Ragini Ajay Pathak

Inspirational

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Ragini Ajay Pathak

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बंधुआ मजदूर

बंधुआ मजदूर

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"हेलो! रुचिका सुन! तू आज मेरा कोरियर ले लेगी" रमा ने आग्रह करते हुए अपनी सहेली से कहा

रुचिका- "क्यों तू कही जा रही है क्या?"

रमा-"हाँ कुछ घर का सामान लेने अपने पतिदेव के साथ"

रुचिका "ठीक है लेकिन ये तो बता कोरियर कैश ऑन डिलीवरी है या पेड"

रमा-"कैश ऑन डिलीवरी है यार तुझे तो पता है मुझे ऑनलाइन पेमेंट पर विश्वास नहीं रहता मैं घर के कामों से फ्री होकर आकर तुझसे कोरियर भी ले लूंगी और तुझे पैसे भी दे दूंगी।"

रुचिका-" ठीक है।"

रमा -"रुचिका के ठीक है कहते उसने राहत की सांस ली और सोचने लगी कि कैसे बताए की ऑनलाइन पेमेंट की इजाजत उसको नहीं है? घर की और अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए उसको हर बार झूठ बोलना होता है। अब ये कोरियर के बच्चे को भी इतनी जल्दी डिलीवरी देने की क्या जरूरत आन पड़ी।" रमा मन ही मन बुदबुदाए जा रही थी

इधर कमला बाई अपनी आदत के अनुसार रोज की ही तरह आज भी घर में झाड़ू पोछा लगाते लगाते रमा की सारी बातें सुन रही थी।

रमा आज भी अपनी सहेली से अपना कोरियर लेने के लिए कह रही थी। ऐसा नहीं था कि रमा कोई फिजूलखर्ची करती थी. लेकिन एक औरत होने के नाते उसकी भी छोटी छोटी जरूरतें है जिसे उसके पति अमर नहीं समझते थे कंजूसी की हद ये थी कि वो सैनेटरी पैड के लिए भी पैसे देने में आना कानी करते। और कहते पहले जब ये पैड नहीं थे तब औरतें कैसे रहती थी वैसे ही तुम भी रहो। कुछ बोलने पर वो गाली गलौज और मारपीट पर उतर आता। नौकरानी भी सिर्फ समाज को दिखाने के लिए लगा कि रखा था।

अमर की आदत थी दूसरों के सामने महान बनने और अच्छा होने का दिखावा करने की। अमर की आदत से अंजान सब रमा को ही ज्ञान बाँटते। और चुप रहने के लिए कहते। जिससे रमा ने झगड़े से बचने के लिए ये रास्ता अपना लिया था। वो अपना कोई भी काम अमर की गैर मौजूदगी में ही करती। कभी खुद सहेलियों के पास जाती तो कभी कमला को भेजकर मंगा लेती सामान।

ख्यालों में खोई रमा के सामने कमली आकर अचानक बोल पड़ी "क्या बात है मेमसाब? आज भी कोई कोरियर आने वाला है क्या? आप बहुत परेशान कुछ उदास-सी दिखाई दे रही हो!"

"नहीं तो।" कहते-कहते रमा की आवाज भर्रा गई।

"हाय सच्ची! कोई बात नहीं है। मुझसे झूठ क्यों बोलती हो मेमसाब? तो फिर अपनी सहेली से क्यों कहा रही थी? कि तू मेरा कोरियर ले लेना" पल्लू में हाथ पोंछती वह रमा के पास आ खड़ी हो गयी।"

सोफे पर बैठी रमा के सामने कमली नीचे जमीन पर बैठ गयी। और कहने लगी "मुझे तो हमेशा बोलती हो कि झूठ मत बोलकर तेरे चेहरे से साफ पता चल जाता है कि तू झूठ बोल रही है फिर आप क्यों झूठ बोल रही हो? आपके भी चेहरे से साफ पता चल रहा है कि आप झूठ बोल रही हो।"

मेमसाब! मैं तो सिर्फ इतना जानती हूँ कि हम महिलाओं के जीवन में सुख-दुःख दोनों साथ-साथ हमारी परछाई बनकर चलते हैं लेकिन हम इसे किसी से कहते या दिखाते जताते नहीं। हम औरतों की आदत होती है हम दुःख जमाने से छिपा कर दुनिया को अपना सिर्फ सुख दिखाते है। किस लिए अपने परिवार की मर्यादा के लिए। लेकिन यही परिवार वाले खासकर पतियों के लिए हमारे दुख कुछ असर नहीं करते...। उन्हें कुछ बोलो तो बस उन्हें ये सब औरतों का नाटक ही लगता है"

रमा चुपचाप कमला की बातों को सुन अपने अंतर्मन से बातें करते हुए कहने लगी "हाँ सच कहूँ तो... तुझे समझाने की आड़ में... मैं खुद को भी तो समझाती हूँ।"

कमलाबाई ने आज रमा का हाथ थाम लिया और उसका हाथ हिलाकर कहा," कहाँ खो गयी मेमसाब। बताइए ना क्या हुआ? आप साहब से इतना डरती क्यों है? क्यों उनके रहने पर आप अपना कोरियर सहेलियों के घर मंगाती है? क्यों आप चाहती है कि कोरियर वाला कोरियर लेकर घर में तभी आये जब साहब घर में ना हो?"

आज दोनों के बीच मालकिन और कामवाली का भेद मिट गया था आज वो दोनों सिर्फ दो औरतें थी जो सच्चे मन से एक-दूसरे के दर्द को महसूस कर रही थीं।

रमा का उदास चेहरा अब और उदासीन हो गया। उसने आज मन का गुबार बाहर निकालते हुए कहा "कमली यूँ तो बात कुछ भी नहीं सुनेगी तो शायद हँस पड़े। और तू भी वही कहे जो सब मुझसे कहते है कि हर मर्द ऐसा ही करता है....पति ऐसे ही होते है लेकिन ...।"

कमला ने कहा "लेकिन क्या, मेमसाब? कह डालो दिल की बात। वर्ना हमेशा यूँ ही घुटती रहोगी मन ही मन।"

रमा ने आज पता नहीं क्यों? लेकिन कमला का अपनत्व पाकर बोलना शुरू किया और सारा मन का गुब्बार बाहर करते हुए कहा "जानती है कमली सारा दिन बीत जाता है मेरा इस रसोईघर में सबके मन का पकाते-पकाते और इस घर को सजाते सँवारते।"

कमला बाई गाल पर हाथ रखते हुए बीच मे ही बोल पड़ी "वो तो सभी को करना ही पड़ता है पेट की खातिर। सारे फसाद और दुःख की जड़ ये मुआ पेट ही तो है। फिर आप ही तो कहती हो कि कर्म ही पूजा है तो फिर काम से क्या घबराना?"

रमा ने कहा "पहले तू चुपचाप मेरी पूरी बात सुन तो सही...बीच में ही बोले जा रही है।"

"काम से नहीं घबराती मैं, कमली। घबराती तो मैं उन तानों से हूं जो मुझे बात बात में सुनने के लिए मिलते है इतना काम करने के बावजूद...शादी होकर आई तब से बस यही तो सुनती आ रही हूँ रोटी कभी छोटी कभी मोटी कभी जली कभी आधी कच्ची कभी ऐसी कभी वैसी बनी तो दाल पतली गाढ़ी अजीब सी ऐसी वैसी बनी और सब्जी की शक्ल देखो ध्यान से मायके वालों की औकात नहीं थी मायके में अच्छा खाया हो तब तो बनाना जाने गी कभी पहनाए है इतने महंगे कपड़े तुम्हारे बाप ने और भी ना जाने कितनी कड़वी बातें। फिर भी बिना उफ्फ! किये लगी रही रहती हूँ सबके मन का करने में फिर भी शादी के इन 12 सालों में कोई खुश हुआ क्या आज तक?"

"मैं ना तो अपनी पसंद का खा सकती हूँ ना पहन ओढ़ सकती हूँ साल में दो कपड़े होली दीवाली को दिलाकर कहते है एडजस्ट करो। कोई अरबपति बात की बेटी नहीं हो जो नहीं कर सकती। कुछ भी ऑनलाइन शॉपिंग की तो मुझ पर चिल्लाना शुरू कर देते है। पैसे कहाँ से आएंगे तेरा बाप देगा क्या नहीं तो जाकर अपने बाप से मांग लो"

"अकेले बाजार जाने नहीं देते तो अब बता मेरे पास अपनी पसंद को पूरा करने और घर मे शांति बनाए रखने का कोई और उपाय है क्या?"

कमला दोनों हाथों को घुटनों के बीच बांधे हिलती हुई जो चुपचाप रमा की बाते सुन रही थी ने अपने दोनों हाथ खोल कर चमकाते हुए कहा"यही तो बीमारी है मेमसाब ज्यादातर घरों में मीनमेख निकालने की चाहे कितना भी अच्छा कर दो। लेकिन आप इतने ताने सुनती क्यों हो?......

"अरे! मेरी मानो तो पटक दो बेलन बर्तन और मत जलाओ घर मे चूल्हा ....कह दो अब बस बहुत हो गया इस तरह अपमान सहकर मैं नहीं करूंगी इस घर का कोई भी काम..... संभालो अपना काम और बच्चे।"

कह देती हूं सबकी नानी याद आ जावेगी दुई दिना में। बीबी हो आप कोई बंधुआ मजदूर थोड़ी ना हो

रमा ने कहा"अरे! मैं भला ऐसे कैसे कह सकती हूँ? घर मे कलह शुरू हो जाएगी चार लोग और सुनेंगे अगल-बगल बात मायके तक पहुंच जाएगी।उल्टा मुझे लोगो के और चार बात सुनने को मिलेंगे गुस्से में घर से निकाल दिया तो कहाँ जाऊंगी बच्चों को लेकर? कहना बड़ा आसान है कमली पर करना बहुत मुश्किल।"

कमला ने ताव भरे लहजे में कहा" लेकिन मुझे तो कोई ऐसा बोले तो मैं तो काम ही छोड़कर चल दूँ। लो कर लो अपने आप अपने मन का।"

रमा ने कहा "हम्म! तू कह सकती है ऐसा क्योंकि तू तो कामवाली बाई है ना। तुझे क्या दूसरा घर मिल जाएगा फौरन ही? तुझे समाज मे इज्जत और मान मर्यादा की क्या चिंता.....। तुझे कोई कुछ कहेगा भी नहीं। लेकिन मेरी बात तुझ से अलग है। यही तो फर्क है, तुझ में और मुझ में।"

कमला ने कहा," मेमसाब ,बुरा मत मानना।लेकिन ऐसी अपमान भरी जिंदगी जी कर मालकिन कहलाने से अच्छा......। मैं कामवाली बाई ही सही हूं। दुनिया की नजरों में मैं कामवाली सही? लेकिन मैं तो मालकिन हूँ अपने मन की। जो जब जो मन करे कर सकती हूं बिना किसी के डर के। पूरे हक और सम्मान से अपने घर मे रहती हूं। किसी की बंधुआ मजदूर बनकर नहीं.....। लेकिन आप तो 'लोग क्या कहेंगे' के डर से अपने ही घर में बंधुआ मजदूर बनी बैठी हो। साहब ने आपकी हालत कामवाली से भी बत्तर हालत कर रखी है क्या फायदा साहब के इतना पढ़े लिखे होने और कमाने का जब वो अपनी ही बीवी को सम्मान और अधिकार देना नहीं जानते"

मेरी मानो तो गलत व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाओ। और अपना सम्मान और अधिकार खुद प्राप्त करो।

आपको खिला पहनाकर साहब कोई एहसान नहीं कर रहे। ये सब तो आपका कानूनन अधिकार है। अगर आप आज चुप रही तो कल को इसका परिणाम और खराब हो सकता है। ये सब देखकर बच्चे भी झूठ बोलना सीख जाएंगे। और भगवान ना करें आपकी ऐसी हालत और आपका सहना देखकर वो दोनो भी शायद कभी आपका सम्मान ना करे। क्योंकि बच्चें अच्छी या बुरी आदतें देखकर ही सीखते है।

अपने लिए ना सही लेकिन अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए बोलना शुरू करो। चलो मैं चलती हूं मुझे बहुत देर हो रही है।

कहकर कमली रमा के लिए सीख छोड़ गयी। साथ ही अनेकों प्रश्न भी जिसके जवाब रमा को खुद ही ढूंढने थे।

बहुत कुछ सोचकर उसने अपना फोन उठाया और अपनी सहेली को फोनकर के कहा "तू रहने देना मेरा कोरियर लेने के लिए अगर आये तो उसे मेरे घर भेज देना मैं स्वयं ले लूंगी।"

तभी रमा की सहेली ने कहा "ठीक है।"

अब रमा ने तय कर लिया था कि अब वो नहीं डरेगी। ना ही अपने आत्मसम्मान से समझौता करेगी।

कोरियर वाला आया तब तक अमर भी घर आ चुके थे।रमा ने पर्स से पैसे निकाले और पैसे देकर कोरियर ले लिया।

तभी बाथरूम से टॉवल से अपना चेहरा पोछते हुए पीछे से अमर भी आ गया। उसने रमा के हांथ में कोरियर देखकर कहा "ये किसने मंगाया है किसके लिए?"

रमा "मैंने मंगाया। मेरा है।"

अमर ने गुस्से में तौलिया खुद से दूर फेंकते हुए अपना हाथ उठाया ही रमा को मारने के लिए की तब तक रमा ने अमर का हाथ कसकर पकड़ लिया और कहा "मिस्टर अमर अब बस,

मारना और गालियां देना मुझे भी आता है। फर्क बस हमारे संस्कारो का है। जो मैं तुम्हारा सम्मान करती हूँ। जिसका तुमने आजतक गलत फायदा उठाया। मत भूलो की जिस दिन मैं अपने पर आ गयी तो क्या होगा?एक बार अगर पुलिस के डंडे पड़ गए तो ता उम्र याद रहेंगे और जो शरीफ आदमी होने का मुखौटा लगाए फिरते हो ना उसे भी उतरते देर नहीं लगेगी, मेरा तो जो होगा सो हो होगा तुम अपना सोचो तुम्हारी इज्जत का क्या होगा? तो अब दिमाग से काम लो, समझे

आज रमा की पकड़ इतनी मजबूत थी कि अमर अपना हाथ चाहकर भी नहीं छुड़ा पा रहा था। अपनी बात पूरी करते ही रमा ने अमर का हांथ खुद से दूर झटक दिया। अमर की कलाइयों पर रमा की मजबूत पकड़ के निशान बन चुके थे।

कोरियर अंदर कमरे में ले जाते समय रमा ने पलटकर कहा "मत भूलो की मैं तुम्हारी बीबी हुँ बंधुआ मजदूर या गुलाम नहीं जिससे तुम जानवरो के जैसा बर्ताव करोगे।" कहकर रमा अंदर चली गयी।



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