बीती रात कमल दल खिले
बीती रात कमल दल खिले
आज इस चर्चा के विषय से तो बचपन याद आ गया, मुझे आज भी याद है कि जन्म दिवस पर बुआ ने मुझे गुड़िया लाकर दी। वह मैं बहुत संभालकर रखती थी और फिर पिताजी ने अगले जन्म-दिवस पर ला दिया गुड्डा तो अपनी सहेलियों के संग हम गुड्डा और गुड़िया की शादी रचाने का खेल रोजाना खेलते। बचपन क्या बीता सारे खेल ही खत्म हो गए।
हम तो फिर भी खेलें हैं गुल्ली-डंडा, गिप्पा, सितोलिया, विषय-अमरूत, खो-खो, कबड्डी इत्यादि, पर दोस्तों आजकल की पीढ़ी का तो इस तकनीकी युग ने खेलना ही बंद कर दिया है।
यह सुनकर अम्मा बोली " बीती रात कमल दल खिले, जिनके ऊपर भौंरे झूले, चिड़िया चहक उठी पेड़ों पर, बहनें लगी हवा अति सुंदर" बेटी बीता समय तो वापस कभी नहीं आएगा, लेकिन उन्हीं यादों के साथ आने वाले कल को संवारना तो हमारे ही हाथ में है।