Sakshi Nagwan

Inspirational

4.9  

Sakshi Nagwan

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कामयाबी की सीढ़ी

कामयाबी की सीढ़ी

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एक शहर में कुश नाम का एक लड़का रहता था। कुश स्वभाव से बहुत ही नेक था। वह हर किसी की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहता था। वह पढ़ाई में बहुत ही अच्छा था। वह अपनी कक्षा में हर बार प्रथम आया करता था। वह सीबीएसई का टॉपर था। उसने बारहवी के बाद यूनिवर्सिटी से अपनी बैचलर्स की वह यूनिवर्सिटी का गोल्ड मैडेलिस्ट था। उसके पिता ने उसकी पढ़ाई को देखते हुए उन्होंने कुश से कहा, "बेटा कुश इस बार तुमने बैचलर्स काफी अच्छे नम्बरो से पार की है। बेटा अब तुम अपनी सिविल की तैयारी शुरू कर दो"


अपने पिता की ये सब बाते सुन कर कुश ने हँस कर कहा, "पापा जो आप मुझे अब कह रहे हो। यह तो मैने तभी सोच लिया था जब मैने दसवीं कक्षा में दाखिला लिया था। मैने तभी से तैयारी शुरू कर दी थी। अपने बेटे की ये सब बाते सुनकर वह बहुत खुश हो गए और बोले "तो बेटा अब तुम मुझे बताओ की तुम अपनी सिविल की परीक्षा की तैयारी कब से शुरू कर रहे हो? इस पर कुश ने कहा, "बस पापा कल से शुरू कर रहा हूँ"। इतनी सब बात करने के बाद उसके पिता वहां से चले जाते है।


कुश ने लगभग २ साल अपनी परीक्षा की तैयारी की। २ साल बाद उसने अपनी सिविल की परीक्षा दी। परीक्षा के दो चरण उसने बड़ी आसानी से पार कर लिया परन्तु अपनी परीक्षा के तीसरे चरण में वह असफल रहा। अपने तीसरे और सबसे आखिरी चरण के परिणाम को देख कर काफी दुखी और निराश हो गया। उसने उस परिणाम के बाद जैसे-तैसे संभाला और परीक्षा को दोबारा तैयारी करने के बारे में सोचा था।


एक दिन की बात उसको उसका एक मित्र मिला जो की उससे काफी जलता था। उसने कुश से कहा, "अरे! कुश मैने सुना की तुम सिविल के इंटरव्यू में रह गए"


उसकी ऐसी बाते सुन कर कुश ने अपनी मुरझाई हुई आवाज में कहा, "हाँ तुमने सही सुना है।


उसके मित्र ने उसकी बात सुनकर कहा, "बड़ा अफ़सोस हुआ ये सुनकर की यूनिवर्सिटी का टॉपर इंटरव्यू में रह गया। यह कह कर वह कुछ देर तक चला और रुक गया। फिर व्यंग्यात्मक हँसी हँस कर बोला, "वैसे एक सलाह देता हूँ तुम्हे। सिविल अफसर बनना हर किसी के बस की बात नहीं होती है। सिर्फ किताबी बाते पढ़ लेने से कोई अफसर नहीं बन जाता। उसके लिए ज्ञान के साथ साथ प्रतिभा का होना भी आवश्यक है। वैसे मेरी सलह मानो तो किसी सरकारी कॉलेज में मास्टर लग जाओ। पैसे कमाओगे और फिर बुढ़ापे में पेंशन भी मिलेगी। बुढ़ापा बड़े सुख से कटेगा। अपने मित्र की ऐसी बातें सुन कर मानो कुश के सारे सपने टूट गए थे जो उसने अपने सपनो का दीया जलाया था। वह अब बुझ गया था। पहले तो सिर्फ उसकी लौ ही कम हुई थी परन्तु आज अपने मित्र की ऐसी बाते सुनकर वो बची हुई लौ भी बुझ गई थी। वह घर जा कर अपने कमरे में चला जाता है। उस दिन न तो उसने किसी कोई बात की, न कुछ खाया पिया और न ही अपने कमरे से ही बहार ही निकला। वह सारा दिन अपने कमरे में बैठ कर उस बात को सोच-सोच कर परेशान हो रहा था की आखिर उसकी मेहनत में कहा कमी रहा गई। अगली सुबह जब वह उठा तब भी वह उसी बात के बारे में सोच रहा था। उसके पिता उसके कमरे में आए और उन्होंने कुश से कहा,"बेटा तुम्हारी तबियत तो ठीक है? १० बज रहे है क्या तुम्हे अपनी क्लास में नहीं जाना है? अपने पिता की ये सब बाते सुन कर कुश रोने लगा और उसने अपने पिता से सारी बात बताई। कुश की ऐसी बाते सुन कर उसके पिता ने उससे पूछा की अब तुमने क्या सोचा है? इस पर कुश ने बड़े भारी मन से कहा "पापा अब मै सिविल की परीक्षा नहीं दूंगा। उसके पिता ने कहा क्या सच में तुम अपने सपने को यूँ ही छोड़ दोगे? क्या तुम जी पाओगे अपने सपनो के बिना?"


ये सब कुछ सुनने के बाद कुश ने कहा, "मै कोशिश करूँगा की मै अपने सपने के बिना जी पाऊँ और ये जरूरी तो नहीं है की आप जो सपने देखे वह सारे सपने पूरे हो"


अपने बेटे की ऐसी निराशा से भरी बातो को सुन कर उन्होंने कुश से कहा "तुम्हे पता है अरमान सिंह कौन है?" इस पर कुश ने जवाब दिया, 'हां पापा मुझे पता है। अरमान सिंह कौन है? वह सबसे छोटी उम्र में बनने वाले

सिविल अफसर रह चुके है। उन्ही को मैने अपना आदर्श माना है"


इस पर उसके पिता ने कहा क्या तुम्हे पता है उन्होंने किस तरह अपने सिविल अधिकारी बनने के सपने को साकार किया है। आज मै तुम्हे ये बताऊंगा की उन्होंने अपनी कामयाबी की सीढ़ी कैसे चढ़ी? कैसे उन्होंने अपने सपनो को साकार किया? उसको सुनने के बाद तुम अपनी ज़िन्दगी का फैसला लेना।


एक शहर में अरमान नाम का एक लड़का रहता था। वह बहुत ही होनहार था। वह हर चीज में अव्वल आया करता था। वह बहुत ही मेहनती लड़का था। वह कभी भी मेहनत से डरता नहीं था। एक बार की बात है अरमान अपनी बैचलर्स के बाद अपनी सिविल की तैयारी कर रह था। उसने बैचलर्स के सिर्फ १ साल बाद ही सिविल की परीक्षा दे दी थी परन्तु दुर्भाग्य वश वह २ चरण में ही असफल हो गया। जब उसके दूसरे चरण का परिणाम आया तो उसे उस परिणाम पर विश्वास नहीं हुआ की वह दूसरे चरण में ही असफल हो गया। यहाँ तक की उसके मित्रो को भी यह विश्वास नहीं हो रहा था क्यों की वह बहुत होशियार और मेहनती था। उसकी असफलता हर किसी को परेशान कर रही थी। जब अरमान ने अपने माता पिता को यह बताया की वह सिविल के दूसरे ही चरण में ही असफल हो गया है तो यह सुन कर उसके माता पता को ये विश्वास नहीं हुआ और उसके पिता ने कहा "नहीं बेटा ऐसा नहीं हो सकता शायद वो कोई ओर अरमान होगा। तुम दोबारा अपना नाम भर कर देखो शायद तुमने गलत नाम से अपना परिणाम देखा होगा"


अपने पिता की ऐसे बाते सुन कर अरमान की आंखे नम हो गई और उसने अपने पिता को समझते हुए कहा "पापा यही सही है इस बार मै अपनी सिविल की परीक्षा को पार नहीं कर पाया। शायद मेरी मेहनत में कोई कमी रह गई होगी। इसी लिए तो मैं इसके दूसरे चरण में असफल हो गया" 


अपने बेटे की ये सब बाते सुन कर उनका मन भी काफी उदास हो गया परन्तु उन्होंने अपने बेटे की तरफ देखा और खुद को संभाला। फिर उन्होंने बेटे से कहा, "बेटा अरमान तुम उदास मत हो। इस बार अगर तुमने ये परीक्षा पार नहीं की तो क्या हुआ अगली बार तुम ये परीक्षा काफी अच्छे नम्बरो से पार कर लोगे। इस बार तुम दुगनी मेहनत करना। तुम जरूर पार कर लोगे" अपने पिता की ऐसी बाते सुन कर अरमान के मन में भी उम्मीद की लहर दौड़ी और उसने अगली सुबह से फिर से अपनी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। उसने ठीक ६ महीने बाद उसने फिर से अपनी परीक्षा दी जब उसका परिणाम आया सभी हैरान हो चुके थे अरमान के पहले परिणाम से सभी को विश्वास नहीं हो रहा था परन्तु इस बार के परिणाम ने तो सभी के होश उड़ा दिए थे। पहले परिणाम में अरमान दूसरे चरण में असफल हो गया था परन्तु इस बार तो वह पहले चरण में ही असफल हो गया। इस बार तो अरमान बिल्कुल टूट चूका था। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की अब वह क्या करे? इतनी मेहनत के बाद भी मै पहला चरण भी पार नहीं कर पाया। अपने बेटे का ऐसा परिणाम देख कर काफी परेशान हो चुके थे। उनको कही न कही ये लग रहा था की कोई अरमान को जान बूझ कर फेल कर रहा है।


अगली सुबह उसके पिता उसके कमरे में जाते है और उसके पास जा कर बैठ जाते है। उन्हें ये लग रहा था की अरमान उनसे कोई बात करेगा परन्तु उसने ऐसा कुछ नहीं किया। फिर उसके पिता ने उससे कहा "अरमान अब तुम अपनी सिविल की परीक्षा दोबारा कब दोगे?" इस पर अरमान ने कहा "नहीं पापा अब मैं सिविल की परीक्षा नहीं दूंगा। शायद सिविल अफसर बनना मेरी किस्मत में ही नहीं है। बेशक ये सपना मैने बचपन से देखा था परन्तु जो भाग्य में ही नहीं है वो आपको कैसे मिल सकता है? इस से अच्छा तो यही होगा की मैं अपना सपना ही बदल दूं। शायद उसी में मैं कुछ कर लूँ। सपने देखने का हक़ हर किसी के पास होता है यहाँ, उस सपने को पूरा करने के पूरी कोशिशे करता है। अपनी पूरी जान लगा देता है परन्तु उसका पूरा होना या न होना यह उस इंसान की किस्मत पर निर्भर करता है। इस पूरी दुनिया में हज़ारो की तादाद में लोग सिविल अफसर बनने के सपने संजोते है परन्तु उन सब को उनके सपनो को उड़ान मिले यह जरुरी नहीं होता। जिस की किस्मत में सिविल अफसर बनना लिखा होता है वह बन जाते है और जिसकी किस्मत में नहीं होता वह लाख कोशिशों के बाद भी बन नहीं पाते। अपने बेटे की ये सब बाते सुन कर उसके पिता ने कहा "तुम जो ये कह रहे हो उसमे कितनी सचाई है यह तो मुझे नहीं पता, हां पर मुझे यह तो जरूर पता है की किस्मत में सिविल अफसर बनना लिखा है। तुम ये कह रहे हो की तुम अपना ये सपना भूल कर किसी और चीज़ को अपना सपना बना लोगे परन्तु तुम मुझे यह बताओ की तुम अपने इस सपने को कैसे भूल पाओगे? सपने को संजोने में जितना वक़्त लगता है उससे कई गुना वक़्त उसे भुलाने में और उसे तोड़ने में लगता है। तुमने आठवीं कक्षा में एक सपना संजोया था की तुम एक सिविल अफसर बनकर कामयाबी की सीढ़ी चढ़ोगे।आज मैं तुम्हे यह बात बताता हूँ।कामयाबी की सीढ़ी के शिखर तक पहुंचने में काफी वक़्त लगता है। इसके शिखर तक पहुंचना कोई जादू नहीं है। वह तक पहुंचने के लिए व्यक्ति को शारिरिक और मानसिक दोनों रूपों से खुद को मजबूत बनाना पड़ता है। क्योकि जब एक इंसान कामयाबी की सीढ़ी पर अपना पहला कदम रखता है तभी से उसकी चुनौतिया शुरू हो जाती है। वह शुरुआत में थोड़ी होती है परन्तु जैसे जैसे वह उन सीढ़ियों पर चढ़ता है, वैसे वैसे उसकी चुनौतिया भी बढ़ती जाती है। अब यह उस व्यक्ति की सहनशीलता पर निर्भर करता है की वो अपने सपनो को पूरा करने के लिए उन चुनौतियो का सामना किस ढंग से करता है। क्या वह उन चुनौतियो सामना करता है या उन चुनौतियो से डर कर अपने सपनो को अधूरा छोड़ कर उस कामयाबी की सीढ़ी से नीचे आ जाता है और फिर वह उस सीढ़ी पर दोबारा चढ़ने के बारे में सोचता भी नहीं है। ये मायने नहीं रखता आपका सपना कितना बड़ा है, मायने ये रखता है आपके हौसले कितने बड़े है। आपके अंदर उस सपने को पूरा करने के लिए आप कितने समर्पित है। सपने तो हर कोई देखता है परन्तु उसको पूरा करने का साहस हर किसी के अंदर नहीं होता है और रही बात तुम्हारे सपने की तो वह इस बार में नहीं तो अगली बार हो जाएगा क्योकि तुम्हारी परीक्षा में असफल होने का कारण तुम्हारी किस्मत नहीं बल्कि किसी की सोची समझी साजिश है। इसी लिए तुम मेरे लिए ये परीक्षा दोबारा दो ताकि साजिश करने वाले व्यक्ति का पता चल सके"


अपने पिता की ये सब बाते सुन कर उसने अपने पिता से कहा "ठीक है पापा मैं इस बार तो परीक्षा जरूर दूंगा ताकि पता चल सके की कौन मेरे सपनो को पूरा होने के बीच आ रहा है"


यह सब कुछ कहने और सुनने के बाद उसके पिता वह से चले जाते है। जैसे ही उसके पिता कमरे से बहार गए वैसे ही अरमान ने अपने मित्र रोहन को फ़ोन किया और उसने रोहन को सारी बात बताई। रोहन ने अरमान के सारी बाते सुनने के बाद उससे पूछा की क्या तुमने परीक्षा से पहले किसी से अपनी परीक्षा की जरूरी जानकारी किसी को बताई थी। रोहन की ये सब बाते सुनकर अरमान ने जवाब दिया "हाँ दिया था तुम्हारे पड़ोस में जो मिश्रा अंकल है उनका फ़ोन आया था। तो उन्होंने पूछा था तो मैने सब कुछ बता दिया था। पर मिश्रा अंकल तो बहुत बुजुर्ग है वह मेरी जानकारी का गलत इस्तेमाल कर सकते है। इतना सब कुछ सुनने के बाद रोहन ने अरमान से कहा ठीक है मैं तुम से बाद में बात करता हूँ। पर तुम अपना सिविल की परीक्षा दोबारा से देने तैयारी कर लो क्योकि इस बार तुम्हारा पास होना पक्का है।


ठीक १ हफ्ते के बाद रोहन का फ़ोन आया उसने अरमान से कहा, "मैने तुम्हारे गुनहगार का पता लगा लिया है। क्या तुम मेरे घर आ सकते हो?" इस पर अरमान ने कहा, "मैं आ तो जाऊँगा पर गुनहगार है कौन?"


रोहन ने कहा, "घर आ जाओ तुम्हे सब कुछ पता चल जाएगा"


अरमान रोहन के घर जाने के लिए घर से निकल रहा होता है तो उस वक़्त उसके मन में सिर्फ एक बात चल रही थी। आखिर वो है कौन जो मेरे सपनो को पूरा नहीं होना देना चाहता। वह जैसे ही रोहन के घर पहुँचता है तो वह वहा जाकर उस इंसान को देख कर हैरान हो जाता है। वह इंसान और कोई नहीं बल्कि रोहन के पड़ोसी मिश्रा अंकल थे। रोहन ने कहा "अरमान यही है तुम्हारा गुनहगार"


अरमान आगे बढ़ता है और उन से पूछता है "अंकल आप ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मैने आपका क्या बिगाड़ा था? अपने क्यों मेरे भविष्य के साथ खिलवाड़ क्यों किया?"


अरमान की ऐसी दुखभरी बाते सुनकर मिश्रा जी जवाब दिया "बेटा अरमान मुझे तुमसे कोई शिकवा, कोई नाराज़गी, कोई ईर्ष्या नहीं है। मैने तो ये सब कुछ पैसो के लिए किया था मुझे तो किसी का फ़ोन आया था उसने मुझे कहा था की "तुम अरमान की परीक्षा की सारी ज़रूरी जानकारी बता दो उसके लिए तुम्हे मुँह - मांगी रकम मिलेगी"


इतना सब कुछ सुनने के बाद अरमान ने पूछा "कौन है वो इंसान जो की मेरी ज़िन्दगी को बर्बाद करने पर तुला हुआ है?"


इस पर मिश्रा जी ने जवाब "नहीं बता सकता और अगर बता भी दिया तो तुम कुछ नहीं कर पाओगे। क्योकि कल रत हाईवे पर उसके साथ बहुत बड़ा हादसा हो गया था जिससे की वो अधमरा बन चुका है। उसे उसके कर्मो का फल मिल चुका है। अब तुम सिर्फ अपनी परीक्षा पर धयान दो न की इस बात पर दो किसने तुम्हारे साथ क्या किया। अब तुम बिना डर अपनी परीक्षा दो तुम जरूर सफल हो जाओगे। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है" इतना सब कुछ कहने और सुनने के बाद वह वहां से चला जाता है। ठीक १ महीने के बाद वह फिर से सिविल की परीक्षा देता है और इस बार वह सफल होकर लौटता है। सिविल अफसर बनने के बाद बड़े-बड़े रिपोर्टरों ने उनसे पूछा की आपके लिए सिविल अफसर बनने के लिए एक व्यक्ति में क्या गुण होने चाहिए तो अरमान यह कहता था की "सिविल अफसर बनना कोई मुश्किल बात नहीं है बस थोड़ा सा सबर, मुट्ठी भर हौसला और कामयाबी को हासिल करने का दृढ़ विश्वास से ही एक व्यक्ति सिविल अफसर तो क्या हम अपनी ज़िन्दगी में कुछ भी हासिल कर सकते है। इस के बिना यदि कोई व्यक्ति कोई सपना देखता है वह सपने कभी पूरे नहीं होते क्योकि वे सपने ही खोखले होते है और खोखली चीज़े ज्यादा दिनों तक नहीं टिकते। वे एक न एक दिन टूट कर बिखर ही जाते है। सपने वही साकार होते है जिनकी नीव के अंदर हौसला, हिम्मत, दृढ़ विश्वास, दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास जैसा मजबूत और ठोस मिश्रण मिला। अगर यह मिश्रण मिला हो तो व्यक्ति अपनी ज़िन्दगी में कुछ भी हासिल कर के कामयाबी की सीढ़ी के शिखर पर पहुंच सकता है। 

 

कुश के पिता ने उससे कहा, "बेटा कुश अरमान सिंह जिसे की तुम अपना आदर्श मानते उसकी कामयाबी की कहानी में संघर्श ही संघर्श भरा है और तुम्हारी कामयाबी की कहानी में तो इतना कुछ है भी नहीं। अभी तो तुमने एक ही बार परीक्षा दी है। तुम क्या एक ही बार में हर मान जाओगे? अरमान सिंह जो के तुम्हारे आदर्श है उन्होंने ने तो २ बार में भी हार नहीं मानी तो तुम क्या १ बारी में ही हार मान जाओगे?" कुश अब तुम मुझे बताओ की अब तुम्हारा क्या फैसला है अपने पिता की ये सब बाते सुन कर कुश ने कहा "पापा मैं हिम्मत नहीं हारूँगा, मैं दोबारा से परीक्षा दूंगा और जब मैं पार नहीं कर लेता तब तक मैं हिम्मत नहीं हारूँगा और एक दिन अपने सपनो को साकार करूँगा और कामयाबी की सीढ़ी के शिखर तक पहुँचूगा। अब किसी की बातो का मेरे ऊपर कोई असर नहीं होगा" अपने बेटे की ऐसी बाते सुनकर उसके पिता बहुत खुश हो जाते है। कुश ने दोबारा परीक्षा दी और उसने दूसरी बार में ही अपनी परीक्षा को पार कर लिया था। 

 कामयाबी की सीढ़ी चढ़ना कोई मुश्किल नहीं है। बस उसके लिए इंसान के अंदर हौसला, हिम्मत, दृढ़ विश्वास आत्मविश्वास से इंसान कामयाबी की सीढ़ी के शिखर तक पहुंच सकता ह कामयाब होने के लिए एक इंसान को मेहनत इतनी धीमे से करनी चाहिए की सफलता और कामयाबी शोर मचाते होए आपके पास आए जब तक आप कामयाब नहीं हो जाते तब तक आप अपने आपको बड़े सयम के साथ रहना पड़ेगा अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो लोग आपको असफल होने पर आपका उपहास बनाएगे क्योकि अपने कामयाब होने से पहले ही उसकी घोषणा कर दी थी कामयाबी बोलने से नहीं बल्कि मेहनत करने से आती है  ै।


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