बोझ
बोझ
दोपहर का समय था, काल बेल की घंटी बजी।
मैंने बाहर देखा तो पड़ोसी के घर कोई आया हुआ था। सारे बाल सफेद हो चुके थे, हलकी दाढ़ी। उमर ये ही कोई स्त्तर के आसपास।
ये सख्स अक्सर हफ़्ता दस दिनों में पड़ोस में आता जाता था और समय भी वही तीन चार बजे के आसपास।
हमारे पड़ोसी बहुत ही अच्छे स्वभाव व मिलनसार थे और जब भी कोई मदद की जरूरत हो हमेशा तैयार रहते। उनके परिवार में अंकल, आंटी, बेटा व बहू एक चार साल का बच्चा।
वह व्यक्ति जो अक्सर पड़ोस में आता था वो और पड़ोसी अंकल एक साथ एक ही कम्पनी में कार्य करते हुए रिटायर हुए थे और दोनों का परिवार एक ही कंपनी के कॉलोनी में एक साथ रहते थे व दोनों परिवारों में बहुत घनिष्ठता थी।
शाम का समय था मैं पड़ोस में गया हुआ था ताकि इस महीने के राशन एक साथ मंगाने के लिए प्लानिंग कर सकूं। तभी वो अंकल के दोस्त आए,
पड़ोस के अंकल ने उनके दोस्त का परिचय मुझसे कराया। तभी आंटी किचेन से हाल में आई और अंकल के दोस्त को सादर नमस्कार कर बोली
"आप लोग बैठो मैं चाय बनाती हूं"
"नहीं आंटी मैं अभी पिया हूं " मैंने कहा
और अंकल के दोस्त ने भी कहा, नहीं भाभी जी मैं भी अभी चाय पीकर आ रहा हूं।
फिर मैं उनसे विदा ले कर वापस अपने घर अा गया और कुछ जरूरी काम निपटाने झोला लेे कर बाहर निकल गया।
अपना बाजार का काम निपटाते निपटाते मुझे सात बज गए और मैं गाड़ी उठाकर घर के तरफ वापस आने लगा तो अचानक मेरी नजर चौक के चाय दुकान पर पड़ी, तो देखा पड़ोस के अंकल के दोस्त चाय की चुस्की ले रहे थे। मैं सीधे घर वापस आ गया।
मेरे मन में एक बात बार बार उठ रही थी कि जब पड़ोस की आंटी के घर चाय मना कर यहां पर चाय क्यों पी रहे हैं। मुझसे रहा नहीं गया तो सीधे अंकल क घर चला गया।
"अंकल मैंने आपके दोस्त को अभी अभी चौक पर चाय पीते हुए देखा है और मुझे ये समझ नहीं आया कि आपके यहां चाय पीने से क्यों मना कर दिया"
"हां बेटा मालूम है कि वो वहां चाय पीता है, वो मेरे यहां न चाय पीता है न भोजन का समय होने के बावजूद भोजन करता है"
मैंने पूछा
"ऐसा क्यों अंकल?
अंकल ने बताया
"बेटा कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बहुत ही स्वाभिमानी होते हैं और वो कभी नहीं चाहते कि उनके चलते कभी किसी को कोई तकलीफ़ हो, और उनके दोस्तों को तो कभी नहीं"
"वो आश्रम में भी ऐसा ही करता है"
आश्रम में? मैंने अपनी जिज्ञासा जाहिर किया।
तो अंकल बोले " ये मेरा दोस्त एक वृद्धाश्रम में रहता है"
"क्यों" ?
"उसका एक ही बेटा है और दोस्त कि पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है, उनकी बहू का स्वभाव ठीक नहीं था, रोज घर पर बहू ससुर को लेकर कुछ न कुछ ताने मारती थी और उनके बेटे के बोलने के बावजूद उनकी बहू में कोई सुधार नहीं हुआ। इस सबसे परेशान हो कर वो बेटे के बहुत मना करने के बावजूद वृद्धाश्रम चला गया और तब से वहीं रहने लगा"
"हां तो तू क्या पूछ रहा था, अच्छा चाय की बात"
जब तक तुम्हारी आंटी थी वो कभी भी मेरे दोस्त को बिना चाय पिलाए, और अगर भोजन का समय हो तो बिना भोजन किए नहीं भेजती थी। हमारे सम्बन्ध ही ऐसे थे बेटा, हमारे दोनों परिवारों के बीच सगे भाइयों जैसा सम्बन्ध था। मेरे दोस्त के इस बात से मैं बहुत ही प्रभावित हूं वो बहुत ही स्वाभिमानी है और कभी नहीं चाहता कि उसके चलते किसी को कोई तकलीफ़ हो। हां जहां तक चाय नहीं पीने की बात है
"मैंने अपने दोस्त से एक बार पूछा भी था तो वो बोला"
"तू ने भाभी जी और तुम्हारे बेटे ने मेरी पत्नी के गुजर जाने के बाद जो अपनापन दिया उसको मैं अपने जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण धरोहर समझता हूं कि शायद मैंने पिछले जनम में कोई पुण्य का काम किया होगा जो इतना अच्छा दोस्त और परिवार मिला। लेकिन मैं हर परिस्थिति को समझता हूं और इसी कोशिश में रहता हूं कि किसी के विचार में भी बोझ न बनूं । तू तो मेरा दोस्त है यार और तेरी बहू के व्यवहार से अच्छी तरह वाकिफ हूं। तेरा तो ठीक है पर अभी समय अपना नहीं बच्चों का है और मैं कभी नहीं चाहूंगा कि तेरी बहू के मन में ये विचार भी आए कि ' अरे देखो ये बुड्ढा फिर अा गया इसके लिए चाय बनाना पड़ेगा आदि ' यार ऊपर वाले की कृपा से मेरे पास खाने पीने की कमी नहीं है और चाय बड़ी बात नहीं है, मैं तो, मैं क्या मेरे जैसा हर इंसान सिर्फ और सिर्फ अपनों का समय चाहता है और उसी को ढूंढ़ता हुआ दर दर भटकता है। और ढलती जिंदगी के इस आखिरी पड़ाव में हमें देने के लिए एक समय ही तो किसी के पास नहीं है।"
इतना बता कर अंकल अपनी आंखों की नमी पोंछने लगे।
