भुलक्कड़ प्रोफेसर साहब
भुलक्कड़ प्रोफेसर साहब
😄 भुलक्कड़ प्रोफेसर साहब 😄
🤪 तीखा हास्य-व्यंग्य 🤪
✍️ श्री हरि
🗓️ 30.10.2025
हमारे कॉलेज में एक प्रोफेसर हैं — डॉ. भूलन प्रसाद मिश्रा।
नाम सुनते ही लगता है मानो माता-पिता ने भविष्य देख लिया था —
“यह बच्चा बड़ा होकर अपना नाम रोशन करेगा भूल भूल कर”
भूलन प्रसाद हर चीज़ भूल जाते हैं —
पासवर्ड, पर्स, पत्नी का नाम, और कभी-कभी तो ये भी कि वो पति हैं या पीएचडी!
कहते हैं — “मैं ध्यानयोगी हूँ, संसार से विरक्त।”
पर सच्चाई ये है कि वे याद से विरक्त हैं, ध्यान से नहीं।
क्लास में जाते हैं तो बच्चों से पूछते हैं —
“आज कौन-सी पिक्चर चल रही है?”
बच्चे ठहाके लगाते लगाते लोटपोट हो जाते हैं ।
कॉलेज में उन्हें भूलन प्रसाद के नाम से नहीं , भुलक्कड़ प्रोफेसर साहब के नाम से जानते हैं।
वे नोट्स बनाते बनाते "प्रेम पत्र" लिख डालते हैं और प्रिंसिपल साहब को पकड़ा आते हैं। 🤣
एक बार तो उन्होंने कमाल कर दिया —
क्लास में पहुँचे, रोल कॉल शुरू किया —
“रमेश?”
“हाँ सर।”
“सुरेश?”
“हाँ सर।”
“भूलन प्रसाद?”
और फिर खुद बोले — “लगता है आज ये लड़का नहीं आया।”
उनका जीवन एक खुला शोध प्रोजेक्ट है —
‘मस्तिष्क और स्मृति के बीच गायब पुल’ पर।
वे हर दिन साबित करते हैं कि
ज्ञान और याददाश्त दो अलग-अलग विभाग हैं —
जैसे शिक्षा मंत्रालय और रोजगार मंत्रालय।
दोनों का कोई संबंध नहीं।
पत्नी ने अब तो अलार्म घड़ी की जगह ‘रिमाइंडर पत्नी’ बना रखी है।
सुबह उठते ही तकिये के नीचे चिट्ठी रखी रहती है —
“तुम्हारी शादी मुझसे हुई है,
आज गुरुवार है,
चाय बाएँ तरफ़ रखी है,
और दाढ़ी दूसरे चेहरे पर मत बनाना।”
फिर भी प्रोफेसर साहब पढ़ते हैं और मुस्कुराते हैं —
“अरे वाह! कोई प्रेम-पत्र भेज गया!”
एक दिन प्रिंसिपल ने कहा —
“मिश्रा जी, आप भूल क्यों जाते हैं?”
तो बोले — “सर, मैं छोटी बातें याद नहीं रखता।
इसलिए शादी की सालगिरह, बच्चों के नाम, सिलेबस — सब भूल जाता हूँ।”
प्रिंसिपल बोले — “तो आपको बड़ी बातें याद रहती होंगी?”
कहते हैं — “हाँ, जैसे... मैंने कुछ भूलना है, ये बात मुझे हमेशा याद रहती है।”
अब कॉलेज के बच्चे उन्हें “रियल-टाइम हैंग सिस्टम” कहते हैं।
किसी से सवाल पूछो तो पाँच सेकंड बाद जवाब मिलता है —
“कौन, कहाँ, क्या?”
उनका दिमाग़ कंप्यूटर नहीं, पुराना रेडियो है —
पहले वार्मअप होता है, फिर बजता है, और कभी-कभी बीच में सिग्नल चला जाता है।
पर सबसे अद्भुत बात ये है —
भूलन प्रसाद की भूलने की आदत में भी एक स्थिरता है।
वो हर रोज़ नई बात भूलते हैं, पर भूलना नहीं भूलते।
शिक्षा जगत के ऐसे ही महापुरुषों पर भारत टिका है —
जहाँ अध्यापक भूलते हैं, विद्यार्थी रटते हैं,
और दोनों को डिग्री मिल जाती है।
कहते हैं, वे कहते हैं —
“ज्ञान का झरना बहता रहे, याद रहे या न रहे।”
मैंने कहा — “सर, आप ही झरना हैं या रिसाव?”
तो मुस्कुराकर बोले —
“मैं रिसाव नहीं, स्मृति का लीक हो चुका टैंक हूँ!”
और सच में, इस देश के हर ऑफिस, मंत्रालय और यूनिवर्सिटी में
ऐसे सैकड़ों ‘भूलन प्रसाद’ बैठे हैं —
जो कुछ याद नहीं रखते,
फिर भी सब कुछ सिखाते रहते हैं! 😄
