बंटी की लड़की
बंटी की लड़की
नायशा नाम है उसका .... नायशा नाम का मतलब विशेष, लवली फूल होता है और वो सच में ही विशेष है , एक बहुत ही प्यारा सुन्दर सा फूल जिसे घर में सब छूना चाहते हैं , उसकी महक को अपने अंदर समेटना चाहते हैं। पर मैं उसे प्यार से बंटी की लड़की कहती हूँ। बंटी मेरा सबसे छोटा देवर है जो उम्र में मुझसे आठ साल छोटा है। जब मैं शादी करके इस घर में आई थी तब बंटी सातवीं कक्षा में पढ़ता था .... मैने उसे बचपन से देखा है इसलिये मेरे लिए वो मेरे बच्चे जैसा ही है। हम सब घर में उसे बहुत प्यार करते हैं |
मेरे पति को मिलाकर सास - ससुर के तीन बेटे हैं। सबसे बड़े प्रदीप , फिर मनीष और फिर बंटी। कुल मिलाकर एक सन्युक्त परिवार वो भी दिल्ली जैसे शहर में। सब एक ही घर में रहते हैं बस मंजिल अलग - अलग हैं। सभी खुश थे पर अगर कोई नाखुश थी तो वो थी छोटी बहु। एक तो उसका कमरा घर में सबसे ऊपर छत पर बना था और दूसरा उसे खाना पकाने सबसे नीचे आना पड़ता था। बस यहीं से शुरू हुई थी इस बिखरते परिवार की कहानी |
शादी के कुछ दिनो बाद ही बंटी की पत्नी यानि निशा का अपने पति से अक्सर झगड़ा हो जाता। झगड़े की वजह यही होती कि छत पर बने कमरे में मौसम सबसे पहले अपना कहर दिखाता था | गर्मी में कमरा खूब तपता और सर्दी में वहाँ बहुत ठंड होती | जब मानसून आता तो सारी छत पानी से भर जाती ऊपर से एक कमरे में सामान भी इतना भर गया था कि नायशा के खेलने की जगह भी नहीं बची थी। निशा ने कई बार अपनी परेशानी सास - ससुर के सामने रखी परंतु उनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। परिवार में दूरियां बढ़ती गईं और फिर एक दिन तंग आकर निशा ने ये घर छोड़ने का फैसला ले ही लिया |
बंटी ने अपने ऑफिस से होम लोन लेकर फरीदाबाद में अपना अलग घर ले लिया और वो वहीं चला गया। उसके जाने से घर में सब बहुत उदास हुए। सासू माँ का तो रो - रोकर बुरा हाल था। मैं भी उदास थी पर मेरी उदासी का कारण दूसरा ही था। दरअसल मेरे साथ रोज़ खेलने वाली , बाते बनाने वाली मेरी सबसे अच्छी दोस्त नायशा जो जा रही थी। मुझे उस फूल की एक आदत सी पड़ गई थी जिसकी महक के बिना मुझे भोजन भी बेस्वाद लगता था |
हम सबने परिवार को फिर से जोड़ने की बहुत कोशिश की मगर हम नाकामयाब रहे। जहाँ एक ओर निशा वापस आने को तैयार नहीं थी तो वहीं दूसरी ओर सास - सासुर भी इस घर को बेचकर दूसरा घर लेने को तैयार नहीं हुए। समय बीतता गया और हम सबने इसी तरह एक - दूसरे के बिना जीने की आदत डाल ली परंतु घर में जन्मदिवस , त्योहार आदि पर हमे बंटी के परिवार की कमी अक्सर खला करती |और फिर एक दिन अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसकी हम सबने कभी कल्पना भी नहीं की थी। बंटी का तबादला हैदराबाद हो गया पर कम्पनी वालों ने उसे अकेले ही आने की इजाज़त दी। अब पीछे से निशा को अकेले रहना पड़ता इसलिये बंटी ने उसे हमारे साथ वापस रहने के लिए कहा मगर वो नहीं मानी। थक हार कर बंटी जाने से पहले हम सबसे मिलने आया। साथ में आई हम सब की जान नायशा। उसके आते ही घर में अजीब सी महक फैल गई। उसकी हँसी की किलकारी एक बार फिर से पूरे घर में गूँज उठी। सभी बच्चे उसे देखकर बहुत खुश हुए |
एक हफ़ता कैसे बीत गया पता ही नहीं चला और अब फिर से बारी आई विदाई की। हम सबको लगा कि इस बार सासू माँ पहले से ज्यादा भावुक होंगी और कहीं ज्यादा रोने से उनका ब्लड प्रेशर ही ना बढ़ जाये इसलिये हमने घर में पहले से ही डॉक्टर को बुला लिया था | परंतु ये क्या .... अचानक पासा पलट गया और सासू माँ की जगह नन्ही नायशा रोने लगी | उसके रोने से अचानक सारे घर में सैलाब आ गया। सभी भावुक हो गए और नायशा की हाँ में हाँ मिलाने लगे। नायशा अब यहीं रहना चाहती थी। उसने अपने स्कूल में फैमिली ट्री बनाया था। अब वो सन्युक्त परिवार का महत्व जान गई थी। वो कहते हैं ना कि बाल हठ के आगे कोई नहीं जीत पाया। नायशा की हठ ने आज अपनी माँ को ही हरा दिया था |
सबकी आँखों में तैरते आँसुओं के बीच मैने भी एक हल्का सा जुमला छोड़ ही दिया , "अरे , ये बंटी की लड़की है .... ये परिवार को तोड़ने नहीं बल्कि यहाँ जोड़ने आई है |" सभी एकसाथ खिलखिला कर हँस पड़े ||