना।