Sakshi Nagwan

Drama Inspirational

4.6  

Sakshi Nagwan

Drama Inspirational

साथी तेरा साथ

साथी तेरा साथ

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"साथी" जीवन में हर व्यक्ति को साथी की आवश्यकता पड़ती है फिर चाहे वो साथी एक दोस्त के रूप में हो; एक हमसफर के रूप में हो, भाई-बहन के रूप में हो या फिर स्वयं भगवान के रूप में हो। पर साथी हर किसी का होता और हर किसी को साथी की आवश्यकता पड़ती है और इस बात को झुठलाना व्यर्थ सा लगता है क्योंकि बिना साथी के कोई भी काम नहीं हो पता है। यहाँ साथी से हमारा अभिप्राय है, "एक व्यक्ति जिससे आप अपनी निजी जिंदगी के हर छोटे-बड़े पलो को साझा करते है और हर परिस्थिति में साथ खड़े रहते है।" और आपके इसी साथ को तोड़ने का कुछ लोग निरंतर प्रयास करते रहते है। बस ऐसा ही कुछ हमारे कहानी के नायक के साथ भी हुआ परन्तु उनका साथ इतना मजबूत था की उस साथ को तोड़ने वाले के प्रयत्न ध्वस्त हो गए, और अंत में वह अपनी करनी पर शर्मिंदा भी हुआ। आइये जानिए क्या हुआ आखिर क्यों उस व्यक्ति ने उनका साथ तोड़ने का प्रयास किया। 

 एक शहर में वीर नाम का एक लड़का रहता था वीर स्वभाव से बहुत ही नेक था वह किसी की भी मदद करने के लिए सदैव तत्पर रहता था। उसे झूठ बोलना बिलकुल भी पसंद नहीं था उसका मानना था की जब हम किसी से झूठ बोलते है तो हम केवल उस व्यक्ति से ही नहीं बल्कि खुद से भी झूठ बोलते है, और साथ ही साथ उसके अंदर एक खासियत यह भी थी की वह जिस से जो वादा किया करता था वह उसे पूरा करने का हर संभव प्रयास किया करता था। उसके इस स्वभाव के रहते उसके कई मित्र थे परन्तु उन मित्रों में से उसका एक अजीज मित्र था उसका नाम था करन। करन और वीर के परिवारों के सामाजिक स्तर में काफी अंतर था। इसके बावजूद भी उनकी मित्रता में कोई अंतर नहीं आया इसका कारण था उन दोनों के बीच का स्नेह भाव, आपसी समझ और एक अटूट नाता था साझेदारी का वे दोनों एक-दूसरे को इतना जानते थे की बिना कुछ बोले-सुने एक दूसरे की भावनाओं को समझ जाते थे। वह एक साथ खाते-पीते, खेलते और पढ़ा करते थे। उन की इस दोस्ती के चलते उन दोनों परिवारों में भी घनिष्ठ मित्रता थी। परन्तु वीर का बड़ा भाई उनकी दोस्ती से बिलकुल भी खुश नहीं था वजह उनका सामाजिक स्तर का अंतर था। उसे ये बिलकुल भी पसंद नहीं था की उसका भाई उससे छोटे लोगों से कोई तालुकात रखे उसके तालुकात का मतलब दोस्ती नहीं था बल्कि उसका मतलब उससे आपसी लगाव था वो चाहता था की वह दोस्ती को दोस्ती ही रहने दे न की उनके परिवार को अपना परिवार समझे परन्तु इसके बावजूद भी वह वीर को कुछ नहीं कहता क्योंकि उसके लिए उसके भाई की खुशियाँ अधिक महत्वपूर्ण थी वैसे देखा जाए तो वीर के भाई तन्मय का स्वभाव भी बहुत अच्छा था, उसके भीतर अपने भाई के प्रति जो प्रेम है वह साफ जाहिर होता है, जब एक बार वीर बीमार था तब वह खुद नंगे पांव मंदिर जा कर प्रार्थना करता है, यह बात सुनने में बेहद नाटकीय लगती है, सुनने में ऐसा प्रतीत होता है मनो किसी चलचित्र(फिल्म)का हिस्सा हो, परन्तु यह एक सत्य है, इसमें एक रिश्ते का भाव छिपा है; इसमें भाई-भाई का प्रेम है ,उसके प्रति चिंता है जो की वह अपने भावों से प्रकट करता है और यह बहुत स्वाभाविक ही है किसी भी रिश्ते में फिर चाहे वो भाई-भाई का रिश्ता हो, दोस्ती का हो या फिर पति-पत्नी का हो हर किसी का भाव उस वक्त एक जैसा ही होता है, क्योंकि भावनाएं सबकी एक जैसी ही होता है, बस फर्क उसे जाहिर करने में आ जाता है कोई अपनी भावनाओं को उस वक्त दबा लेते पर कुछ चाहा कर भी दबा नहीं पता। रही बात तन्मय की तो उसका स्वभाव भी अपने भाई जैसा ही है बस जब वह करन और वीर को एक साथ देखता है तो उसके भीतर एक अजीब सी असुरक्षित महसूस करता था अपने रिश्ते को लेकर, करन को लेकर वह असुरक्षित महसूस करता था क्योंकि उसे लगता था की कही उसकी और वीर की दोस्ती मुझे मेरे भाई से दूर न कर दे। ऐसा नहीं था की तन्मय करन और उसके परिवार के साथ बदतमीजी से पेश आता था वह करन और उसके परिवार से वैसे ही पेश आता था जैसे उसके परिवार के ओर व्यक्ति पेश आते थे,बस फर्क तब आता था जब वीर उसे छोड़ कर करन को चुनता था क्योंकि वीर के लिए करन किसी भाई से कम न था और यह भाव दोनों तरफ से एक सा था। मने की करन भी वीर को अपने जैसा मानता था। इस लहजे से उनका उसी प्रकार का संबंध परिवारों के साथ था, माने की उनके दो-दो परिवार थे। इसी बात के चलते वह उसके भीतर एक असुरक्षता पैदा कर देता था। बस इसी असुरक्षता के चलते तन्मय ने वीर और कारन के अटूट बंधन को तोड़ने पर विवश हो गया। बात तब की है जब करन और वीर विदेश से अपनी एमबीए करके वापस घर लोटे। वीर के पिता ने वीर और करन के आने की ख़ुशी में एक बहुत बड़ा जश्न रखा था सभी बहुत खुश थे,तभी वीर के पिता ने जश्न में एक बहुत बड़ा एलान किया की, "मैं करन और वीर को कंपनी में नौकरी देता हूँ;६महीने के पश्चात मैं ये निर्णय लूंगा की कौन किस पदवी के लायक है।"यह सुनकर सभी के मुख पर एक अजब सी ख़ुशी थी और मन में उत्साह था की ६ महीने के पश्चात किस को क्या पदवी दी जाएगी। वही दूसरी ओर तन्मय के मन में एक अलग ही द्वन्द चल रहा था, उसे अब ये लग रहा था की "करन कही वीर से अधिक लायक सिद्ध हो गया तो क्या होगा, पर मैं कभी भी करन को लायक सिद्ध नहीं होने दूंगा "।बस तभी से तन्मय कुछ न कुछ ऐसा करने की कोशिश करता रहता था जिससे की वह उसके पिता की नज़रो में गिर जाए ताकि कभी भी करन वीर से लायक सिद्ध न हो जाए। वह प्रति दिन यही कोशिश करता रहता था की कैसे भी करके वीर करन से अधिक लायक सिद्ध हो जाए। तन्मय को यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था की उसके भाई की ज़िन्दगी में उससे ज्यादा जगह और महत्वता उसके मित्र करन की है लेकिन इस असुरक्षा की भावना ने उसे अँधा कर दिया था और आग में घी डालने का काम उनके पिता ने कर दिया था उन्होंने जश्न में ६ महीने में दोनों को अवसर दिया अपनी क़ाबलियत साबित करने का और बेहतर पदवी हासिल करने का लेकिन इस कार्य ने तन्मय की असुरक्षित को बड़ा कर कुछ गलत करने पर प्रोत्साहन दे दिया। 

                                      कुछ दिनों बाद 

वीर और करन ने कार्यालय जाना शुरू कर दिया था जहाँ पर उनके ६ महीने की परीक्षा के बारे में किसी भी कार्यकर्ता को नहीं पता था सिवाए तन्मय और उनके पिता के वीर के पिता उन दोनों को वहाँ के सभी कार्यकर्ताओ से परिचित करवाते है और परीक्षा के नियम और उनको परखने की कसौटियाँ बताते है जिसके अंतर्गत कार्य को पूरा करने की क़ाबलियत, टीम प्रबंदकता, मुश्किलों का सामना, सहनशीलता इत्यादि। वीर के पिता और तन्मय इनके कार्य का निर्णय सुनाएंगे परन्तु उन्हें यह नहीं बताया गया था की कार्यालय के सभी कार्यकर्ता भी निर्णय देंगे परन्तु एक गुप्त तरीके से। इस पुरे कार्य में तन्मय को करन को निचा दिखाने के मौके मिल गए और उसने यह ठान रखी थी की करन की करन की महत्वता हर हाल में कम करके ही रहेगा तथा वह वो पदवी अपने भाई के लिए सुरक्षित करना चाहता था। 

                                       १ सप्ताह बाद

इस सप्ताह में दोनों को कार्य सिखाया गया और उन्होंने कार्यालय के समस्त कार्यों को सिख लिया था। चौधरी-कम्पनी को इस बार एक कार्य मिला है की उन्होंने एक संग्रहालय को सुव्यवस्थित करना है अर्थात अच्छी अवस्था में लाना है और यह उन दोनों की पहली परीक्षा थी दोनों को इस के बारे में प्रस्तुतीकरण बनाने को कहा गया और जिसकी प्रस्तुतीकरण अच्छी उसी को मौका दिया जाएगा। इस कार्य को करने का दोनों के पास १ महा का वक्त था और साथ दोनों को १-१ टीम दी गई जो की उनकी इस कार्य में सहायक बने गे और साथ ही पी.ए भी मिले जो की तन्मय में चुने थे ताकि वो इन पर नज़र रख सके । दोनों ने तैयारियां शुरू कर दी थी, दोनों बड़ी ईमानदारी से मेहनत कर रहे थे और तन्मय इन के काम पर पूरी नज़र बनाए हुए था की कही से उसे मौका मिल जाए की वो करन को नीचा दिखाए तभी तन्मय को ये पता चला की करन के कार्य में जगह की समस्या आ रही है और यह बात करन के पी.ए से पता चली जिसको लेकर करन काफी परेशान था उसे इस समस्या का हल नहीं मिल पा रहा था इसकी वजय था वीर क्योंकि वीर ही था जो इस तरह की समस्या से निकलने में उसकी सहायता करता था लेकिन अब वह वीर से मदद नहीं ले सकता था तो बस इसी बात को लेकर करन बेहद चिंतित था और यह बात तन्मय के लिए बेहद अच्छी थी। १ महा पश्चात फैसले का दिन था दोनों को अपना -अपना कार्य पेश करने का मौका दिया गया पहले वीर ने अपना कार्य दिखाया जो की अच्छा था लेकिन जब करन की बारी आई तो तन्मय उसका उपहास बनाने लग गया एक मित्र के लहजे से परन्तु उसके पीछे कुछ ओर ही भावना थी परन्तु तन्मय के होश उड़ गए जब करन ने अपने कार्य को पेश किया जो की बेहतरीन था यह देख कर तन्मय की हैरानी का ठिकाना न था। फैसले के वक्त वह पूरा प्रयास कर रहा था की उसके भाई का कार्य चुना जाए लेकिन कठिनाई यह थी की वह खुल कर अपने भाई के कार्य का समर्थन नहीं कर पा रहा था और अंत में करन के कार्य को चुना गया और तन्मय की हार हुई यह हार उसके दिल पर तीर की भांति चुभी यह चुभन इतनी असहनीय थी की उसका व्यवहार बदल गया अब तन्मय करन के बहुत गलत ढंग से पेश आता था और न ही वह करन की बातो का सीधे से जवाब देता था यह बात वीर और करन को बेहद अजीब लग रही थी परन्तु सब के सामने वे दोनों बेहद सामान्य बर्ताव करते थे । इस कार्य के गाहको को दिखाने का समय आया तो तन्मय ने अपने गुप्तचरों के जरिये उसकी पेन ड्राइव को बदलने की और नियत समय पर उसका लैपटॉप ख़राब करने की योजना बनाई ताकि वह अपना तैयार किया हुआ कार्य उनके सामने पेश न कर पाए इस कार्य में उसने करन के पी.ए की मदद मांगी और उसने भी तन्मय की पूरी-पूरी सहायता की जिसके लिए उसने तन्मय से पैसो की मांग भी की थी। जब सभी मुख्य बैठक में बैठे थे तब उसे अपना कार्य दिखाने को कहा गया लेकिन जैसे ही उसने कार्य दिखाने के पेन ड्राइव लगाई तो तब उसके आचार्य का कोई ठिकाना न था क्योंकि उसकी पेन ड्राइव अहम् वक्त पर किसी के द्वारा बदल दी गई थी इस वजय से वह वहा बहुत शर्मिंदा हुआ परन्तु समय की नज़ाकत को देखते हुए और उसकी कार्य क्षमता जानते हुए एक ओर मौका दिया गया। तब करन ने अपने लैपटॉप में देखा ताकि वह अपना कार्य दिखा सके लेकिन दुर्भाग्यवश उसका लैपटॉप भी ख़राब हो गया तो करन बेहद हताश हो गया और उसकी ऐसी हालत को देख कर तन्मय को बेहद ख़ुशी हो रही थी और वह अपने पिता के समक्ष दिखावा करता है और उन्हें इस हालात से निकलने का एक हल सुझाया की, "वीर की योजना दिखाई जाए ताकि ग्राहक शांत हो जाए और उनकी बेइज्जती न हो।" उसी समय वीर कमरे में आता है और करन को सही पेन ड्राइव दे देता है और माहौल को सँभालने के लिए वह कहता है की ,"इसमें करन की कोई गलती नहीं है दरसल यह अचानक हो गया जब करन बैठक के आ रहा था तब वह मुझ से टकरा गया जिस वजय से पेन ड्राइव बदल गई।" यह सब सुनकर और वीर की बातों को सही जान करके बात वही समाप्त किया गया और आगे की बैठक की कारवाई शुरू की गई यह सब देख कर वीर बेहद खुश हुआ और सब कुछ भूल कर ग्राहकों को कार्य देखना प्रारम्भ करता है जो की ग्राहकों को बेहद पसंद आता है। बैठक के समाप्त होते ही करन सबसे माफ़ी मांगता है और आगे से ऐसी भूल न करने का वायदा करता है तब वीर के पिता उसे माफी दे देते है परन्तु इस हरकत ने वीर के पिता की नज़रों में करन को कहीं न कही गिरा दिया था जैसे की तन्मय चाहता था इस जित की ने उसे अधिक आत्मविश्वासी बना दिया था जो की आने वाले वक्त में हार का मुँह दिखाने वाला था। परन्तु वह यह सोच सोच कर परेशान हो रहा था की वीर के पास वो पेन ड्राइव आई कहा से या फिर कोई है जो उनकी सहायता कर रहा है। वह यह बात अपने कार्यालय में बैठ कर सोच ही रहा था की इतने में उसके पिता भी आ जाते है। तब तन्मय खुद को सही देखने में और करन को गलत साबित करने के लिए अपने पिता से कहता है ,"पापा हमने शायद करन पर ज्यादा ही विश्वास कर लिया है आज अगर वीर वक्त पर न आता तो हमारी कंपनी की बहुत बदनामी होती।" उसकी ऐसी बात सुनकर उसके पिता जवाब दिया, "अरे !तन्मय तुम ये कैसी बात कर रहे हो करन ऐसा कभी नहीं कर सकता वो वीर और तुम्हारे जैसा मेरा बेटा और मैंने उस पर भरोसा कर के कोई गलती नहीं की है मुझे उसकी नियत और क़ाबलियत दोनों पर पूर्ण विश्वास है ये किसी ओर का काम है।" तन्मय ने बौखलाती हुई और कंपकंपाती आवाज में कहा, "किसी ओर का काम है मतलब क्या है आपका आप क्या कहना चाहते है स्पष्ट शब्दों में कहिये की आपके कहने का क्या भाव है" उसके पिता ने तन्मय को टेडी नज़रों से देखा और बोले, "मुझे यह नहीं पता की ये किस का काम है और उसने ऐसा क्यों किया पर इतना स्पष्ट रूप से कह सकता हूँ की वो जो भी है मैं उसे जरूर पकड़ लूंगा और उसको ऐसी सजा दूंगा की ता-उम्र भूल नहीं पाएगा पर जो भी हो आज करन ने मुझे कही न कही निराश किया है।" यह सब कहने के बाद उसके पिता वहाँ से चले जाते है। बस यही बात तन्मय चाहता था और अब उसे प्रोत्साहन मिला तो इस ख़ुशी में उसने एक बड़ा षड्यंत्र रचा जो की उन दोनों की दोस्ती को पूर्ण रूप से तोड़ सकता था। 

 रात को तन्मय ने दोनों के पी.ए को बुलाया और अपना षड्यंत्र समझाया जिसमें दो और लोग सम्मिलित थे पहला था एक हैकर ओर दूसरा व्यक्ति विपक्ष कम्पनी का कार्यकर्ता था उन्होंने यह योजना बनाई की वह एक हैकर की सहायता से कुछ रखी हुई फाइल को गायब करवाएंगे और कार्य की ख़ुफ़िया जानकारी को दूसरी कंपनी को बेच देंगे परन्तु इस योजना में तन्मय ने खुद को शामिल न किया उसने इस योजना में दोनों पी.ए, हैकर ओर दूसरा व्यक्ति विपक्ष कम्पनी का कार्यकर्ता रखा था ताकि अगर कुछ गलत होता भी है तो उसका नाम न आए , ये सब योजना बना करके उन्हें पैसो और उच्च पदवी देने का लालच दे दिया । कुछ दिन बाद जब कार्यालय के सभी कार्यकर्ता अपना -अपना कार्य कर रहे थे तो अचानक कार्यालय के सभी कंप्यूटर में तकनीकी खराबी आई जिससे सभी परेशान थे और जब यह परेशानी बड़ी तब वीर के पिता ने तकनीशियन को सूचना दी तो सब कार्यालय में पहुंचे और जाँच के पश्चात यह पता चला की हैकर ने करन के टीम के कंप्यूटर को हैक कर लिया था और कार्य की कुछ जानकारी भी गायब है तो सारा दोषारोपण करन पर आ गया वजय यह थी की सभी उस वक्त कार्यालय के सभी कार्यकर्ता मौजूद थे सिवाए करन के दोषारोपण तो करन लगा दिया लेकिन यह बात यही समाप्त नहीं हुई। करन के पी.ए ने करन को भड़काने की पूरी कोशिश की ये कार्य और किसी ने नहीं बल्कि उसके मित्र वीर का है; या नहीं भी मतलब यह था की वह उसे असमंजस में डालना चाहता था जिस वजय से उसके मन शक पैदा हो सके। परन्तु करन ने उस वक्त इस बात पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया। इन सब के दौरान करन फ़ोन मिलाता है और इस समस्या में सहायता के लिए कहता है तो अगले २ घंटो में यह समस्या हल हो गई परन्तु इस कार्य का दोषारोपण करन और उसकी टीम पर ओर भी गहरा हो गया। उस वक्त वीर एक बैठक में गया हुआ था उसे इस समस्या के बारे में जरा भी अंदेशा नहीं था, परन्तु जैसे ही वह बैठक से आता तो उसे सारी बात का पता चलता है तब वह करन का पक्ष लेता है जिससे तन्मय ओर क्रोधित और असुरक्षित हो जाता है लेकिन इन सबके कारण वीर के पिता का विश्वास करन पर बहुत कम हो जाता है जो जाहिर सी ही बात है की यह तन्मय के लिए बहुत ख़ुशी की बात थी और कही न कही उसे यह अंदेशा हो गया था की करन के मन में वीर के प्रति शक पैदा हो गया है। इस घटना के बाद कार्यालय में सभी लोग करन को शक की नज़र से देखने लग गए थे और कार्यालय में बहुत अधिक बेइज्जती होने लगी जो की तन्मय को बहुत ख़ुशी देने वाला था। बाकि के महीनों में करन और उसकी टीम को छोटे-छोटे कार्य सौंपे गए वही दूसरी ओर वीर अधिक महत्वपूर्ण कार्य दिए गए जिससे की करन के मन शक ओर अधिक बड़े और यह सब कुछ तन्मय का रचा हुआ षड्यंत्र था जो की उनकी मित्रता में शक की दीवार चीन रहा था। परन्तु असलियत इससे बिलकुल परे थी, दोनों के मन यह चल रहा था की ये सब कुछ जो चल रहा है ये सब कौन कर रहा है आखिर उसको यह सब कुछ करके क्या मिलेगा । 

   आखिर महा आ गया, माने की फैसले का महा । जब अंतिम फैसले की बारी आई तो उस दिन भी तन्मय ने कुछ षड्यंत्र रचा की सारा वह सारा दोषारोपण करन पर डाल कर उसको कंपनी और वीर की ज़िन्दगी से बहार निकल दे। तो कंपनी की बैठक में परिवार वाले और कंपनी के अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति उपस्थित थे यह प्रक्रिया कंपनी के मुख्यदिश से होती है उनका भाषण लगभग १० मिनट तक चला उसके बाद तन्मय को बोलने के लिए कहा जाता है जहाँ वह १ -१ करके सबूत पेश करता है और अंत में करन को दोषी माना जाता है। सभी करन से ना खुश थे और उसकी बहुत अधिक बेइज्जती होती है। परन्तु अब वीर और करन के सहन करने की क्षमता ख़तम हो चुकी थी और फिर वीर बोलता है और करन का पक्ष लेता है परन्तु अचम्भे की बात तो यह है की करन की तरफदारी में दोनों के बीच बहसा बहसी हो जाती है और यह इतनी बढ़ जाती है की मुख्यदिश को माहौल को सँभालने हेतु बीच में आना पड़ता है। उनके इस व्यवहार को देख तन्मय को यह लगता है की वह अपने षड्यंत्र में कामयाबी हांसिल कर चूका है के इतने में ही उनका एक और मित्र आता है और वीर को कुछ बताता है और फिर वह करन को इशारा करता है जिसको करन समझ जाता है और सबको शांत कर देता है फिर वीर के कहा की "मैं आप सब से कुछ कहना चाहता हूँ" यह देख कर तन्मय असमंजस में पड़ जाता है की आखिर वह क्या बताना चाहता है सब को तो मैंने अपनी ओर कर लिया है और खुद वीर भी उससे गुस्सा है और जो मैं चाहता था की उसकी मित्रता टूट जाए वो भी तो टूट गई अब क्या बाकि रहा गया है (उसने मन में सोचा -"कही उसको कुछ पता तो नहीं चल गया ?? तन्मय ये सब सोच ही रहा होता है की वीर सबको सबूत पेश करता है जिसके अंतर्गत कुछ तस्वीरें और कुछ कागजात थे जिससे यह साफ तौर पर जाहिर होता है की करन बेगुनाह है यह असल में एक साजिश थी जो की हमारे पी.ए का रचा हुआ एक घिनौना षड्यंत्र था और वह तन्मय को टेडी नज़रों से देख कर ये सब कुछ बोल रहा था सभी सबूतों को मद्य नज़र रखते हुए करन को निर्दोष साबित किया गया उसके बाद सब बैठक से बहार आ जाते है वहाँ अब सिर्फ ४ व्यक्ति ही मौजूद थे उसमें वीर, करन, तन्मय और वीर के पिता थे। तब वीर अपने मन में ग्लानि का भाव रखते हुए अपने भाई को कहता है की ,"भईया क्या आपको पता है इसके पीछे एक और व्यक्ति का हाथ है।" तब तन्मय ने खुद को मासूम दिखाते हुए कहा ,"अच्छा तो बोला क्यों नहीं कौन है जो ऐसा घिनोना काम कर सकता है उसको कोई हक़ नहीं तुम दोनों की मित्रता तोड़ने का " तब वीर ने बड़े उत्तेजित भाव से कहा , "हाँ कोई हक़ नहीं है उसे और न ही किसी ओर को वैसे आप बड़े अच्छे से जानते है पर अफ़सोस मैं उससे जान नहीं पाया अगर जनता होता तो इतना सब कुछ सहना न पड़ता मेरे मित्र को मेरे भाई करन को " तन्मय ने हैरानी से कहा, "अच्छा क्या मैं जनता हूँ और तुम नहीं जानते कौन है वो नाम बताओ उसका उसको सजा जरूर मिलेगी "वीर ने क्रोधित वाणी में बोला, "सच में ये यकीन नहीं होता की उसका नाम तन्मय चौधरी है सच में आज मुझे दिल से बहुत शर्म आ रही है की आप ऐसा कैसे कर सकते है अपने आज सिर्फ करन को नहीं बल्कि मुझे भी शर्मशार किया है वो भी एक नहीं कई कई दफा किया गया है सबके समक्ष।" वीर की ऐसी बाते सुनकर सभी के होश उड़ गए। तब वीर ने अपने भाई से यह प्रश्न किया की, "आखिर क्या वजय थी की अपने करन के साथ ये सब कुछ किया क्यों उसे सब के सामने शर्मिंदा होना पड़ा "? तब तन्मय ने बताया की ,"वह ये बिलकुल भी करना नहीं चाहता था परन्तु मेरे भीतर एक असुरक्षित आ गई थी जिसके रहते मैंने ऐसा काम किया मुझे ये लग रहा था की कही तुम्हारी दोस्ती की वजय से मेरा तुम्हारा रिश्ता टूट न जाए तुम्हारा करन के प्रति इतना प्रेम भाव और विश्वास देख कर मुझे यह लगने लगा की ये दोस्ती मेरा और तुम्हारा रिश्ता न तोड़ दे" अपने भाई की ऐसी भावनात्मक बाते सुनकर बोला की, "अरे! भईया इसमें क्या असुरक्षता आपकी और करन की दोनों की जगह अलग-अलग है आप दोनों सामान रूप में प्रिय हो वो मित्र है और आप भाई हो दोस्ती का रिश्ता जितना अहम् होता है उतना ही अहम् भाई का भी होता है और ये अपनी अपनी जगह मान्य है वो आपकी जगह नहीं ले सकता और न आप उसकी। " इतना सब कुछ कहने और सुनने के बढ़ तन्मय अपने किये पर बहुत शर्मिंदा होता है और करन से माफ़ी मांगता है तब करन एक बात बोलता है की, "आपको मुझसे माफ़ी मांगने की कोई आवश्यकता नहीं क्यों मेरे मन में भी आप के प्रति ईर्ष्या का भाव था की वीर जैसा प्यार करने वाला भाई मेरे पास क्यों नहीं है। " यह सुनकर सभी भावुक हो जाते है। तब से तन्मय करन और वीर आपस में प्यार से रहने लग गए। 

   तन्मय की तरह बहुत से लोग मिल जाते है आपका रिश्ता तोड़ने के लिए फिर चाहे वो दोस्ती का हो ;भाई-बहन का हो या कोई भी रिश्ता हो सकता है परन्तु आपके रिश्ते के विश्वास दृढ़ होना अति आवश्यक है ताकि कोई तन्मय आपके रिश्ते की नीव को हिला न सके। दोस्ती का रिश्ता बेहद पाख होता इस रिश्ते में किसी प्रकार की कोई मलिनता नहीं देखी जाती जिसका परिमाण हमारे पुराणों में भी देखने को मिलता है और वो है भगवन श्री कृष्ण और सुदामा जी की दोस्ती इससे बड़ा प्रमाण दोस्ती का ओर कहा देखने को मिल सकता हर रिश्ता अपने आप में खास होता है परन्तु एक सच्ची मित्रता का रिश्ता सबसे खास होता है जिसकी तुलना करना कभी-कभी असंभव प्रतीत होती है। दोस्ती के प्रेम है, आदर है, शालीनता है, सांझेदारी है, विश्वास है और समर्पण वो बस वहीं मित्रता सरल परिभाषा है। और फिर यह भी तो कहा जाता है की, "दोस्ती ही प्रेम की प्रथम सीडी होती है वजय है उसमें प्रेम है, आदर है, शालीनता है, साझेदारी है, विश्वास है और समर्पण तभी इस को हर व्यक्ति इसको निभाने में असमर्थ होता है मित्र तो बहुत से मिलते है और मिल कर बिछुड़ जाते है परन्तु एक सच्चा मित्र मिलना कठिन होता है लेकिन जब मिलता है तो ता-उम्र साथ निभाता है। " 


 


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