Sakshi Nagwan

Inspirational

4.9  

Sakshi Nagwan

Inspirational

अपनों का साथ

अपनों का साथ

9 mins
1.8K


एक शहर में राज नाम का एक लड़का अपने परिवार के साथ मुंबई में रहता था उसकी माँ एक समाज सुधारक थी और उसके पिता की खुद की एक फेक्टरी थी राज बहुत ही अच्छा लड़का था वह हर चीज में अव्वल आया करता था, जिसके रहते उसके कई मित्र उससे जलते थे और अब तो वह डिस्टिक क्रिकेट टीम का कप्तान भी बन चुका था।

एक बार की बात है जब राज अपनी नेशनल की तैयारी कर रहा था तो एक दिन अचानक खेलते खेलते उसके हाथ में चोट लग गई थी, जिससे की डॉक्टर ने कहा कि अब वह कभी क्रिकेट नहीं खेल पाएगा। यह सुनने के बाद राज बिल्कुल टूट चूका था। उसे उस वक्त ऐसे लग रहा था मानो उसकी पूरी ज़िन्दगी ही ख़त्म हो गई हो। उस हादसे की बाद अब राज अपने घर पर ही रहने लगा था। वह न तो किसी से बोलता था और न ही कुछ खाता-पीता था। उस हादसे की बाद उसका बड़ा अजीज मित्र अंकुश मिलने आया परन्तु उसने उस से कुछ बात नहीं की, उसका यह बर्ताव देख कर अंकुश भी उससे दूर रहने लगा था। उस हादसे ने मानो उससे सब कुछ छिन लिया था। अब तो वो सारा दिन अपने कमरे में बैठा रहता था। 

एक दिन की बात है, राज की ऐसी हालत देख कर उसकी माँ ने उसके पिता को कहा, "आप राज को समझाए कि एक हादसे से कभी भी ज़िन्दगी ख़त्म नहीं होती। भगवान जब एक रास्ता बंद करता है तो वह दूसरा रास्ता खोल देता है। फिर उसके पिता ने कहा ठीक है, मैं उससे बात करूँगा। 

शाम को उसके पिता उसके पास गए उन्होंने कहा, "बेटा ! राज कैसे हो, तुम क्या हुआ तुम्हें अपनी प्रैक्टिस पर नहीं जाना है क्यां अब तुम बिल्कुल ठीक हो, तो उठो और अपनी प्रैक्टिस पर जाओ।"

अपने पिता की ये सब बाते सुन कर राज रोने लगा और उसने कहा, "पापा क्या आप भूल गए क्या डॉक्टर ने क्या कहा था उन्होंने कहा था की अब मेरा हाथ कभी ठीक नहीं होगा तो आप ही बताइये कि मैं क्रिकेट कैसे खेल सकता हूँ। ये सब सुनने के बाद उसके पिता ने कहा, "मुझे सब कुछ याद है की डॉक्टर ने क्या कहा था पर इसका मतलब ये नहीं है की तुम कोशिश करना ही छोड़ दो, क्योंकि एक इंसान तब तक हार नहीं मानता जब तक वह खुद हार न मान ले। राज ने अपने पिता की ये सब बाते सुनकर कहा, "पापा आप मुझे मजबूर मत कीजिये। मैं नहीं कर पाऊँगा। उसके पिता ने कहा "ठीक है बेटा तुम परेशान मत हो जो तुम्हारा दिल करे वही करो। ये सब कुछ कह कर उसके पिता वहाँ से चले गए।

उसकी माँ ने उसके पिता से कहा, "मैंने आपको उसे समझाने के लिए कहा था न कि उसकी हाँ में हाँ मिलाने के लिए। आप जानते हैं राज कब से इस मौके का इंतजार कर रहा था और आज जो उसे ये मौका मिला है। वो ऐसे हार नहीं मान सकता है। आप कुछ कीजिये, उसे इस हादसे से बहार निकालिये। ये सब बातें सुन कर उसके पिता ने कहा, "मुझे पता है राज के लिए नेशनल में जाना कितना बड़ा सपना है पर तुम यह भी तो समझो की वो इस वक्त  किस  दौर  से  गुजर  रहा है। इस वक्त उस के मन में सैंकड़ो सवाल उमड़ कर आ रहे होंगे वो खुद से पल- पल लड़ रहा होगा। फिर तुम ही बताओ ऐसे में मै उसे कैसे कह दूँ कि तुम हिम्मत मत हारो और कोशिश करो। इस समय हमें उसको सहारा देना चाहिए न कि उसे समझाना चाहिए। हम उसका परिवार है और हमें इस वक्त उस पर दबाव नहीं डालना है बल्कि उसे प्रोत्साहित करना है क्योंकि उसकी चोट इतनी भी जयादा नहीं है कि वह फिर से खेल न पाए। वह हारा नहीं है बल्कि कुछ पलों के लिए डर गया है हमें  सिर्फ उसका डर ख़त्म करना है न कि उस पर दबाव डालकर उसके सपने को ख़त्म करना। हमें तो सिर्फ उसके डर को बड़े ही प्यार से निकलना होगा, जैसे कि हम बचपन में उसके पैर से कांटा निकाल देते थे। उसमे में भी तो वह यही कहता था कि मैं अब चल नहीं सकता मुझे बहुत दर्द हो रहा है फिर हम उसे बड़े प्यार से फुसला कर उसका वो कांटा निकाल देते थे और उसे पता भी नहीं चलता था हम जितना उस सहारा देंगे उतना ही वो उस हादसे से बाहर निकाल पाएगा। हमें सिर्फ उसके साथ प्यार और सब्र से काम लेना होगा, क्योंकि अगर हम सभी बौखला जाएंगे तो हम उसे संभाल नहीं पाएगे, और रही बात उसके सपने की, तो मैं तुमसे वादा करता हूँ कि राज २ हफ्ते के अंदर-अंदर अपनी प्रैक्टिस पर जाना शुरू कर देगा 

अगली सुबह जब वह उठा तो उसने देखा कि उसकी माँ स्टूल पर चढ़ कर कुछ काम कर रही थी। उसने जैसे ही अपनी माँ को स्टूल पर देखा तो वह बौखला कर बोला, "माँ आप इस स्टूल से उतर जाइये क्योंकि यह कभी भी गिर सकता है। उसकी माँ जैसे ही पीछे मुड़ी तो वह स्टूल हिल गया और वह उस स्टूल से नीचे गिर गई। स्टूल से गिरने से तो कोई खास चोट नहीं आई परन्तु इस हादसे की वजय से राज के दिल पर बड़ी चोट पहुंची। वह मन ही मन खुद को कोस रहा था कि वह अपनी माँ को गिरने से रोक नहीं पाया। अगर आज मेरा हाथ ठीक होता तो मैं अपनी अपनी माँ को बचा लेता। उस दिन वह पूरा दिन अपने कमरे में बैठ कर खुद को कोसता रहा। 

अगली सुबह जब वह उठा तो वह पार्क में चला गया। वह पर उसने देखा की छोटे-छोटे बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। उन बच्चों को देख कर उसे अपना बचपन याद आ रहा था। इतने में उसके पिता भी आ गए और फिर उन्होंने राज से कहा, "राज क्या तुम भूल गए की तुमने इसी जगह पर मुझे कहा था कि, "पापा देखना एक दिन मैं नेशनल क्रिकेट टीम का कप्तान बन गए तो फिर आज तुम अपने उस वादे से मुँह क्यों मोड़ रहे हो।" क्या तुम इस छोटी सी मुसीबत से डर कर अपने सपनों को पीठ दिखा कर भाग रहे हो। ज़िन्दगी हर किसी को ऐसा सुनहरा मौका नहीं देती। लोग तो ऐसे मोके की ताक में रहते है कि कोई उन्हें ये मौका दे तो वे उसे साबित कर सके और तुम तो बहुत खुश नसीब हो की तुम्हें  तुम्हारी ज़िन्दगी में ऐसा मौका मिल  रहा है तो तुम इस मौके का फायदा क्यों नहीं उठा रहे हो, बार-बार तुम्हें मौका नहीं मिलेगा।

अपने पिता की ये सब बाते सुन कर राज ने बड़े बुझे हुए मन से कहा, "पापा मैं कुछ नहीं भुला, मुझे सब कुछ याद है पर वो वक्त कुछ ओर और आज का वक्त कोई और आज सब कुछ बदल चुका है।" मेरा जब हाथ ही नहीं उठ पाता है तो आप ही बताइये कि मैं इस से अपना सपना कैसे साकार करूँगा। मेरे सपने अब सपने ही बन के रह गए हैं। अब वह कभी भी हकीकत नहीं बन पाएगा क्योंकि अब मैं कभी क्रिकेट नहीं खेलूँगा। मैं जानता हूँ यह मेरे लिए बहुत मुश्किल होगा पर यही अब मेरी हकीकत है और मुझे इसे स्वीकार करना ही होगा क्योंकि जो हकीकत को नहीं स्वीकारता है वह मूर्ख कहलाता है, और मैं मूर्ख नहीं हूँ। 

अपने पिता को ये सब बाते कह कर वह अपनी आँखों में पानी भर कर वहा से चला गया। अपने बेटे की ऐसी हालत को देख कर वह भी मन ही मन बहुत दुखी हो गया था कि उसका बेटा किस कदर अपने सपने को टूटता हुआ देख रहा। उस हादसे को लगभग २ हफ्ते बीत चुके थे। उस दिन राज का मन बहुत अशांत था। उसका मन वह अपने मन को शांत करने के लिए मंदिर चला जाता है। वह मंदिर जा कर भगवान के दर्शन कर के लोट रहा था तो उसने देखा की मंदिर में कारीगरी का काम चल रहा था।

अचानक उसकी नज़र एक कारीगर पे गए जिस का हाथ बिलकुल ही ख़त्म हो चुका था परन्तु वह कारीगर फिर भी अपना काम बड़ी निष्ठा के साथ कर रहा था। वह उस के पास गया और उसने उससे पूछा कि आप एक बेजान हाथ से इतनी खूबसूरत और नायाब कारीगरी कैसे कर रहे हैं, क्या आपको कोई परेशानी नहीं हो रही है क्या इस पर उस कारीगर ने बड़ा सुन्दर जवाब दिया। तुम पहले ऐसे व्यक्ति हो जिसने मुझसे ऐसा प्रश्न किया है तो मैं तुमको इस उतर अवश्य दूंगा" मेरा ये हाथ हमेशा से ऐसा नहीं था। एक रोज जब मै अपना काम कर रहा था तो उस वक्त काम करते-करते मेरा ये हाथ दुर्घटना ग्रस्त हो गया। पहले तो मुझे ये लगा की अब मृत ज़िंदगी ख़त्म हो गई है। अब इस में कुछ भी अच्छा नहीं होगा। तब मेरे लिए १-१ पल काटना सदियों के बराबर लगने लगा था क्योंकि जिसकी ज़िंदगी का मकसद ही वही हो और वही उससे छिन जाए तो उसके मन,आत्मा, दिमाग और उसकी ज़िन्दगी पर कैसा असर डालती होगी यह तो वही बता सकता है जिस उपर ये बीत चुकी है। सपनों का टूटना और किसी की ज़िन्दगी का सहारा टूटना दोनों एक ही जैसे होते हैं क्योंकि दोनों के टूटने का दर्द एक समान होता है। कुछ वक्त के लिए तो मैं अपने घर पर ही रहा उस वक्त मुझे किसी की भी हिदायत  व्यंग्य के समान लगती थी। फिर एक दिन मेरी पत्नी ने मुझ से कहा कि आप इस कदर दुखी क्यों है, क्या आप अपनी कला को भूल चुके हैं, क्या आप को नहीं कि किस चीज पर किस तरह नक्काशी की जाती है क्या आप यह भूल चुके हैं कि अपने हाथ में औजार कैसे पकड़ते है " इस पर मैंने उससे कहा मै कुछ नहीं भुला पर भूलने की कोशिश कर रहा हूँ।

इस पर मेरी पत्नी ने कहा, आपको भूलने की नहीं बल्कि समझने की कोशिश करनी होगी, क्योंकि जिस हाथ से आप नक्काशी करते हैं उसका अंगूठा और एक अंगुली अभी भी सही सलामत है। अब ये आपको देखना है की आप कैसे इन २ अंगुलियों के सहारे अपनी कारीगरी को ज़िंदा रख सकते हैं, बस तभी से मैंने उन २ अंगुलियों से कारीगरी की शुरुआत कर दी और रही बात कि मुझे कोई तकलीफ की तो मुझे कोई तकलीफ नहीं है। मुझे तकलीफ तब होती जब मैं अपनी ये नायाब कारीगरी छोड़ देता पर अब मुझे कोई तकलीफ नहीं है क्योंकि मेरी ज़िन्दगी का सहारा मेरे पास है और जब तक ये मेरे पास है मुझे कोई तकलीफ नहीं। 

उस कारीगर की ऐसी बातें राज के दिल में घर कर गई। वह जैसे घर पहुंचा तो उसने किसी से कोई बात नहीं की। बस, वह मंदिर से सीधा अपने उस कमरे में चला गया जिस में उसके खेल का सामान पड़ा होता था। उसको ऐसे उस कमरे में जाता देख उसके माता पिता मन ही मन काफी खुश हो रहे थे कि शायद अब वह फिर से खेलने लग जाए। उसने उस कमरे में जाते ही उस कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और वह उस कमरे में घंटों बैठकर उस कारीगर की बातों के बारे में सोचता रहा। बहुत सोच विचार करने के बाद वह इस नतीजे पर पंहुचा कि उसे एक बार फिर अपने सपनों को साकार होने का एक ओर मौका देना चाहिए। वह अपनी क्रिकेट का सामान ले कर उस कमरे से बाहर निकला और उसने अपने माता-पिता से कहा कि "मैं प्रैक्टिस पर जा रहा हूँ, इंतज़ार मत करना। मैं लेट हो सकता हूँ क्योंकि नेशनल्स के लिए अब कुछ ही समय बाकी है।" राज की ऐसी बातें सुनकर उसके माता पिता की खुशियों का कोई ठिकाना न था। 

 ठीक १० महीने बाद उसका मैच आ गया उस वक्त उससे ज्यादा उसके माता-पिता डरे हुए थे कि न जाने राज नेशनल तक पहुंचेगा या नहीं।

मैच ख़त्म होने के बाद राज ने अपने माता-पिता को फ़ोन कर के वह खुशखबरी सुनाई जिस को सुनाने के लिए वह कब से इंतज़ार कर रहे थे। अब राज नेशनल क्रिकेट टीम का कप्तान बन चुका था उसकी इस कामयाबी पर सब  ने राज  से यह सवाल किया की वह इस कामयाबी का श्रेय किसे देना चाहते हैं तो राज ने कहा- "मै अपने परिवार को ये श्रेय देना चाहता हूँ क्योंकि यदि मेरा परिवार मेरे साथ न होता तो मैं कभी भी इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता। परिवार का मतलब यह नहीं की जिसमे माँ-बाप भाई-बहन दादा-दादी इकट्ठे एक घर में रहे बल्कि परिवार का मतलब होता है प्यार करना और प्रोत्साहित करना। जहाँ पर ये पाया जाता है वही परिवार कहलता है। मेरे पास मेरे परिवार का साथ था, प्यार था और प्रोत्साहित करने करने वाले पिता थे। इसलिए मैं अपना सारा श्रेय अपने परिवार को देना चाहता हूँ।   

 परिवार का मतलब ये नहीं होता जहाँ माँ-बाप दादा-दादी चाची-चाचा इत्यादि रिश्ते एक ही छत के निचे रहते हो वह परिवार तब तक परिवार नहीं मन जाएगा जब तक उस परिवार में रहने वाले हर व्यक्ति के दिलो में एक दूसरे के प्रति प्यार और प्रोत्साहन की भावना न हो ऐसे तो हम किसी धर्मशाला में रहने वाले हज़्ज़ारो व्यक्तियों को परिवार मान सकते है परन्तु ऐसा नहीं होता परिवार कहलाने के लिए उनके अंदर आपसी प्रेम की भावना का होना आवश्यक है यदि किसी एक या एक से अधिक व्यक्तियों के बिच प्रेम की भावना हो तो वह भी परिवार कहलाता है सिर्फ दो व्यक्तियों के मध्य भी अगर  प्रेम और प्रोत्साहन की भवना हो उसे  भी हम परिवार कहा  सकते है  

   जब तक किसी व्यक्ति के साथ उसके परिवार का साथ  न हो तब तक वह व्यक्ति  कभी  भी तरकी नहीं कर सकता बेशक वह अपनी  मेहनत के बल पर कुछ भी हांसिल कर ले परन्तु उसे कभी भी आंतरिक शांति एवं खुशिया नहीं मिल पाएगी इसका कारण यही    है की उसके परिवार ने उसका साथ नहीं दिया जो खुशी जो प्यार जो अपनापन और जो प्रोत्साहन एक परिवार दे सकता है वह उसको दुनिया का कोई भी व्यक्ति उसे दे नहीं सकता इंसान मुश्किल के वक्त में हज़ारो व्यक्तियों से मदद की गुहार लगता है परन्तु वह लोट कर अपने परिवार के पास ही आता है एक परिवार जो कर सकता है वह इस संसार का कोई भी व्यक्ति नहीं कर सकता एक इंसान के लिए उसकी सबसे बड़ी ताकत उसकी सबसे  बड़ी कमजोरी जब कुछ परिवार ही होता है ऐसा इस लिए होता है क्योकि उस परिवार से उसे खुशिया मिलती है दुःख मिलते प्यार मिलता है और प्रोत्साहन मिलती है जहाँ पर आप ने ये सब कुछ एक साथ देख लिया तो आप समझ लेना की वही परिवार है 

  राज के पास उसके परिवार का साथ था यही कारण था की वह इस मुश्किल के वक्त में खुद को बहार निकाल पाया यहाँ सब कुछ परिवार की प्रोत्साहन के बगैर कभी नहीं हो पता आज वह जिस मुकाम है वह उसके परिवार की बदौलत ही तो है जिसने उसे फिर से अपने पारो खड़ा किया एक इंसान अपने पुरे जीवन के अंतराल में अनेको व्यक्तियों  से लिया हुआ अहसान उतार देता है   परन्तु वह कभी भी ७ जन्म ले कर भी परिवार का अहसान नहीं उतार सकता क्यों की एक परिवार ही है जो बिना किसी शुल्क के अपनों की मुश्किलों का हल करता है परिवार के अलावा हर व्यक्ति आप से कभी न कभी और किसी न किसी ढंग से आपसे वो शुल्क वसूल करवा ही लेता है फिर चाहे वह आपका अजीज मित्र ही क्यों न हो इस लिए कभी अपने परिवार से ये न पूछना की अपने मेरे लिए किया ही क्या है क्योकि जो एक परिवार कर सकता है वह कोई नहीं कर सकता परिवार का मतलब ही होता है साथ देना और किसी के साथ की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है  

     


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational