भविष्य (भाग २ )
भविष्य (भाग २ )
(जैसा की हमने पूर्व भाग में पड़ा की राजा अपने भविष्य को लेकर कर बहुत चिंतित थे और इसी चिंता के चलते हुए वह अत्यंत चिंतन करते थे और इसी के चलते हुए वे अपने मन से युद्ध हार गए और उन्हें जान, माल और सम्मान की बहुत हानि हुई फिर वह बचते-बचाते हुए कुछ सैनिकों के साथ महंत जी के पास पहुंचे और उनसे आश्रय और मदद की गुहार की)
भविष्य की अति चिंता को लेकर महाराज अपना आत्म-विश्वास खो चुके है और इसके चलते ही महाराज युद्ध लड़ने का साहस खो चुके है और वे अपने आप को हारा हुआ मान रहे है फिर महाराज अपने हारे हुए मन से अपने कुछ सैनिकों को लेकर दोबारा महंत जी के पास मदद की गुहार लेकर पहुंचे महंत जी महाराज को देख कर थोड़ा क्रोधित हुए और उन्हें फटकार लगाते हुए उन्होंने महाराज से कहा,"अरे! मुर्ख मैंने तुम्हें तुम्हारे कर्मों को सुधारने के लिए बताया था न की उसको बिगाड़ने के लिए और अपने आत्म-विश्वास को खोने के लिए नहीं" यह सुनकर महाराज और भी निराश हो जाते है और उसी वक्त महाराज के पुरोहित जी अजय यज्ञ करने के उनके पास आते है और उनसे उनकी निराशा का कारण पूछते हुए कहते है-" महाराज जब मैं पहले आप से मिला था तो भी आप दुखित थे ये सोच कर की आप इस युद्ध को जीते गे या नहीं तब मैंने आपको महंत जी के पास जाने का परामर्श दिया था जिससे की आप अपना और अपने साम्राज्य का भविष्य जान सके परन्तु महाराज आप तो अब भी दुखित और परेशान प्रतीत होते है, महाराज अब तो आपको अपना भविष्य ज्ञात है तो अब आप क्यों इतना विचलित, दुखित और परेशान प्रतीत होते है" पुरोहित जी की ऐसी बातें सुनकर महाराज के घाव फिर से हरे हो गए और उन्होंने अपनी रुंधी हुई आवाज में पुरोहित जी को कहा, "नहीं पुरोहित जी उन्होंने मेरा भविष्य नहीं अपितु भविष्य में होने वाली मेरी बरबादी का आईना दिखाया है और मैं चाहा कर भी उस आईने को तोड़ नहीं सकता, पुरोहित जी यदि मैं सच बताऊँ तो मैं दिल से हार चूका हूँ, मेरी ज़िन्दगी ने मुझे परास्त कर दिया है, आज मेरी ज़िन्दगी ने मुझे एक ऐसा तमाचा मारा है जिसे सुनकर सारा समाज मेरे पूर्व कर्मों को भूल कर मेरे वर्तमान कर्मों और मेरे हालात को देख कर मेरी ज़िन्दगी को लतीफा बनाकर मुझ पर हंसेगा, और यह सब कुछ देखना मेरे लिए मृत्यु तुल्य होगा, मुझे मेरी ज़िन्दगी नरक के समान प्रतीत हो रही है" महाराज की ऐसी बाते सुनकर पुरोहित जी को बहुत कष्ट हुआ और फिर बड़े करुणा भरे स्वरों में बोले, "महाराज ऐसा महंत जी ने आपको क्या बताया जिससे की आपको आपकी ज़िन्दगी नरक के समान प्रतीत हो रही है" पुरोहित जी की ऐसी बाते सुनकर महाराज ने महंत जी द्वारा बोला गया सम्पूर्ण प्रसंग पुरोहित जी को सुना दिया और रोने लगे यह सुनकर पुरोहित जी दुखित हो गए और कुछ क्षणों के लिए स्तम्भ हो गए मानो उनकी सम्पूर्ण इन्द्रियों ने काम करना बंद कर दिया हो परन्तु कुछ क्षणों के बाद जब उन्हें स्मृति हो आई तो उन्होंने महाराज से कहा, "महाराज! माफ कीजिये गा परन्तु आप भविष्य सुनकर इतने दुखित हो की आप महंत जी की बातों को समझ नहीं पा रहे हो और न ही अपने भीतर बैठे वीर योद्धा को देख पा रहे है, आप सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज़ को देख पा रहे है जोकि सर्वलिखित है, परन्तु महाराज आप उस चीज़ को नहीं देख पा रहे है जो सर्वलिखित नहीं है अर्थात महाराज वह आपके हाथों में है की आप उस अलिखित अर्थात उस कोरे पने को अपने जीवन के लिए कैसे लिखते है" पुरोहित जी की ऐसी बाते सुनकर महाराज बोले, "पुरोहित जी आपके कहने का क्या भाव है कृपया कर स्पष्टता से कहिये, अर्थात आपका कहने का क्या तात्पर्य है" इस पर पुरोहित जी ने कहा, "अवश्य महाराज मैं आपको सब कुछ स्पष्टता से बताता हूँ कृपया कर ध्यान पूर्वक सुनिए और उस पर विचार भी कीजियेगा, "महाराज मैंने आपसे कहा था की आप महंत जी के पास जाइये और अपना और अपने राज्य का भविष्य पता करके आइये परन्तु महाराज मैंने आपसे ये कदापि नहीं कहा था की आप उस भविष्य को अपने सम्पूर्ण जीवन का भविष्य मान कर बैठ जाए, महाराज महंत जी ने आपको आपके जीवन के केवल एक छोटे से हिस्से का भविष्य बताया है परन्तु हे महाराज आपके जीवन के शेष हिस्से का भविष्य तो उन्होंने आप पर छोड़ा है। हे! महाराज ये तो आप पर निर्भर करता है की आप अपने जीवन के शेष हिस्से का भविष्य कैसा चाहते है, महाराज यदि इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति भविष्य को देखे गा तो इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति कर्म को त्याग देगा महाराज क्या आपको पता है की कर्म और भविष्य का परस्पर क्या सम्बन्ध है, कर्म और भविष्य में परस्पर वही सम्बन्ध देखने को मिलता है जो सम्बन्ध दीया का बाती से चाँद का तारो से और अम्बर का सूर्य से होता है ठीक वैसा ही सम्बन्ध होता है कर्म से भविष्य का होता है, भविष्य कर्म के बिना अधूरा है और कर्म भविष्य के बिना अधूरा है, आपका भविष्य आपका आपका कर्म निर्धारित करता है न की आपका भविष्य आपका कर्म निर्धारित करता है आज जो आप कर्म करेंगे वह आने वाले समय में वही कर्म आपके भविष्य के रूप में दृश्य होगा, परन्तु यदि आप कर्म को ही त्याग देंगे तो आपका भविष्य कैसा होगा यह आप अच्छे से अनुमान लगा सकते है की आपका भविष्य क्या होगा "महाराज मैं संक्षेप में आपसे यही कहूँगा की "जब ईश्वर किसी व्यक्ति का भविष्य लिखते है तो वह कभी भी उस व्यक्ति का सम्पूर्ण भविष्य नहीं लिखते है वे केवल उस व्यक्ति के जीवन का आधा भविष्य ही लिखते है और शेष आधा वे उस व्यक्ति पर छोड़ देते है की वह व्यक्ति जैसा कर्म करेगा उसका शेष भविष्य वैसा ही लिखा जाएगा" यह सारा प्रसंग सुनने के बाद महंत जी बोलते है की "हमारा भविष्य हमारे वर्तमान के कर्मों पर निर्धारित होता है अगर महाराज आज आप निराशापूर्ण बात और आत्मविश्वास रहित और साहस रहित हो कर ऐसे बैठ जाएंगे तो आपका और आपके साम्राज्य का भविष्य अवश्यम्भावी ही विनाशकारी ही होगा और आपको इस निराशापूर्ण विचारो से कोई भी निकाल नहीं सकता न हम, और न ही ईश्वर इसको केवल और केवल आप ही इस निराशा को दूर कर सकते हो और अपने भविष्य को सुधार सकते हो, महाराज आपको कुविचारों को छोड़ कर सुविचारों की और ध्यान देना चाहिए" तत्पश्चात महाराज को अपनी हालात का ज्ञान हो आया और वह अपने साहस और आत्म-विश्वास को बटोर कर पुनः रण भूमि में लौटकर पूरे साहस के साथ गया और रण नीतियाँ बना कर अपने उस हारे हुए युद्ध को जित लिया, फिर महाराज अपना शासन पूरी ईमानदारी और प्रेम पूर्वक चलाने लगे और महाराज और उनकी प्रजा प्रसन्नता और शांतिमयी जीवन जीने लगे
जैसे की महाराज ने अपने भविष्य को लेकर बहुत सोच रहे थे, और बिना कर्म के ही हार मान रहे थे वैसे ही बाकि मनुष्य भी करते है, वे भी अपने भविष्य को लेकर अति चिंतित होते है और बिना कर्म के ही सफल भविष्य पाना चाहते है किन्तु ऐसा मुमकिन नहीं होता, हमें बिना अधिक सोच-विचार किये अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए और परिणाम को भविष्य पर छोड़ देना चाहिए व्यक्ति को सदैव वर्तमान में जीना चाहिए, भूतकाल की बुरी यादों को भूल जाना चाहिए और भविष्य के बारे अत्य-अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए अर्थात "व्यक्ति अपने भविष्य का खुद ही निर्माता होता है अब वह उस व्यक्ति पर निर्भर करता हैं की वह अपने भविष्य का निर्माण किस तरह करता है (अच्छा या बुरा????)