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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

बनी रहे संबंधों की मधुरता

बनी रहे संबंधों की मधुरता

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आज गूगल मीट के माध्यम से मीटिंग से पहले ही मेरे पास मेरी कक्षा के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थियों में से एक रीतू की व्हाट्सएप पर वीडियो कॉल आई उसके बाद भी रीतू ने ओम प्रकाश को भी इस वार्ता में जोड़ा।रीतु कहने लगा कि यह बड़े ही आश्चर्य का विषय है कि जब दो व्यक्तियों के बीच में मैत्री भाव होता है और इस स्थिति में वे जब आपस में बातचीत करते हैं तो प्रत्येक खोज- खोज कर उन घटनाओं की चर्चा करते हैं जिसमें उनके मित्र ने ऐसे सभी काम किए हो जो सर्वदा उसके लिए लाभकारी सिद्ध हुए हों।वह सदा ऐसे कार्यों की चर्चा करते हैं जिनमें वे अपने मित्र के प्रति कृतज्ञता का भाव दिखाते हैं। इस अवधि में उनके यदि कोई कटु व्यक्तिगत अनुभव है रहे होते हैं तो भी भूल कर भी उन्हें विस्मृत कर देते हैं। वे सभी कार्य या घटनाएं जो उनके मन में किसी प्रकार की कटुता का समावेश कर सकते हैं। ऐसे विचारों की या ऐसी घटनाओं की वे कोई चर्चा नहीं करते। इसके विपरीत जब कभी भी इस संबंधों की मधुरता किसी भी कारण से समाप्त होकर कटुता का स्थान ले लेती है और उनका वाद -विवाद, तर्क -वितर्क उलाहनों से भरा होता है। ऐसी स्थिति में वार्ता का मुख्य बिंदु वे घटनाएं होती हैं जिसमें उन्होंने दूसरे के द्वारा किए गए कार्यों को अपनी शराफत की कारण प्रकट नहीं किया उसने सदैव ऐसी बातों का जिक्र किया जाता है की मैंने तुम्हारे साथ अमुक-अमुक भलाई की लेकिन तुमने उस भलाई के बदले मुझे निराश किया। वह खोद-खोद कर ऐसी घटनाओं की चर्चा की जाती है कि तुम्हारे इस कार्य से मेरा इतना बड़ा नुकसान हो गया । तुम्हारे इस वक्तव्य से हमारी प्रतिष्ठा धूल -धूसरित हो गई ,हमारा इतना अपमान हुआ। हम सब एक सदा ही तुम्हें अपना समझते रहे लेकिन तुमने हर समय मेरी पीठ में छुरा घोंपनेने का काम किया ।अपनी स्वार्थ सिद्धि के वश में होकर हमारे नुकसान और बदनामी का भी कोई ख्याल नहीं किया।


मैंने ओमप्रकाश इस संबंध में अपने विचार व्यक्त करने को कहा ओमप्रकाश बताओ तुम्हारा क्या मानना है ,ऐसा क्यों होता है? जब लोगों के बीच में मधुर संबंध होते हैं तो वे केवल मधुर घटनाओं स्मृति और चर्चा करते हैं । जब संबंधों में गिरावट आने लगे तो ऐसी परिस्थिति में हर व्यक्ति को चाहिए कि जब संबंध खराब होने की उन्हें भनक लग जाए तो उन्हें एचडी को स्वीकार करते हुए संगठनों को उदासीनता की स्थिति में कुछ समय के लिए छोड़ देना चाहिए और किसी का अनुकूल होने पर उन्हें उस में मधुरता घोल देनी चाहिए।


ओमप्रकाश ने अपने मन की बात बताते हुए कहा कि जब संबंध मधुर होते हैं तब व्यक्ति अपनी स्वार्थ भावनाओं को प्रभावी नहीं होने देता। एक व्यक्ति अपने से कहीं अधिक दूसरे व्यक्ति को महत्व देता है यह भावना दूसरे व्यक्ति के मन में उसके प्रतिशत प्यार और श्रद्धा सम्मान का भाव जगाती है और वह व्यक्ति अपने प्रति किए गए कार्य को द्वारा दूसरे व्यक्ति के द्वारा किया गया उपकार मानता है और उसके मन में कृतज्ञता के भाव रहते हैं। कुछ समय के पश्चात उस व्यक्ति को यह उपकार सामने वाले व्यक्ति का कर्त्तव्य लगने लगता है और जब वह व्यक्ति किसी कारण उसकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता तब उसे लगता है कि इस व्यक्ति ने जानबूझकर मुझे नुकसान पहुंचाने या मेरा अपमान करने के लिए यह कार्य किया। वो व्यक्ति जहां दूसरे व्यक्ति के कड़वे वचन वचनों को भी एक मजाक समझता था आज भी उसके मधुर वचनों को भी अपना अपमान समझता है उसे ऐसा लगता है कि सामने वाला व्यक्ति उसकी खिल्ली उड़ाने के लिए ऐसा कह रहा है। जब कोई व्यक्ति किसी दूसरी पर की लगातार मदद करता है तो उससे इस प्रकार की अपेक्षा की उम्मीद भीगी जाने लगती है और आगे आने वाले समय में किन्हीं विशेष परिस्थितियों के कारण वह मदद नहींता है या मदद नहीं कर पाता तब एक खलनायक के रूप में नजर आने लगता है।


इस संबंध में ओमप्रकाश के विचारों से सहमत होते हुए रीतू ने कुछ और विचार साझा करते हुए कहा कि जब व्यक्ति एक दूसरे से थोड़ा दूर -दूर रहते हैं। उनका आपस में मेल मिलाप अपेक्षाकृत कम होता है तो इस छोटे समय अंतराल की भेंट में वे एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हैं। परस्पर एक दूसरे की समस्याओं का ध्यान रखते हैं और इन समस्याओं के समाधान के मार्ग भी अपने आप से खोजते हैं जिससे कि सामने वाले व्यक्ति के जीवन में या संबंधित कार्य में जो बाधाएं है उन सभी अड़चनों को दूर कर दिया जाए। लेकिन जो जो समय बीतता है और उनके मिलजुल के समय अंतराल लंबे होने लगते हैं या छोटी छोटी अवधि के बाद उनको मिलना होता है। तब जिस व्यक्ति का काम हो रहा होता है वह सोचता है कि वह मेरा मित्र तो काम कर ही रहा है तो वह अपने आप उस कार्य को करने में आलस्य का अनुभव करने लगता है। दूसरी ओर उसकी बाधाओं को दूर करने वाला व्यक्ति सोचता है कि अब जब मैं इनकी मदद कर देता हूं तब ऐसा लगता है कि इस कार्य के लिए यह हम पर ही आश्रित हो गए हैं ।कहीं ना कहीं हमारा शोषण करने का प्रयास कर रहे हैं ।यही कारण है कि संबंधों में मधुरता का स्थान कटुता लेने लगती है। मेरा ऐसा मानना है ऐसा संभव हर व्यक्ति को अपना काम अपने आप ही करना चाहिए यदि उसे दूसरे व्यक्ति की सहायता की आवश्यकता है और कहने पर या बिना कहीं जो व्यक्ति इस काम में उसकी सहायता करता है। उसे हृदय से धन्यवाद देना चाहिए और आने वाले समय में जब उसके पास जब भी उस व्यक्ति की मदद करने का अवसर आए तो उसे आगे बढ़कर उस व्यक्ति की मदद करनी चाहिए तो आदान-प्रदान का यह दौर चलता रहता है ।तब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को समझता है और संबंध सदैव मधुर ही बने रहते हैं।


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