बिजली का बिल

बिजली का बिल

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अप्रैल माह के अंत में चौथे शनिवार और रविवार की छुट्टियों में हमारे मोहल्ले में रहने वाली एक युवती अपने मैयके गई। कुशल शेम और इधर उधर की कुछ बातो के बाद उन्होंने अपनी माँ को अपनी समस्या बताई कि उनके पतिदेव बिजली के अधिक बिल के लिए टोकते हैं, जबकि खुद ही ऑफिस से आने के बाद निर्बाध रूप से कम से कम १४ घंटे एसी चलाते हैं।

माँ तो माँ होती हैं। पुराना अनुभव, पूर्ण धुरंधर। ज्ञान देने में कोई सानी नहीं। उन्होंने तुरंत युक्ति सुझाई।

फिर क्या था ? युवती खुश ! मई माह में बच्चों के स्कूल की छुट्टियां शुरू हुई। युवती माँ की बताई हुई युक्ति अनुसार रोज दोपहर १२ बजे बच्चों के लेकर, मोहल्ले की अन्य पड़ोसन के यहाँ चली जाएँ। वहां लगभग ५ बजे तक समय गुजारा। दोपहर का खाना भी खाया। सोमवार से शनिवार तक रोज पड़ोसन बदलती रही। जून माह के अंत तक यही क्रम चलता रहा। इस तरह से ४ – ५ घंटे का एसी चलना कम हो गयाहींग लगी न फिटकरी, रंग भी चोखा आया या यू कहिये की एक पंथ दो काज बिजली का बिल भी कम, खाना बनाने का काम भी कम, खाने का बिल भी कम, बच्चे भी खुश और युवती के पतिदेव भी खुश। लेकिन, हम भाग्यशाली हैं ! आप समझ गए होंगे, कि क्यूँ ? दोपहर में हमारा ताला बंद रहता है !


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