Sakshi Nagwan

Drama

5.0  

Sakshi Nagwan

Drama

आजादी की उड़ान

आजादी की उड़ान

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एक राज्य में दिग्विजय नाम का एक राजा राज्य करता था वह सवभाव से बहुत ही नेक था वह अपने राज्य में हर व्यक्ति से स्नेही का भाव रखता था और उनकी हर  मुश्किलों को सुलझाने का पूरा पूरा प्रयास करता था परन्तु उनकी बेटी उससे बिलकुल अलग थी उसके पिता जोकि खुद से पहले ओरो की  बारे में सोचते  थे वही उनकी बेटी ओरो से पहले अपने बारे में सोचती थी  

   एक दिन राजा अपने महल की घूमकर हर किसी की मुश्किलों का हल कर रहे थे वह घूमते -घूमते राजकुमारी की कक्ष में पहुंच गए वह जैसे ही उनके  कक्ष में  गए तो उन्होंने देखा की राजकुमारी अपने कक्ष में थे ही नहीं  इस पर  वह राजकुमारी के कक्ष से बहार निकलने की लिए मुड़ गए जाते -जाते राजा के  बजीर की नज़र राजकुमारी की उस तोते पर गई जो की बड़े दुखी हृदय से आवाज निकल रहा था मनो वह कहा रहा हो की मुझे आजाद कर दो मुझे जीने के लिए एक खुला आसमान दे दो यह देखते ही उसने राजा से कहा "ठहरिये महाराज " यह सुनते ही महाराज रुक गए और उन्होंने बोला "क्या हुआ वज़ीर इस तरह रोकने का क्या कारण है, मुझे बताओ" यह सुनते ही उसने कहा, "क्षमा कीजिये महाराज मै विवश हूँ परन्तु मैने कुछ ऐसा देखा जिस की वज़ह से में आपको रोकने पर विवश हो गया उसकी ऐसे बाते सुन कर महाराज ने कहा, "साफ -साफ कहो वज़ीर तुम ने ऐसा क्या देखा ज से तुम ने ऐसा क्या देखा जिसको देखते ही तुम मुझे रोकने पर विवश हो गए" इस पर उसने कहा, " महाराज आज आप हर किसी मुश्किलों का हल कर रहे हो तो क्या आप राजकुमारी की इस तोते की मुश्किलों का हल नहीं करेंगे क्या इस पर महाराज ने मुस्कुराते हुए कहा,"मुश्किलों का हल उसका किया जाता है जो किसी मुश्किल में हो, या किसी दुविधा में हो और इस तोते की साथ तो मुझे ऐसा कुछ भी नहीं लगता" यह राजकुमारी का तोता है वह इस तोते का ख्याल खुद से भी ज्यादा रखती है वह इस तोते से बेहद प्यार जो करती है अब तुम ही बताओ वज़ीर की " यह तोता कौन सी मुश्किल में है, उसे कौन सी दुविधा घेरे हुए है "महाराज की ये सब बाते सुन कर वज़ीर ने कहा,  "महाराज  मै अपनी  इस  बात  को साबित करने में सक्षम हूँ की ये तोता बेहद दुखी है परन्तु उसको साबित करने के लिए मुझे बेड़ियों की आवश्यक्ता पड़ेगी  इस पर महाराज ने कहा अवश्य तुम्हे सब कुछ मिलेगा इस बात  को साबित करने के लिए परन्तु याद रहे अगर तुम अपनी बात को साबित करने में असफल रहे तो तुम्हे सजा के रूप में देश निकाला दिया जाएगा  महाराज की ये सब बाते सुनकर बजीर  ने कहा , “ निश्चिन्त रहिये महाराज मै आपको निराश नहीं करूंगा महाराज वज़ीर के लिए बेड़िया मंगवाई और बेड़िया देते हुए कहा, तुम इन बेड़ियों का क्या करना चाहते हो? इस पर वज़ीर हँसते हुए बोला,"महाराज ये बेड़िया मै आपको बांधने वाला हूँ वज़ीर की ऐसे बसुनकर महाराज ने बड़े क्रोध में कहा " तुम्हारी हिमत भी कैसे हुई, तुम मुझे बंधी बनाओगे   ये  सुनने के बाद बजीर ने कहा , “ महाराज मुझे क्षमा कीजिये  परन्तु आप ने ही मुझे अधिकार दिया था की मै अपनी बात को सिद्ध करने के लिए किसी भी चीज का सहारा ले सकता हूँ ये सब सुनने के बाद महाराज ने कहा , “ठीक है तुम्हारे पास सिर्फ २४ घंटो का समय है इस समय के दौरान तुम कुछ भी कर सकते हो और अगर तुम इन २४ घंटो के भीतर अपनी बात सिद्ध न कर पाए तो मुझे मजबूरन तुम्हे दंड देना पड़ेगा महाराज की ये बाटे सुनने के बाद वज़ीर ने कहा “महाराज मै २४ घंटे नहीं बल्कि  मै  आज  शाम तक ही अपनी बात को साबित कर  दूँगा परन्तु उस के लिए आपको शाम तक इन बेड़ियों में  बंध कर रहना पड़ेगा वज़ीर की ये बाते सुनकर महाराज ने ये सोचा , “आज शाम  तक की ही तो बात है और बेड़ियों में रहना कोई कष्टदाई काम भी नहीं है ” ये सब कुछ सोचने के बाद महाराज ने वज़ीर से कहा , “ठीक है में शाम तक बंधी  बनने के लिए तैयार हूँ तुम  मुझे बेड़िया पहना सकते हो महाराज की ये सब बातें सुनकर बजीर ने महाराज को बेड़ियों में जकड लिया  

  शुरुवात में तो महाराज को उन बेड़ियों से कोई तकलीफ नहीं हुई परन्तु जैसे जैसे वक़्त बढ़ता गया वैसे वैसे महाराज की तकलीफ बढ़ती गए उन बेड़ियों के रहते महाराज को भोजन परोसा गया जैसे ही महाराज ने भोजन  देखा  की अब वज़ीर उन की  बेड़िया कुछ क्षणों के लिए खोल देगा परन्ने ऐसा कुछ नहीं किया उसने महाराज से ये कहा , “अरे महाराज आप भोजन क्यों नहीं कर रहे है तो महाराज ने बड़े बुझे हुए मन से कहा , “कैसे खो मै तो इन बेड़ियों में बंधा हुआ हूँ क्या तुम मेरी बेड़िया कुछ पलों के लिए खोल सकते हो जिससे की मै अपना भोजन कर सकू उसके बाद तुम मुझे फिर से बेड़िया डाल देना यह सुनने के  बाद उसने महाराज से कहा , "क्षमा कीजिये महाराज मै मजबूर हूँ वादे के मुताबित शाम से पहले मै आपकी बेड़िया खोल नहीं सकता और रही बात भोजन की आज मै अपने हाथो से आपको भोजन कराऊंगा                 

  जब  वज़ीर राजा को भोजन  खिला  रहा  था  तो  राजा  को  मन ही मन बड़ा  गुस्सा  आ  रहा  था  और  वह  ये  सोच  रहा था की  ये वज़ीर मुझे बंधी बना  कर क्या साबित करना चाहता है महाराज को बंधी बने  पुरे पांच घंटे बीत चुके थे  उस वक़्त गरमियों की दोपहरी  थी और महाराज जहा पर बैठे थे वह पर सूरज की सीधी किरणें पड़ रही थी महाराज को उस गर्मी से काफी परेशानी हो रही थी वह बड़े आक्रोश के  साथ बोले ,”सिपाही ” यह सुनकर सिपाही महाराज के पास गया और बोला , “परणाम महाराज क्या आपको कुछ चाहिए ?” यह सुनकर महाराज ने बड़े क्रोध में बोला ,”अरे मूर्ख ! क्या तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है क्या की मैं कब से इस गर्मी में इतनी कड़ी धूप में बंधी बनाकर  रखा हुआ है , मैं तुम्हें हुक्म देता हूँ की मेरा सिंघासन छाव में रखा जाए यह सुनकर सिपाही ने बड़े डर कर कहा , “क्षमा कीजिये महाराज हम मजबूर है क्योकि हम बजीर साहब के होकुम में बंधे हुए है उन्होंने हमें  यह कहा था की हम में से कोई भी आपकी बेड़िया न खोले और बजीर  साहब इस वकत  किसी काम से गए है जब तक वे नहीं आ जाते आपको यही पर बैठ कर अपना वकत गुजरना पड़े  गा यह सब   बाते सुनकर राजा को बजीर पर बहुत क्रोध आ रहा था की आखिर वह जाताना क्या चाहता है मुझे इस तरह से तकलीफ  एवं पडतडित कर के क्या हांसिल  होगा कुछ  समय बाद बजीर आ जाता है और महाराज को ऐसी  चिलचिलाती धुप में  बैठा देख कर वह मन ही मन काफी दुखी हो रहा था परन्तु फिर उसने अपनी भावनाओ पर काबू पाया और उसने महाराज से क्षमा मांगी और फिर उसने महाराज का सिंघासन छाव में लगा दिया 

   दिन बढ़ता गया और उस बढ़ते दिन के साथ साथ महाराज की परेशानिया भी बढ़ती जा रही थी उनके गुस्से और सबर का बांध टूट रहा था और वज़ीर उनके सबर और गुस्से के बांध को टूटता देख मन ही मन काफी विचलित हो रहा था यह सोच कर न जाने महाराज के इस क्रोध से न जाने मेरा क्या होगा आखिर अब वो समय समापत हो चूका था जिसके भीतर उसे अपनी बात को साबित करना था 

   उस वकत महाराज के मन में यही चल रहा था की आखिर वज़ीर के दिमाग में ऐसा क्या चल रहा है जिसके की वो मुझे अवगत करवाना चाहता है वज़ीर महाराज के पास आया और महाराज की बेड़िया खोलते हुए कहा,"महाराज सबसे पहले तो मैं आपसे माफ़ी मांगना चाहता हूँ की मेरी वज़ह से आपको इतनी परेशानी उठानी पड़ी इस पर महाराज ने कहा , "कोई बात नहीं वज़ीर हम महाराज है और अपने राज्य के हित के लिए एक महाराज को     अनेको कष्ट झेलने पड़ते है परन्तु तुम यह सब छोड़ो तुमने जिस कारण हेतु मुझे इतना कष्ट झेलने के लिए मजबूर किया आखिर वह कारण क्या है आखिर तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है हम से भी अपनी सोच को साझा करो क्या पता तुम्हारी एक सोच हमारे राज्य का काया पलट ही  कर दे इस पर बजीर ने बड़ी विनम्रता के साथ जवाब देते हुए कहा , “महाराज जो मेरी सोच है वह शायद आपके राज्य के लिए कोई बड़ी सोच नहीं कहलाएगी परन्तु मेरी यह सोच मानवता की दृष्टि  से काफी बड़ी है अगर मेरी  यह सोच इस समाज ने अपना ली तो समाज में मानवता का एक अलग अध्याय लिखा जाएगा महाराज मैं आपसे पूछता हूँ की  “ आज जो आपने इन बेड़ियों में जो १६ घंटे बिताए वह वक्त आपके लिए कैसे साबित हुए इस पर महाराज ने उतर दिया , मेने जो ये १६ घंटे इन बेड़ियों में बिताए है वे बहुत ही कष्टदाई है बेशक किसी ने मुझे कोई कष्ट नहीं होने दिया परन्तु फिर भी मुझे ऐसे लग रहा था मनो मेरी ज़िन्दगी की डोर किसी ओर के हाथो में चले गए हो मेरे पास मेरी सांसे अवश्य थी परन्तु मानो वो किसी ओर के इशारो पर ही चल रही  थे वे हालत मेरे लिए बहुत ही पेचीदा साबित हुए थे इतना पेचीदा तो मुझे तब भी मुझे महसूस  नहीं होता था जब रणभूमि में मेरा शत्रु बेहद अकर्मक हो जाता है ये १६ घंटे मेरे लिए १६ जनम के बराबर परतीत हो रहें थे मुझे ऐसे लग रहा था मानो मेरा अस्तित्व ही मिटता चला जा रहा था मेरे लिए १ -१ घंटा निकलना उन बेड़ियों में बेहद  कष्टदायी एवं भारी था असा नहीं है की मैं कभी बंधी नहीं बना परन्तु उसमे और इसमें जमीन आसमान का अंतर मिलता है उसमे मेरा एक  रुतबा हमेशा बना रहता है क्योकि उस वक्त मैं अपनी प्रजा हेतु प्रयास कर  रहा होता हूँ और मुझे यह भी कही न कही आस होती है की जिस किसी ने भी मुझे बंधी बनाया है वह कभी न कभी किसी न किसी ढंग से मेरे आगे झुक ही जाएगा परन्तु इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है यहाँ न तो मैं बंधी हूँ और न आजाद ही ऐसे में न तो व्यक्ति खुद को आजाद समझ है और  न ही बंधी समझ सकता है बस वह व्यक्ति हर पल घुटता  ही चला जाता है 

        महाराज की ऐसे बाते सुनने के बाद वज़ीर ने कहा "महाराज आपने तो मेरी बात को कहने से पहले ही आपने मेरी सारी बात कह डाली इस पर महाराज ने कहा, " मैं समझा नहीं " इस पर वज़ीर ने कहा हाँ महाराज आप समझ ही तो नहीं रहें है महाराज क्या आपको आज सुबह राजकुमारी का वो तोता याद है जो की २४ घंटे उस पिंजरे में बंद रहता है आज सुबह वह तोता मुझे इस कदर देख रहा था मानो मुझे कह रहा हो की मुझे आजाद कर दो मैं भी आपने साथियो की तरह आजादी की उड़ान भरना चाहता हूँ महाराज क्या आपको याद है राजकुमारी को यह तोता लगभग ७-८ महीने पहले गमले के पास जख्मी हालत में मिला था उन्होंने इस तोते की बड़े निस्वार्थ भाव से सेवा की और उसे ठीक कर दिया यहा तक तो राजकुमारी ने भरपूर मानवता निभाई परन्तु उसके बाद जो उन्होंने किया  वह मानवता के बिलकुल  खिलाफ  था उन्होंने उस तोते को ठीक कर के उसे पूरी ज़िन्दगी के लिए अपनी कैद में रख लिया उसे अपने प्यार और मोह में बांध कर अपने पास रख लिया प्यार और मोह अच्छी बात है परन्तु उस प्यार और मोह में पद कर उसे कैद कर लेना यह बहुत ही गलत बात है जिसमे हमें यह पता है की वह एक बेजुबान पंछी है जो की उड़ान भरने के लिए बना है बेशक आप उसको जितना मर्जी प्रेम से रख लो परन्तु वह कभी खुश नहीं रह पाएगा वह तभी खुश होगा जब वह आसमान में अपनी उड़ान भरे गए जब वह उस पिंजरे से अपनों को आजादी की उड़ान भरते देखता होगा तो न चाहते हुए भी एक बार तो वह अपने पंख जरूर फड़फड़ाता होगा फिर खुद को पिंजरे में बंद देख कर यह सोचता होगा काश कोई उसका ये पिंजरा खोल दे ताकि वह एक ऐसी तेज उड़ान भरे की फिर से इस पिंजरे में ना आ सके                               

        महाराज भगवान ने जब इस सृष्टि की रचना की थी तो भगवान ने सभी को एक वरदान दिया था की "मैने तुम्हे जो ये अनमोल जीवन दिया है उस जीवन पर सिर्फ तुम्हारा ही अधिकार होगा अगर तुम्हारा ये अधिकार तुमसे किसी ने छीनने का प्रयास किया तो तुम्हे अपने अधिकार हेतु जो कुछ भी करना चाहते हो तुम्हे कोई रोक नहीं होगी बेशक उस अधिकार को पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हो तुम पूर्ण रूप सवतंत्र हो यह सब कुछ महाराज कह कर के वज़ीर ने बोला "तो महाराज उस तोते के पास भी तो वही सब अधिकार है तो फिर उस तोते को अपनी ज़िंदगी पूर्ण सवतंत्रा से जीने का अधिकार क्यों नहीं है महाराज आपके राज्य में हर एक को अपनी ज़िंदगी सवतंत्रा से जीने का अधिकार है परन्तु महाराज आपके राज्य में इस तोते के अधिकारों का हनन हुआ है क्या उसे अपनी जिंदगी पूर्ण सवतंत्रा से जीने का अधिकार नहीं है महाराज उसे भी वो अधिकार होना चाहिए उसे भी ओरो की तरह आजादी की उड़ान भरने का अधिकार होना चाहिए किसी ने क्या खूब कहा है महाराज" इंसान बेशक अपनी जुबान से कुछ न बोले परन्तु उस व्यक्ति का चेहरा और आँखे सब कुछ बोल देती है और आज ये उस बेजुबान तोते ने साबित कर दिया है आज जब सुबह मैने उस तोते की और देखा तो मुझे उस तोते का दर्द साफ-साफ नजर आ गया था उसकी आँखों में तड़प, दर्द , अपनों से बिछुड़ने का दर्द अपनी लाचारी सब कुछ साफ नजर आ चूका था महाराज क्या आपको उस तोते की तकलीफ नजर नहीं आती या आप जान-बुझ कर देखना नहीं चाहते इस वज़ह से की यह तोता ओर किसी का नहीं बल्कि राजकुमारी का है और आप राजकुमारी को तकलीफ में नहीं देख सकते परन्तु महाराज मै आपको एक बात बताना चाहता हूँ किसी बेजुबान को कैद में रखना कोई पुण्य का काम नहीं है

         अपने वज़ीर के ऐसी बाते सुन कर महाराज रोने लगे और उन्होंने अपने वज़ीर से कहा, "मै मानता हूँ की मै दोषी हूँ मै अपने राज्य में हर किसी का कष्ट दूर किया है परन्तु मै अपने ही महल में रह रहे इस तोते का कष्ट क्यों नहीं देख पाया, आज मै कुछ घंटो के लिए कैद में क्या रहा मै बोखला गया मेरे गुस्से की कोई सीमा ही नहीं रही परन्तु वह तोता तो २४ घंटे उस पिंजरे में बंद रहता है न जाने उसको कैसा लगता होगा, कैसे सहन करता होगा यह सोच कर की वह पंछी होते हुए भी आज वो इस पिंजरे में कैद है न जाने उस के मन में कितने सवाल उमड़ कर आते होंगे जब वह अपने साथियो को ऊँची-ऊँची उड़ान भरता देखता होगा, उसके मन में भी उन को देख कर आजादी की उड़ान भरने का ख्याल आता होगा की वह भी इस खुले आसमान की सैर करे खुल कर उस आसमान में साँस ले मै गुन्हेगार हूँ उस तोते का जितनी की मेरी बेटी गुन्हेगार है उस बेजुबान तोते की मैने अपनी बेटी की खुशियों के खातिर उस नाजुक की ज़िन्दगी को दाव पे लगा दिया मैने उसकी ज़िन्दगी की आजादी उससे छीन ली सिर्फ अपनी बेटी की खुशियों के लिए मै ये भूल गया की वह भी किसी के संतान है मै ये कैसे भूल गया की आखिर यह भी तो एक जीवित प्राणी है और हर जीवित प्राणी को उसकी ज़िन्दगी आजादी से जीने का अधिकार है और यह अधिकार उससे कोई   नहीं  चीन  सकता परन्तु मेने इस तोते  का  अधिकार चीन है मै इसका  गुन्हेगार हु और मेरे इन गुनाहो की कोई सजा नहीं है इसका सिर्फ पश्चाताप ही है मै बेशक इसको आज के आज इसे आजाद कर दू परन्तु इसने जो अपनी ज़िन्दगी    के ८  महीने जो कैद में बिताए है उसकी  आजादी मै इसे लोटा नहीं पाउगा मै इसका सबसे  बड़ा गुन्हेगार हूँ और  यह पश्चाताप मुझे अपनी ज़िन्दगी के आखरी पल तक रहेगा इतना सब कुछ कहने और सुनने के बाद महाराज ने अपने बजीर से कहा , “ मै आज ही राजकुमारी से इसकी आजादी की बात करुगा  और उन्हें समझने का प्रयास करुगा की वे जुनु को छोड़ दे उसे आजाद कर दे “ इतने  में ही बजीर ने महाराज की बात काटते हुए कहा , “महाराज ” फिर महाराज ने कहा , “क्या हुआ इस तरह रोकने का प्रयास क्यों  किया  इस पर  वज़ीर ने महाराज से धीमी  आवाज में कहा ,”महाराज ,राजकुमारी ”

    यहाँ सुनते ही महाराज दौड़ कर राजकुमारी के पास  गए और बोला , “राजकुमारी आप सुबह से कहा पर थी ?” राजकुमारी ने अपने पिता के सवालो  का जवाब देते हुए  कहा , “मै बाजार गई थी जुनु का पिंजरा टूट चूका है बस वही लेने गए थी परन्तु बाजार में उसके लायक वो पिंजरा मुझे मिला ही नहीं अपनी बेटी की ये सब बाते सुन कर महाराज ने बड़े प्यार से कहा , “राजकुमारी अब तुम्हे पिंजरा खरीदने की कोई जरुरत नहीं पड़ेगी ” यह सुनकर राजकुमारी बड़ी बोखला कर बोल उठी , “आप ऐसा क्यों कह रहे है , जुनु ठीक है न पिता जी ? “ उसके पिता ने कह ,” बेटी जुनु शारारिक तोर से तो बिल्कुल ठीक है परन्तु वह मानसिक रूप से वह बहुत  बीमार   है ” ये सब बाते सुन कर राजकुमारी ने अपने पिता से कहा , “पिता जी आप साफ -साफ कहिये आप कहना क्या चाहते  है इस पर उसके पिता ने कहा ,”आज मै तुमसे एक सवाल पूछता हूँ की अगर तुम्हे यह पता चले की तुम्हे कोई इंसान पूरी ज़िन्दगी कैद में रखेगा तो तुम्हे कैसा लगेगा अपने पिता के इस सवाल का जवाब देते हुए कहा  , “पिता जी वैसे तो ऐसा दिन कभी नहीं आएगा परन्तु अगर बदनसीबी से वह समय आ गया तो मै जीते जी मर  जाऊंगी मै  अपनी ज़िन्दगी की डोर भगवान के  अलावा   ओर किसी  के हाथो में नहीं सौंप  सकती हूँ मै अपनी पूरी  ज़िकिसी ओर के इशारो पर जीना नहीं चाहती हूँ मै एक आजाद देश में रहने वाली और मै अपनी आजादी छीनने का अधिकार  किसी को नहीं दूँगी किसी को यह अधिकार नहीं है की वह मेरी  आजादी मुझ से छीन ले एक वक्त के लिए मै अपनी सांसे छीनने का अधिकार किसी और को दे सकती हूँ परन्तु मै अपनी आजादी छीनने का अधिकार किसी और को नहीं दे सकती हूँ क्योंकी आजादी मेरा नहीं बल्कि सबका जन्म सिद्ध अधिकार है और इस को छीनने का अधिकार किसी और को नहीं होना चाहिए  

      राजकुमारी की ये सब बाते सुनकर महाराज ने कहा , “तो फिर तुम अपने तोते के अधिकारों को क्यों छीन  रही हूँ , तुम तो इंसान हो बोल सकते हो , सोच और समझ सकते हो ,अपने दुःख दर्द सब से बाँट सकते हो परन्तु यह तो एक बेजुबान सा   पंछी है यह तो अपने मन की व्यथा किसी ओर को सुना भी नहीं सकता बस वह तो उस पिंजरे में बैठ कर अपने साथियो को उस खुले आसमान  में उड़ान भरता ही देख सकता है तुम ही सोचो जिसका जन्म ही आकाश में  उड़ान भरने के लिए हुआ हो तो उसे कैसा महसूस होता होगा जब उसे दिन के २४ घंटे उस पिंजरे में बंद रहना पड़ता होगा उसके पंख दिन में १०० बार फड़फड़ाते होंगे सिर्फ एक  उड़ान  के  लिए परन्तु उस पिंजरे की चार दीवारी को देखते ही उसके पंख भी फड़फड़ाना भूल जाते होंगे उसकी  हर आवाज दिन में कितनी दफा तुमसे आजादी की गुहार लगाती होगी वह एक आजाद पंछी है तुम ज्यादा दिनों तक उसे कैद करके नहीं रख सकती  हो जिस तरह तुम हवा , पानी ओर रौशनी को अपने नियंत्रण में नहीं रख सकती हो ठीक उसे प्रकार तुम पंछी को भी अपने नियंत्रण में नहीं  रख सकती हो उस  की  उड़ान पर तुम कभी अपना  नियंत्रण नहीं पा सकती हो , क्योकि  तुम किसी की उड़ान को  कभी  भी अपने काबू में नहीं कर सकते हो वह आज नहीं तो कल इस पिजरे से  उड़ कर उस  खुले  आसमान में अपनी उड़ान भर ही देगा , और वो उड़ान इतनी तेज होगी की तुम  उसकी उड़ान को भांप भी नहीं सकोगी अपने पिता की ये सब बाते सुन कर उसने बड़े दुखी हृदय  से कहा , “पिता जी मने उसको जीवन दान दिया  है मने उसके प्राणो की रक्षा की है उसको जीवन दान दिया है ऐसे में अगर मने उसे अपने पास रख भी लिया तो क्या गुन्हा किया राजकुमारी की ऐसे बाते सुनकर महाराज ने कहा , “किसी को जीवन दान देने का यह मतलब नहीं की उस की ज़िन्दगी अब तुम्हारी हो गई उसकी ज़िन्दगी पर  तुम्हारा हक़ उससे ज्यादा हो गया , या उसकी सांसो पर तुम्हारी हिसेदारी हो गई हो  तुमने जीवन दान की बात की है तो  वैध भी तो यही करता है फिर तुम ही बताओ उस वैध ने तो कभी यह नहीं कहा की  उस मरीज़ की ज़िन्दगी पर उसका हक़ है क्योकि उसने उसे जीवन दान दिया है उसके प्राणो की रक्षा की है फिर तुम ऐसे कैसे बोल सकती  हो की तुमने उसे जीवन दान दिया है तो तुम उसको को जीवन भर उसे अपने पास कैद करके रखना  कोई अपराध नहीं है

 राजकुमारी इंदुमती मै तुमसे ज्यादा कुछ नहीं कहुंगी बस इतना ही कहूँगा की तुम उस तोते को आजाद कर दो इसी में तुम्हारा बड़पन है यही न्याय है और इसी से  तुम्हारे मन में जो उसके प्रति प्रेम और दया का भाव है वह इसी एक मात्र कदम से सिद्ध  होगा मै जानता हूँ की यह तुम्हारे लिए कठिन होगा परन्तु तुम्हें कदम उठाना होगा उस के प्रति जो तुम्हारा प्रेम है जो दया है और सहानुभूति बहरी उसे के लिए तुम्हें यह कदम उठाना होगा उसकी आजादी से तुम उससे दूर  नहीं बल्कि तुम उसके और भी करीब चली जाओगी मेरे कहने का मतलब यह है की जितनी ख़ुशी तुम उसको अपने पास रखकर दे रही हो उससे कई ज्यादा ख़ुशी उसे तब मिलेगी जब तुम उसे आजाद करोगी उस आजादी से जो वो अपनी पहेली  आजादी की उड़ान भरेगा उस वक्त उसकी ख़ुशी इतनी अधिक होगी की हम में से कोई भी उसकी इस ख़ुशी का अंदाजा भी नहीं लगा पाएगे इस लिए तुम्हे उस की खुशियों के लिए तुम्हे उसे आजाद करना ही होगा 

       अपने पिता  की  ऐसी बाते सुन कर राजकुमारी रो पड़ी और  बोली , “पिता जी मुझे क्षमा कर दीजिये मै जुनु की दोस्त नहीं बल्कि मै उसकी सबसे बड़ी दुश्मन हूँ अगर मै उसकी मित्र होती तो  मै कभी  भी उसको इस कदर कैद कर के न रखती , उसकी आजादी न लेती ,और न उसके पंखो को फड़फड़ाने से रोकती पर  आज मै अपनी इस भूल को सुधारना चाहती हूँ मै आज  जुनु को आजाद करती हूँ आज से उसे अपने पंखो को फड़फड़ाने से रोकना  नहीं पड़ेगा आज से जुनु बिना किसी डर से अपनी पहली आजादी की उड़ान भर  सकता है राजकुमारी की ऐसी  बाते  सुन कर महाराज बहुत खुश  हो गई राजकुमारी ने अपनी बांधियो से कहा की  जा कर जुनु को ले आओ बांधिया  जुनु को  ले आए जुनु को देख कर राजकुमारी की आंखे  नाम हो गई वह कुछ देर तक जुनु को निहारती रही और फिर जुनु से माफी मांगते हुए धीरे -धीरे जुनु का पिंजरा खोलने लगी वह जैसे-जैसे जुनु का पिंजरा खोल रही थी वैसे-वैसे जुनु की आँखों की चमक भी बाद रही थी उसकी आँखों में इतनी चमक राजकुमारी ने पहली बार देखी ही राजकुमारी ने उसका पूरा पिंजरा खोला वैसे ही जुनु ने एक बहुत ही तेज उड़ान भरी उसकी ऐसी उड़ान देख कर सारे आश्चर्यचकित रह गए उसको देख कर ऐसा लग रह था मानो किसी बेजान शरीर में शक्ति और ऊर्जा का संचालन हो गया हो वह जिस तरह इधर-उधर उड़ रह था मानो उसने आज ही उड़ान भरनी सीखी हो उसे इस तरह खुश देखकर राजकुमारी भी मन ही मन बहुत खुश हो रही थी जुनु ने आज तक कभी खुल कर साँस नहीं ली थी परन्तु आज आजाद होते ही उसने खुले दिल से साँस ली है जिसमे डर और बधगी की कोई जगह नहीं थी

     उस दिन के बाद जुनु आज भी राजकुमारी के पास आता है और उनके साथ खेलता है और खेलते ही वह उड़ कर अपने घर चला जाता है खेलता वह पहले भी था आजादी से नहीं लेकिन आज उसके पास दोनों चीजे है आज वो आजादी से राजकुमारी के साथ खेलता है परन्तु वह पहले बंदिशों में रह कर खेलता था आजादी और गुलामी दो ऐसी चीजे होती है जो एक इंसान के जीवन की काया पलट करने की ताकत रक्त है अर्थात इस कहानी का सार यही है न तो गुलाम बनो और न किसी को अपना गुलाम बनाओ आजाद बनो और ओरो को भी आजाद बनाओ आजादी ही एक खुशहाल देश की नीव है आजादी के बिना किसी देश या व्यक्ति का कोई अस्तित्व रही रहता गुलामी हर किसी का अस्तित्व मिटाने की ताकत रखता है जिस तरह ज़िन्दगी को जीने के लिए हवा,पानी,खाना चाहिए वैसे ही इन सब के साथ-साथ आजादी का भी होना अनिवार्य होता है क्योकि आजादी हमारे लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता है यही एक मात्र सीढ़ी है जिससे की हम अपना वर्चस्व स्थापित कर सकते है जिस तरह से जुनु ने आजादी पा कर अपनी ज़िन्दगी में पहली बार अपनी आजादी की पहली उड़ान भरी वैसे ही इस समाज का हर एक व्यक्ति आजादी पा कर सफलता की उड़ान भरे जिस से इस समाज का एक मजबूत वर्चस्व स्थापित हो और देश को तरक्की के मार्ग पर ले जाए  



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