मोबाइल बिन क्या जीना यारो
मोबाइल बिन क्या जीना यारो
📱 मोबाइल बिन क्या जीना यारो 😜
— एक चुटीला व्यंग्य
✍️ श्री हरि
कभी जीवन में प्रेमपत्र होते थे — अब प्रेम-स्क्रीनशॉट होते हैं।
कभी मोहब्बत आँखों में बसती थी — अब स्टेटस में बसती है।
कभी दिल टूटता था — अब नेटवर्क टूटता है।
आज का आदमी मोबाइल में नहीं, मोबाइल आदमी में रहता है।
सुबह आँख खुलते ही लोग भगवान का नाम नहीं, व्हाट्सएप नोटिफिकेशन देखते हैं।
सूर्य नमस्कार से पहले इनबॉक्स नमस्कार होता है।
एक समय था जब लोग बालकनी में “गुड मॉर्निंग” कहते थे,
अब वही लोग बाथरूम में बैठकर गुड मॉर्निंग इमोजी भेजते हैं।
जहाँ पहले पतंग उड़ती थी, वहाँ अब डेटा पैक उड़ता है।
जहाँ पहले पड़ोसी से बात होती थी, अब ऑनलाइन स्टेटस देख-देखकर जलन होती है।
बिना मोबाइल के आज कोई खुद को नग्न, निर्बल, निराधार महसूस करता है।
एक बार किसी से मोबाइल छीनकर देखो —
वो ऐसे तिलमिलाएगा जैसे साधु के सामने मटन बिरयानी रख दी हो।
“मोबाइल मेरा अंग है” — आज हर आदमी का जीवन-मंत्र यही है।
माँ बोले — “बेटा, थोड़ा ध्यान पढ़ाई में दे दे।”
बेटा बोले — “माँ, पढ़ तो रहा हूँ, रील्स में ज्ञान ले रहा हूँ।”
बाप बोले — “बेटा, घर चलाने की सोच।”
बेटा बोला — “घर तो चलाऊँगा पापा, पर पहले चार्जर चाहिए।”
मोबाइल के बिना अब कोई प्रेम कहानी अधूरी है।
पंडित जी तक अब शादी में कहते हैं —
“वर-वधू एक-दूसरे का नंबर आदान-प्रदान करें,
और फिर ऑनलाइन सात फेरे लें।”
और राजनीति भी पीछे नहीं —
नेता भाषण से ज़्यादा फिल्टर में फोटो डालता है,
और विपक्षी उसी फोटो पर ट्रोलिंग का फ्लावर माला चढ़ा देता है।
कभी सोचो, अगर धरती से मोबाइल गायब हो जाए —
तो न पति पत्नी को याद करेगा,
न बॉस कर्मचारी को पकड़ेगा,
न बच्चे माँ-बाप को जानेंगे।
सारी दुनिया साइलेंट मोड में चली जाएगी।
इसलिए दोस्तों,
जब तक मोबाइल है,
हमारे भीतर नेटवर्क ऑफ ह्यूमर चालू है।
डेटा खत्म हो सकता है,
पर ड्रामा और चैटिंग कभी नहीं। 😄
मोबाइल बिन क्या जीना यारो,
ये तो आत्मा बिन शरीर जैसा हाल है! 📵
