Phool Singh

Tragedy Inspirational

3.0  

Phool Singh

Tragedy Inspirational

बिटिया की विदाई

बिटिया की विदाई

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एक बदहपुर नामक गाँव था जहाँ सुशीला व उसका परिवार एक घास-फूस की झोंपड़ी में रहा करता था। सुशीला की दो बहनें व एक भाई था। सुशीला के माता-पिता बहुत ही गरीब थे बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चल पाता था। ऐसे में बेटी होना तो मात-पिता के लिए और बड़ा चिंता का सबब बन जाता है। उनकी गरीबी का आलम ये था कि कभी-कभी तो उन्हें घर में पेट भरने के लिए भी भोजन नसीब नहीं होता था भूखे पेट ही सोना पड़ जाता था। सुशीला की माँ दूसरों के घरों में काम करती व अपने बच्चों का पेट पालती थी। ऐसे स्थिति में सुशीला के पिता हमेशा शराब पीना तो और भी बड़ा दुख का कारण बन गया। सुशीला के पिता को शराबी होने की वजह से कोई काम पर भी नहीं रखता था। सुशीला की माँ को हमेशा अपने बच्चों व उनकी पढ़ाई की चिंता ही लगी रहती थी। वह काम करने जाती तो थी लेकिन उसका सारा ध्यान केवल अपने घर में ही लगा रहता था। अपने घर का खर्चा चलाने के लिए वह सिलाई व कढ़ाई का काम भी कर लिया करती थी। सुशीला की माँ अपने बच्चों के भविष्य के लिए हमेशा अपने पास पैसे बचा कर रखती थी लेकिन उसके पिता उससे पैसे छीन लिया करते थे व कभी-कभी गुस्से में वह सुशीला की माँ पर हाथ भी उठा दिया करते थे। अपने घर का ऐसा दृश्य देख सुशीला अक्सर अकेले में रोया करती थी। अपनी माँ का हाथ बटाने के लिए सुशीला भी माँ से कहा करती थी कि अपने साथ उसे काम पर ले जाया करे लेकिन उसकी माँ केवल उसे पढ़ते हुए ही देखना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी जो आज उसकी स्थिति है वह भविष्य में उसकी पुत्री को देखनी पड़े। एक दिन तो उसके पिता ने हद ही कर दी जो सौत घर ले आया और उन्हें चेतावनी दे दी उन्हें साथ रहना है तो रहे नहीं तो कहीं भी चले जाये उनसे उसे कोई लेना-देना नहीं है। जिसके कारण उनकी मुसीबतें और ज्यादा बढ़ गई, अब वे अपने ही घर में पराई हो गई थी। सुशीला के दूसरी माँ उसे बदनाम और उलहाने देने में कोई कसर नहीं छोड़ती और उसके अन्य भाई-बहनों को भी एक नौकर से ज्यादा कुछ नहीं समझती थी लेकिन वे कुछ कर भी तो नहीं कर सकते थे।सुशीला बहुत मेहनत और लग्न के साथ शिक्षा ग्रहण कर रही थी। समय बीतता गया और सुशीला बड़ी होती जा रही थी। उसकी माँ के पास इतने पैसे होते थे की वह अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दिला सके। अब सुशीला भी अपने कमाए हुए पैसों से अपने घर में ज्यादा ज्यादा से हाथ बटाने लगी। सुशीला की माँ अपने पति व सौत से चोरी-छुपे हमेशा थोड़े-थोड़े पैसे जोड़ा करती थी ताकि वह सुशीला की शादी करा सके। उसने सुशीला के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया। कुछ समय की खोज के बाद एक लड़का सुशीला के लिए मिला लेकिन वह भी कुछ खास अमीर नहीं था लेकिन घर के अन्य बच्चों की ज़िम्मेदारी को देखते हुए उसकी माँ ने सुशीला की शादी उसी से करना बेहतर समझा। वह लड़का बहुत पसंद आ गया व सुशीला का रिश्ता उससे तय कर दिया। एक दिन वो दिन भी आया जब सुशीला की शादी थी व सुशीला की माँ ने उसकी शादी के लिए जो पैसे बचा कर रखे थे और कुछ इधर-उधर से कर्ज ले कर उसकी माँ ने अपनी बिटिया की शादी सम्पन्न करा दी। शादी के कुछ दिन पहले ही उसकी माँ को उसकी बीमारी का पता चल गया था कि उसको कैंसर है और वह ज्यादा वक़्त तक नहीं रहेगी। इसके बारे में उसने किसी को कुछ नहीं बताया कि कहीं बिटिया बीमारी का सुनकर शादी करने के लिए मना न कर दे। अंत में वह समय भी आ गया जिसके लिए हर माता-पिता सपने देखा करता है बिटिया की विदाई का समय। सुशीला के परिवार वालों ने उसे खुशी-खुशी विदा किया। शादी के कुछ महीनों के बाद ही सुशीला की माँ को बीमारी के कारण स्वर्गवास हो गया व उसका परिवार बिलकुल बिखर गया।


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