हरि शंकर गोयल

Comedy

2.5  

हरि शंकर गोयल

Comedy

बी बी सी

बी बी सी

8 mins
368


इस रचना में "आ बैल मुझे मार" मुहावरे का प्रयोग किया गया है 


सन 1971 में भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था तब हम तीसरी कक्षा में पढते थे । पूरे देश में "ब्लैक आउट" था यानि कि सरकार ने बिजली काट रखी थी । इसके पीछे सरकार की यह मंशा बताई जाती थी कि बिजली से गांव शहर की पहचान हो सकती है और पाकिस्तानी विमान वहां पर बम गिरा सकते हैं । इसलिए मोमबत्ती, लालटेन और चिमनी से काम चलाना पड़ रहा था । 


महवा गांव में हमारी हलवाई की दुकान थी जिस पर शाम को अच्छी खासी भीड़ जमा हो जाया करती थी । लोग युद्ध के बारे में तरह तरह की बातें किया करते थे । जितने मुंह उतनी बातें । तब एक सज्जन जिनकी उम्र लगभग 50 वर्ष थी बनियान और धोती में आते थे और कांधे पर ट्रांजिस्टर रखकर लाते थे । उन दिनों टी वी तो क्या , रेडियो भी नहीं होता था घरों में । ट्रांजिस्टर होने के कारण उन सज्जन की इज्ज़त बहुत थी गांव में । उनके आते ही लोग उन्हें कुर्सी ऑफर कर दिया करते थे । वे बड़े गर्व से ट्रांजिस्टर चलाते थे और सबको आकाशवाणी से समाचार सुनाते थे । सब लोग सांस रोककर समाचार सुनते थे । फिर वे ट्रांजिस्टर बंद कर देते थे और लोग उन समाचारों पर टीका टिप्पणी करते रहते थे । वे सज्जन सब कुछ खामोशी से सुनते थे और बाद में छक्का जड़ते हुए कहते "बी बी सी ने यह कहा है , बी बी सी ने वह कहा है । बाकी सब बकवास है, बी बी सी ने जो कहा है, बस वही सत्य है । मैं अभी बी बी सी सुनकर आ रहा हूं" । उसके बाद कुछ कहने की न तो किसी में हिम्मत थी और न ही कोई उस पर विश्वास करता था । बी बी सी मतलब ब्रह्म वाक्य । 


मेरी जिज्ञासा बी बी सी में बढ गई थी । क्या है यह बी बी सी ? बड़े भाईसाहब तब कक्षा 11 तक पढे थे इसलिए वे सबसे ज्यादा पढे लिखे व्यक्ति माने जाते थे । उन्होंने बताया "बी बी सी लंदन से प्रसारित होने वाला एक रेडियो चैनल है जो पूरे संसार के समाचार बताता है" । जाहिर है कि बीबीसी लंदन से प्रसारित होता है तो हिन्दी में तो नहीं होता होगा । फिर कौन सी भाषा में प्रसारित करता होगा वह समाचार ? अंग्रेजी में ? शायद क्या सौ प्रतिशत अंग्रेजी में ही करता होगा । मगर ट्रांजिस्टर वाले सज्जन क्या अंग्रेजी जानते हैं जो वे बी बी सी सुनते हैं ? यह लाख टके का प्रश्न था । हमने डरते डरते भाईसाहब से पूछ लिया तो वे बोले "ये तो शायद स्कूल भी नहीं गया है कभी, ये अंग्रेजी क्या जाने" ? तब मन में आया कि जो व्यक्ति स्कूल भी नहीं गया हो वह व्यक्ति बी बी सी के समाचार कैसे समझ लेता है ? तब पता चला कि जो फ्रॉड लोग होते हैं वे इसी तरह की "गप्पें" हांका करते हैं और बाकी लोग उस पर पलटकर वार भी नहीं कर सकते थे क्योंकि अंग्रेजी के वे एकमात्र घोषित विद्वान थे । अंग्रेजी जानने वाला व्यक्ति तब "देवदूत" से भी बड़ा आदमी समझा जाता था , शायद आज भी समझा जाता है । पर हमें आज भी अपनी मातृभाषा में लिखने पर स्वर्गिक आनंद आता है । शायद हम अंग्रेजी नहीं जानने की कुंठा इसी से दूर कर लेते हैं ।


अब आप कहेंगे कि इतनी लंबी चौड़ी भूमिका बांधने की आवश्यकता क्यों पड़ी ? तो देवियो और सज्जनों, थोड़ा धैर्य धारण कीजिए । हम ये कहना चाहते हैं कि बी बी सी पहले भी BC था और आज भी BC ही है । हां आज तो वह बिग वाला BC है इसलिए वह BBC है । समझ गये ? नहीं ? तो मैं समझाने का प्रयास करता हूं । 


मैं जब कॉलेज में पढता था तब मुझे बड़े बड़े साहित्यकारों को पढने का बड़ा शौक था । मुझे मुंशी प्रेमचंद बहुत पसंद थे । फिर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय । एक दिन मैं कॉलेज के पुस्तकालय से यशपाल जी का "झूठा सच" उठा लाया । उसमें बार बार "बैंचो" और "माचो" शब्द आया । मैं इन्हें समझ नहीं पाया तो मैंने हमारे एक सीनीयर मित्र से इनका मतलब पूछा तो वे पांच मिनट तक हंसते रहे । मैं आश्चर्य से उन्हें देखता रह गया कि इसमें हंसने की क्या बात है । तब उन्होंने मेरे कान में एक एक करके दो गालियां सुनाई जो गांव में हरेक व्यक्ति की जुबान की शोभा बढाती हैं । इन गालियों से ही वे हर वाक्य की शुरुआत करते हैं और इन्हीं से समाप्त भी करते हैं । तब मुझे "बैंचो" यानि BC और "माचो" यानि MC का मतलब पता चला । मुझे यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि यशपाल जैसा महान साहित्यकार ऐसे "अलंकृत" शब्दों का प्रयोग अपनी महान रचना में कर लेते हैं । ये मुझे बाद में पता चला कि वे "प्रगतिशील" साहित्यकार थे और प्रगतिशील होने का मतलब "छंद अलंकृत" भाषा में रचयिता होना है । तो इस तरह BBC का मतलब पता चल गया आपको ? 


अब आप कहेंगे कि आज बी बी सी का जिक्र क्यों ? आजकल बी बी सी के कारण देश में ही नहीं अपितु विश्व में भी कोलाहल मच रहा है तो बी बी सी का जिक्र तो होगा ही । दरअसल बात यह है कि भारत की शक्ति न केवल देश में बढ रही है अपितु विश्व में भी लगातार बढती जा रही है । आज भारत की बात पूरे विश्व में सुनी जाती है । महाशक्तियां कहे जाने वाले देश भी आज भारत की ओर देखकर अपने निर्णय करते हैं । तो यह बात कुछ देश , कुछ लिब्रांडु और भारत में बैठे सत्ता के कुछ ठेकेदारों को कैसे बर्दाश्त हो सकती है ? कुछ लोगों को तो ये लगता है कि सत्ता केवल उनकी मिल्कियत है । उस पर उनका पैदाइशी हक है । जिसने भी उनसे इस हक को छीन लिया है वे इस देश , लोकतंत्र, मानवता के सबसे बड़े दुश्मन हैं । 


तो एक बार फिर से देश में "हुंआ हुंआ" की आवाजें सुनाई देने लगी है । ये आवाजें सन 2002 से लगातार सुनाई दे रही हैं । सन 2002 के बाद न जाने कितने चुनाव हो चुके और न जाने कितने जांच आयोग बन गये । उनकी रिपोर्ट भी आ गयी और सर्वोच्च न्यायालय का फैसला भी आ गया । उस फैसले के विरुद्ध लगाई गई पुनर्विचार याचिका भी निरस्त हो गई तो फिर से एक डॉक्युमेन्ट्री के माध्यम से "बुझी राख" में से "चिंगारी" पैदा कर "ज्वाला" बनाने की कवायद की जा रही है । और इस "टूल किट" में माध्यम बनाया जा रहा है बी बी सी को । जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि बी बी सी तो बिग वाली बी सी है । उसका यह चरित्र पहले भी था और आज भी वैसा ही है यानि साम्राज्यवादी मानसिकता । एक कहावत है कि "नीच न छोड़े नीचता" । तो बीबीसी भी क्यों छोड़े ? वह कोई अलग है क्या ? 


अब बात आती है "मुहब्बत की दुकान" खोलकर बैठे लोगों की । ये बात तो सभी जानते हैं कि इस "मुहब्बत की दुकान" में "नफरत का सामान" थोक के भाव मिलता है । या यों कहें कि "नफरत की फैक्ट्री" का नामकरण आजकल "मुहब्बत की दुकान" हो गया है । अरे भाई, दुकान का नाम बदलने से मालिक थोड़े ही बदल जाता है , मालिक तो वही हैं । कंपनी का "सी ई ओ" किसी "खड़ाऊं" को बना देने से उसका कंपनी पर मालिकाना हक नहीं हो जाता है । वह तो केवल हस्ताक्षर करने की सील भर है । बाकी तो मालिक लोग जो चाहेंगे फैक्ट्री में सामान भी वही बनेगा । और मालिक लोगों का इतिहास सबको पता है । इस मुहब्बत की दुकान में "मौत का सौदागर" और "खून की दलाली" जैसा सामान बनते और बिकते हुए देखा है लोगों ने । ये अलग बात है कि जनता को यह सामान पसंद नहीं आया मगर मालिक लोग तो इसी प्रकार का सामान बनाने के "कुशल कारीगर" हैं तो वे इससे हटकर और दूसरा सामान कैसे बना सकते हैं ? 


मुहब्बत की दुकान में नया सामान बनाने का ठेका बीबीसी को दे दिया गया । बीबीसी ने अपने नाम और अपनी ख्याति के अनुरूप नया सामान (डॉक्युमेंट्री) बनाकर दे दी और मुहब्बत की दुकान वालों ने इसे लपक कर बेचना शुरू कर दिया । मगर उनको यह पता नहीं था कि वे "आ बैल मुझे मार" वाले मुहावरे को दोहरा रहे हैं और अपने हाथों अपनी आत्महत्या कर रहे हैं । इस प्रकार के सामानों से वे पहले भी मार खा चुके हैं मगर पता नहीं इस दुकान के मालिकों के कौन सलाहकार हैं जो उन्हें इस प्रकार के सामान बेचने की सलाह देकर इस दुकान को ही ख़त्म करना चाहते हैं । पर मालिकों के दिमाग में ये बात समझ में क्यों नहीं आती है या फिर वे नफरत में इतने अंधे हो गये हैं कि अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं । मुझे तो लगता है कि वे खुद ही कुल्हाड़ी पर बैठ गये हैं । जब कोई व्यक्ति आत्मघात करने के लिए तैयार बैठा हो तो उसे कोई कैसे रोक सकता है ? गुलाम मानसिकता वालों के लिए गुलामी की प्रतीक बीबीसी मुबारक हो । 


पर देशवासियों को चौकन्ना रहना होगा कि इन गुलामों के फरेब में आकर फिर से वे "गुलाम" न बन जायें । लाखों लोगों के बलिदान से यह आजादी मिली है इसे "चरखे" की क्रांति समझने की भूल मत कर बैठना । सदियों से यह षड्यंत्र परोसा जा रहा है कि "दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल" । इससे बड़ा धोखा और कुछ हो ही नहीं सकता है । अगर ये सच है तो भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस, प्रफुल्ल चाकी, खुदीराम बोस, शचीन्द्रनाथ सान्याल कौन थे ? क्या वे चरखे का सामान बेच रहे थे ? अगर नहीं तो फिर ये लोग हमारे दिलों में क्यों बसे हुए हैं ? मुहब्बत की दुकान में बीबीसी के सामान की बिक्री क्या बता रही है ? यही कि सत्ता के लालच में अंधे होकर लोग देश को फिर से गुलाम बनाने पर तुले हुए हैं । गणतंत्र दिवस पर एक तरफ भारत आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हो रहा है तो वहीं कुछ देशी विदेशी ताकतें इसे फिर से गुलाम बनाने पर तुली हुई हैं । फैसला आपको करना है कि आपको कैसा भारत चाहिए ? गुलाम या आत्मनिर्भर । 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy