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Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

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Priyanka Gupta

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बिन बाप -भाई की बेटियों को कैसे पालेगी !!!

बिन बाप -भाई की बेटियों को कैसे पालेगी !!!

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"अरे समधन जी, आपने तो अकेले ही इतनी अच्छी व्यवस्था की है। इतनी बार पूछने पर भी, आपने हमें कोई काम नहीं बताया। अकेले आप इतना कुछ कैसे कर लेती हैं घर, नौकरी और बच्चियों की परवरिश। आपको दिल से सलाम है।" जानकी जी की सबसे छोटी बेटी की शादी के दौरान उनके सबसे बड़े समधी ने कहा।

"बस, भगवान और आप जैसे शुभचिंतकों की दुआ है। आप सबके सहयोग से आज पियु की भी शादी अच्छे से हो ही जायेगी ।" जानकी जी ने कहा।

"आज आपने अपनी हिम्मत के बल पर अकेले ही अपनी चारों बेटियों की इतनी अच्छी परवरिश की है । जहाँ बेटी की शादी करने में आज भी अच्छे -अच्छे पुरुषों के जूते तक घिस जाते हैं, वही आपने अकेले ही अपनी तीनों बेटियों की शादी भी कर दी। तीनों बेटियां अपने घर में खुश हैं। आज चौथी बेटी की भी शादी हो जायेगी। वाकई में, आप किसी योद्धा से कम नहीं हैं।" समधी जी ने मुस्कुराकर कहा।

"समधी जी, यह तो आपका बड़प्पन है। अच्छे लोग हमेशा दूसरों में भी अच्छाई ही देखते हैं।" जानकी जी ने कहा।

"अरे मम्मी, आ जाइये पियु की सास आदि सभी खाना खाने जा रहे हैं। उनकी मेहमाननवाजी नहीं करनी क्या ?" जानकी की बड़ी बेटी ने आवाज़ लगाते हुए कहा।


"जी समधी जी, बाद में बात करती हूँ। अभी थोड़ा सा काम है।" जानकी जी ने अपने समधी जी को विनम्रता से कहा।

"जी, बिलकुल, अतिथि तो भगवान है। और बेटी के ससुराल वाले, वह तो भगवान से भी बड़े हैं।" बड़े समधी जी ने चुटकी लेते हुए कहा।

"नहीं, नहीं, समधी जी तो आपके जैसे ही हैं। लेकिन हमारा भी तो कुछ फ़र्ज़ है।" जानकी जी ऐसा कहते हुए चली गयी थी।

खाने के बाद दूल्हा -दुल्हन फेरों के लिए चले गए थे। सभी नज़दीकी रिश्तेदार फेरों को देखने के लिए आकर बैठ गए थे। जानकीजी भी बैठ गयी थी।

समधीजी की बातों ने जानकी जी की धुंधली हो चुकी यादों को दोबारा जीवित कर दिया था। १०वी में आई ही थी कि जानकी जी के मम्मी पापा ने उनकी शादी एक सरकारी नौकरी वाले, तीन भाइयों में बीच वाले भाई से कर दी थी। सरकारी नौकरी वाला लड़का माँ -बाप को अपनी बेटी के सुरक्षित भविष्य के लिए सबसे बेहतर लगता है।

जानकी जी के जेठजी के 2 बेटे थे। शादी के १ साल बाद ही जानकी जी की बड़ी बेटी का जनम हुआ। जेठानी जी को बेटों की माँ होने का बड़ा ही घमंड था। तो जानकी भी बेटे की चाह में, बेटे से भी ज्यादा परिवार में सम्मान पाने की चाह में 25 वर्ष की उम्र तक चार बेटियों की माँ बन गयी थी।

लेकिन जानकी जी के भाग्य में तो कुछ और ही लिखा था। जानकी जी ने एक सड़क दुर्घटना में २५ वर्ष की उम्र में ही अपने पति को खो दिया। जानकी जी के सर पर तो मुसीबतों का पहाड़ ही टूट गया। पति की मृत्यु के शोक के १५ दिन जानकी जी अपने ससुराल रही। उन 15 दिनों में वह समझ गयी थी कि ससुराल वालों की विशेषतया उसके जेठजी की नज़र उसके पति की आकस्मिक मृत्यु के कारण मृतक आश्रित को मिलने वाली सरकारी अनुकम्पा नौकरी पर है। जेठजी ने तो प्रोविडेंट फण्ड के पैसे भी जानकी जी की सास को दिलवाने के सारे हथकंडे अपनाये थे।

पगड़ी की रस्म भी की गयी, जबकि जानकी के कोई बेटा नहीं था तो उसके जेठजी के बड़े बेटे को हो पगड़ी बाँधी गयी .जानकी पर जेठजी के उसी बेटे को गोद लेने के लिए दबाव डाला गया . उनकी वही पुरानी घिसी पीटी दलील थी कि अकेली औरत की जात 4 -4 लड़कियों को कैसे पालेगी। जानकी को समझ आ गया था कि अगर वह अपने पैरों पर खड़ी नहीं हुई तो उसके ससुराल वाले उसे और उसकी बच्चियों को दाने दाने का मोहताज़ बना देंगे। स्वाभिमानी और खुद्दार जानकी तो अपने माँ बाप तक के टुकड़ों पर भी पलने को राज़ी नहीं थी।

"वह जेठजी के बेटे को गोद नहीं लेगी" उसने अपने ससुराल वालों को अपने निर्णय से अवगत करवाया। जेठजी ने अपना अंतिम पासा फेंकते हुए कहा, " फिर तो गयी सरकारी नौकरी। तुम्हारी बेटियां तो अभी बहुत छोटी हैं। सरकारी नौकरी के लिए न्यूनतम आयु १८ वर्ष है। "

जानकी ने जवाब दिया, "पति की जगह वह नौकरी करेगी। "

जेठजी ने व्यंग्य करते हुए कहा, " तू तो १०वी पास भी नहीं है। नौकरी पाने के लिए १०वी पास होना जरूरी है। क्या सरकार तेरे १०वी पास करने के इंतज़ार में बैठी रहेगी। और इस घर की औरतों ने कभी नौकरी की है, जो तू करेगी। "

"मैं इसी साल १०वी की परीक्षा दूँगी और पास भी करूंगी। रही इस घर की औरतों की बात तो, आज तक इतनी कम उम्र में कोई विधवा भी तो नहीं हुई है। " जानकी ने न चाहते हुए भी अपने जेठजी को ईंट का जवाब पत्थर से दिया।

" इस घर का तो अब भगवान ही मालिक है। ससुर समान जेठजी से जबान चलाते इस को ज़रा भी शर्म नहीं आयी। इसके इन्हीं लक्षणों की वजह से देवरजी समय से पूर्व ही स्वर्ग सिधार गए." जानकी की जेठानी जी बड़बड़ाई।

अपने जीवन यापन के लिए अपने बेटे पर निर्भर जानकी की सास एक भी शब्द नहीं बोल पा रही थी। जानती थी कि कुछ भी बोला तो उसे भी जानकी के साथ ही घर से निकाल दिया जाएगा। बेचारी पर पहले ही चार बेटियों की जिम्मेदारी है, पाँचवीं बूढ़ी सास को कैसे सम्हालेगी। बुढ़ापे में तो हारी -बीमारी का खर्च और अलग। इसलिए खून के घूँट पीकर चुप रही। लेकिन मन ही मन खुश भी थी कि जानकी अपने हक़ के लिए आवाज़ उठा रही है।

जानकी तो पहले से ही इन सब के लिए मानसिक रूप से तैयार थी। वह जानती थी कि यह लड़ाई आसान नहीं होगी। 15 दिन समाप्त होते होते जानकी वापस शहर आ गयी, जहाँ उसके पति की नौकरी थी। किसी ने उसे रोका भी नहीं, वह रुकी भी नहीं। शहर आते ही उसने अपने पति के दोस्त की मदद से १०वी की परीक्षा का फॉर्म भरा। उसने अपनी बेटियों के स्कूल की टीचर की मदद से पढ़ाई शुरू की। सुलोचना भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर हो गयी थी, लेकिन उसने अपनी समस्त क्षमताएं पढ़ाई में लगा दी।

अपने बेटियों के लिए सुनहरे भविष्य के सपने ने उसका मनोबल बढ़ाया। अपने सपनों का पीछा करते हुए उसने मेहनत करने में दिन रात एक कर दिए . उसके मम्मी पापा ने उसे प्रेरित किया। आखिर उसकी मेहनत रंग लायी, और वह १०वी में पास हो गयी। उसकी सरकारी नौकरी लग गयी। धीरे धीरे उसने ग्रेजुएशन कम्पलीट कर लिया। विभागीय परीक्षाओं को पास करते करते वह ग्रुप बी अधिकारी के पद तक पहुंच गयी।

नौकरी में रहते हुए ही उसने अपनी बेटियों की शादी भी कर दी। आज चौथी बेटी की शादी भी अच्छे से हो ही जायेगी। सेवानिवृत्त होने पर एक फ्लैट खरीदकर बाकी की ज़िन्दगी सुकून से जीयेगी।

" कन्यादान का मुहूर्त निकला जा रहा है। बहिनजी कन्यादान करिये।" पंडितजी के आवाज़ से जानकी अपने अतीत के गलियारों से वर्तमान में लौट आयी थी।

"जी, पंडित जी।" जानकी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे, वह अपने पति की छोड़ी हुई सब जिम्मेदारियों को पूरा जो कर सकी थी।



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