भविष्य (भाग १ )
भविष्य (भाग १ )
भविष्य !!!! आखिर क्या है ये भविष्य ?? भविष्य वो विषय है जिसका हर वयक्ति अपने छोटे से जीवन अंतराल में काफी बार अध्ययन करता है भविष्य का सरल अर्थ यह है की जिस विषय का हमें परिणाम भी नहीं पता हम उसका गहनता से चिंतन मनन और अध्यन करते है भविष्य हमारे वर्तमान में किये
गए कर्मों और भावों का मिश्रण होता है विद्वानों के अनुसार भविष्य सिर्फ और सिर्फ हमारे कर्मों पर ही आधारित होता है आप वर्तमान में जो आप का कर्म होगा उसका परिणाम ही आपका भविष्य कहलाएगा भविष्य को जानने से अच्छा है की आप अपने वर्तमान के कर्मों को ही बदल डाले आपका भविष्य अपने आप ही बदल जाएगा आप अपने भूत , भविष्य और वर्तमान के खुद ही मालिक हो जब एक व्यक्ति अपने वर्तमान से ज्यादा अपने भविष्य में रहता है तो ऐसा व्यक्ति अपना वर्तमान दुखमय बना लेता है जिसके फलसवरूप उसका भविष्य भी दुखमय बन जाता है जिससे उसका समस्त जीवन दुखमय बन जाता है जैसे की ठाकुर उदयभान राजवंश नाम का एक राजा ने अपने भविष्य को जानकर अपना वर्तमान भी दुखमय बना लिया
एक राज्य में ठाकुर उदयभान राजवंश नाम का एक राजा राज्य करता था राजा बहुत ही दयालु वीर समझदार और राज्य के हर व्यक्ति से प्रेम का भाव रखने वाला था उसका राज्य राम राज्य सा प्रतीत होता था अपने इस स्वभाव के रहते उसने काफी राज्यों से संधि कर रखी थी वह बहुत ही समृद्ध राजा था उसकी इस समृद्धि को देखकर उससे कई राजा जलते थे और उनसे प्रतिस्पर्धा और घृणा का भाव रखते थे और उनसे उनका राज्य हड़प कर उनको बर्बाद करना चाहते थे
एक बार की बात है राजा उदयभान अपनी राजसभा में बैठ कर अपने मंत्रियों के साथ राज्य को ओर समृद्ध बनाने की योजनाएँ बना रहा था इतने में ही राजा का गुप्तचर आया और उन्होंने राजा को कुछ ऐसी बाते बताई जिस को सुनकर उनके होश उड़ गए मानो किसी ने उनकी ज़िंदगी ही छिन ली हो उनके गुप्तचर ने बताया की “पड़ोसी राजा ने हमारे ऊपर आक्रमण करने की योजना बना रहे है वो आपका राज्य छिन कर उसपर अपनी हुकूमत करना चाहते है और उनके दिमाग में कही पर भी संधि करने की योजना नहीं है ” इस खबर को सुनकर मानो उनको हिलाकर रख दिया था उनको कुछ समझ में नहीं आ रहा था उन्हें अपना सब कुछ हाथ से निकलता प्रतीत हो रहा था उन्हें अपना भविष्य अंधकार में डूबता दिखाई दे रहा था राजा की ऐसी हालत देख कर राजा के मंत्रियों ने राज पुरोहित से बात की और राज पुरोहित जी से राजा के दुःख को दूर करने की प्रार्थना की इस पर राज पुरोहित ने जवाब दिया “महाराज की जो परेशानी आप ने मुझे बताई है उसका हल मेरे पास बिल्कुल भी नहीं है ” पुरोहित की ऐसी बातें सुनकर मंत्रियों ने कहा , “आप ऐसे नहीं बोल सकते है वो हमारे राजा और राजा की परेशानी हमारी परेशानी है कृपया महाराज की परेशानी का कोई हल ढूंढिए क्योंकि हम महाराज को ऐसी हालत में नहीं देख सकते ” मंत्रियों की ऐसी करुणामय बातों को सुनकर पुरोहित जी भी बहुत भावुक हो गए और कुछ देर तक में रहे और फिर बोले , “मैं तुम सब को किसी भ्रम में नहीं रखना चाहता हूँ ये सच है की मेरे पास महाराज के इस परेशानी का कोई हल नहीं है है हाँ पर कोई है जो महाराज की इस मुश्किलात का हल कर सकता है" इस पर मंत्रियों से बड़े विनम्रता से पूछा, "पुरोहित जी कृपया करके हमें उस महान व्यक्ति का नाम बताए जो की महाराज की परेशानियों का हल सकता है" इस पर पुरोहित जी ने बताया की "वह कोई आम इंसान नहीं है वह बड़े धर्मात्मा है वो बहुत ही सिद्ध महंत है जो की अपने ही राज्य में रहते है वह व्यक्ति को देखते ही उनका भविष्य बता देते है और आज तक उनकी कही एक भी बात झूठी साबित नहीं हुई परन्तु मुश्किल यह है की वो किसी के घर नहीं आते महाराज को खुद उनके आश्रम में जाना पड़ेगा" मंत्रियों को यह बात अति प्रसन्नता हुई और उन्होंने कहा, "पुरोहित जी हम महाराज की खुशियों के लिए कुछ भी कर सकते है और सवालात तो ये है की महाराज से इस बारे में बात कोण करेगा" इस पर पुरोहित जी जवाब दिया, "मैं बात करूंगा महाराज से" इतना सब कुछ कहने और सुनने के बाद पुरोहित जी महाराज के कक्ष में जाकर उनसे बात करने के लिए चला गया पुरोहित जी राजा के पास गए और उनको प्रणाम करके उनसे कहा, "महाराज क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ"? महाराज ने उतर देते हुए कहा, "जी पुरोहित जी पूछिए क्या पूछने की इच्छा है?" इस पर पुरोहित जी ने कहा, " महाराज काफी दिनों से देख रहा हूँ की आप काफी परेशान है आप की परेशानी की क्या वजह है'? इस पर महाराज ने अपनी परेशानियों के बारे में सोचा और दर्द भरी आहें भरते हुए कहा, अब आप से क्या छिपाऊँ पुरोहित जी", ये कहकर महाराज ने सारी बाते पुरोहित जी को बता दी इस पर पुरोहित जी ने कहा, "महाराज इसमें इतना परेशान होने वाली कौन-सी बात है युद्ध जीतना तो आपके बाए हाथ का खेल है और जिस से आपका युद्ध है वह आपके सामने कुछ भी नहीं है" पुरोहित जी की ऐसी बाते सुनकर राजा ने कहा, "आप शायद ठीक बोल रहे हो मैं बेशक उससे युद्ध कला में जित जाऊँ परन्तु मैं उससे षड्यंत्र में कभी भी जित नहीं पाऊंगा क्योंकि वह इस कला में मुझसे कई गुना निपुण है और यही कारण है मैं उनकी इसी निपुणता के कारण मैं युद्ध में पराजित हो जाऊंगा " महाराज की ऐसी बाते सुनकर पुरोहित जी ने कहा, "आपका कहना शायद सर्वथा उचित है परन्तु महाराज यह भी तो हो सकता है की भविष्य आपकी सोच से विपरीत हो"? पुरोहित की ऐसी बाते सुनकर महाराज ने बड़े उत्साह के साथ पूछा, "आप कहना क्या चाहते है क्या आप मेरा भविष्य देख सकते है अगर हाँ तो कृपा कर मुझे बतलाइये की इस युद्ध के बाद मेरा क्या भविष्य होगा"? महाराज की ऐसी बात सुनकर पुरोहित जी ने बड़ी विनम्रता के साथ उत्तर दिया ,"महाराज मैं भविष्य नहीं देख सकता हूँ परन्तु कोई है जो आपका भविष्य बता सकता है", इस पर महाराज ने कहा , "कौन है वो मुझे बताओ मैं खुद उनके पास जाऊंगा कृपा मुझे उस व्यक्ति के बारे में बताने की कृपा कीजिये," महाराज के प्रश्न के उत्तर देते हुए कहा," वह कोई व्यक्ति नहीं है वह एक महान संत है, उनकी महानता का बखान नहीं किया जा सकता, वह एक सिद्ध महंत है, और उनके द्वारा कही गई हर वाणी(भविष्य) सत्य सिद्ध होती है" इतना सब सुनने के बाद महाराज ने कहा, "अगर ऐसा है तो मैं अवश्य उस संत महात्मा के पास जाऊँगा , मैं कल ही उनके आश्रम में जाने के लिए प्रस्थान करता हूँ" इतना सब कुछ कहने और सुनने के बाद पुरोहित जी वहाँ से चले जाते है और महाराज अपने शयन कक्ष में विश्राम करने के लिए चले जाते है
अगली सुबह जब महाराज उठे तो वह बड़े परेशान थे क्योंकि वह अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित थे और महंत जी के पास जाने के लिए आतुर थे और अपने भविष्य को लेकर जिज्ञासुक थे अपनी समस्याओं का हल पाने के लिए महाराज अपने कुछ सैनिकों को लेकर महंत जी के पास पहुंचे जहाँ पर महंत के शिष्यों ने उनकी आओ-भगत की और उनके आने का गंतव्य पूछा तब महाराज ने महंत जी से मिलने की इच्छा प्रगट की तब शिष्यों ने बताया की महंत जी ध्यान में मगन है और वे ध्यान से कब उठेंगे कुछ कहा नहीं जा सकता इस पर महाराज ने उत्तर दिया," कोई बात नहीं मैं इंतज़ार कर लूंगा परन्तु मैं महंत जी से भेंट करके ही आज यहाँ से जाऊँगा " इस पर उनके शिष्य ने कहा ,"ठीक है राजन जैसे आपकी इच्छा आप वहाँ वृक्ष के नीचे विश्राम कर सकते है" महाराज को इंतज़ार करते-करते काफी वक्त बीत चूका था, अब उनकी सहनशीलता जवाब देने लगी थी, उनके मन में मच रही हल-चल का प्रवाह ओर तीव्रता से बढ़ गया था शाम के लगभग ६ बज चुके थे महाराज के पास महंत जी का शिष्य आया और उन्होंने महाराज से कहा, "हे राजन! महंत जी अभी तक ध्यान से नहीं उठे है और अब तो रात भी होने वाली है तो मेरा आपसे विनम्र निवेदन है की आप अपने राज -महल लोट जाए कल सुबह फिर से आप आ जाना शिष्य की ऐसी बाते सुनकर महाराज के क्रोध का पारावार न रहा और उन्होंने शिष्य से कहा, "मैं यहाँ से कही नहीं जाऊँगा जब तक मैं महंत जी से नहीं मिल लेता तब तक मैं यहाँ से कही नहीं जाऊँगा " फिर शिष्य ने कहा, "ठीक है राजन आप क्रोध न करे आप का जब तक मन है आप यहाँ रुक कर इंतज़ार कर सकते है" महाराज को इंतज़ार करते-करते ५ दिन हो चुके थे छटे दिन की सुबह जब महाराज के सब्र बाँध टूट चूका था फिर महंत जी का शिष्य आया और उन्होंने महाराज से कहा, "हे राजन महंत जी ध्यान से उठ गए है उन्होंने आपको याद किया है वो आपको बुला रहे है कृपया कर कुटिया में पधारे" महाराज बड़े ही स्वच्छ मन से महंत जी के आश्रम में उम्मीद का दीप जगा कर प्रवेश किया की उन्हें उनकी मुश्किलों का हल अवश्य मिल जाएगा महाराज ने जब आश्रम में प्रवेश किया तो महंत जी का तेजवान चेहरा देखकर आनंदित हो गए महंत जी के चेहरे पर अलौकिक तेज चमक रहा था उनकी आंखें में चाँद के समान शीतलता और तेज था उस तेज के समक्ष सब कुछ धुंधला था महाराज उनके तेज को देख कर मंत्रमुग्ध हो गए थे महाराज ने सर्व प्रथम उनके चरणों में गिर कर उन्हें दंडवत प्रणाम किया फिर महंत जी ने महाराज से कहा, "हे राजन आपका किस उद्देश्य से यहाँ मेरी कुटिया में आगमन हुआ है कृपा कर उस उद्देश्य को प्रगट कीजिये" इस पर महाराज ने कहा, "मेरा यहाँ पर आगमन का उद्देश्य बेहद विस्तार था, मैं आपसे कुछ प्रश्नों के उतरो को जानने के लिए लालायित था, परन्तु हे गुरुदेव जब से मैंने आपके दर्शन किये है तब से मेरे मन किसी भी प्रश्न के उत्तर जानने के लिए लालायित नहीं है आपके दर्शन मात्र से ही मेरा जीवन सुखमय और मन स्थिर हो गया है" इस पर त्रिकाल दर्शी महंत जी ने उनसे कहा, "राजन मुझे यह सुनकर अति प्रसन्नता हुई की आप का मन मेरे दर्शन मात्र से ही स्थिर हो गया है परन्तु हे राजन आप फिर भी अपने मन में कोई संकोच न रखे आपके मन में अब भी कही न कही एक द्वन्द्व चल रहा है कृपया कर उस बात को जल्द से जल्द निकल कर अपने मन में चल रहे उस द्वन्द्व को शांत कीजिये" महंत जी की ऐसी बाते महाराज ने कहा, "गुरुदेव आप तो परम ज्ञानी है, त्रिकाल दर्शी है, ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका हल आपके पास न हो, तो हे परम दयालु मुझ पर भी दया करो और मेरे मन में चल रहे प्रश्नों के उतर देकर मेरे मन को शांत करे" इस पर महंत जी ने कहा, "अवश्य राजन पूछो क्या पूछने की इच्छा है?" फिर महाराज ने कहा, "गुरुदेव मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो भविष्य से ज्यादा वर्तमान में जीता हूँ, मैं सिर्फ अपने कर्म पर विश्वास रखता हूँ और न उस कर्म के बदले फल की इच्छा ही रखता हूँ परन्तु पिछले दिनों कुछ ऐसा हुआ जिससे मेरे मन में अपने भविष्य को जानने की तीव्र उत्कंठा हो रही है", फिर महाराज ने सब बाते महंत जी को बताई और कहा, "गुरुदेव कृपया कर आप मुझे ये बताइये की इस युद्ध का क्या परिणाम होगा, अगर मुझे युद्ध का परिणाम पता होगा तो मैं पहले ही कुछ ऐसा करूंगा जिससे की मैं युद्ध का परिणाम बदल दूंगा", महाराज की ऐसी बाते सुनकर महंत जी हंस कर बोले, "राजन! आप यहाँ भविष्य पूछने आए है या भविष्य को बदलने आए है?" इस पर महाराज ने कहा, "गुरुदेव मैं यहाँ पर भविष्य जानने आया हूँ " इस पर महंत जी ने ध्यान लगाया और तत्पश्चात उन्होंने कहा," राजन! आप जिस युद्ध का परिणाम जानना चाहते है तो हे राजन इसका परिणाम आपके राज्य के लिए बेहद अनिष्टकारी है, इस युद्ध के बाद आपका राज्य पतन की और अग्रसर हो जाएगा और साथ ही साथ अरसों से कमाई हुई इज़्ज़त भी नीलाम हो जाएगी आपके किसी भी प्रयास से कोई फर्क नहीं पड़ेगा अर्थात कहने का भाव यह है की आप चाहे कितने ही जतन क्यों न कर लो परन्तु आप का इस युद्ध में जितना संभव नहीं है, और आपके राज्य का पतन होना सर्व लिखित है जिसे कोई भी बदल नहीं सकता" महाराज को ये सब बाते बोलने के बाद महंत जी फिर से साधना में बैठ जाते है और महाराज को विनम्रता पूर्वक आश्रम से प्रस्थान करने की आज्ञा देते है महंत जी की ऐसी बाते सुनकर महाराज अति दुखित हो वहाँ से चले जाते है इस बात को करीब २ हफ्ते बीत चुके थे महाराज अभी तक महंत जी की बातो को दिल पर लगाए दुखित हो रहे थे और यह सोच-सोच कर विलाप कर रहे थे की बरसो से कमाया हुआ धन-धान्य, मन-समान सब नष्ट हो जाएगा महाराज हर दिन यही सोचने में लगा देते थे की उनका और उनके राज्य का भविष्य अंधकारमय है अब उनका जीवन निर्वाह कैसे होगा वह न तो कुछ खाते-पीते थे और न ही किसी से कुछ बात ही किया करते थे महाराज की ऐसी हालत देख कर सभी मंत्री गण दुखित हो गए थे परन्तु भगवन की कृपा से महाराज ने खुद को संभाल लिया था और वे महंत जी की भविष्यवाणी से लगभग बाहर निकल गए थे जिसे देख कर सब के अंदर प्रसन्नता का भाव आया की अब महाराज ठीक है ये सब कुछ सम्भला ही था की उनके गुप्तचर ने उसे सन्देश दिया की "महाराज पड़ोसी राज्य आपके राज्य पर आक्रमण करने के लिए रवाना हो चुके है" यह सब सुनने के बाद महाराज ने भी युद्ध की समस्त तैयारियां कर ली थी
अगले दिन युद्ध की घोषणा हो जाती है महाराज भी अपनी समस्त सेना के साथ युद्ध के लिए रवाना हो गए महाराज जैसे ही रण भूमि पर पहुंचे तो उन्हें फिर से महंत जी बाते महाराज के भीतर चलने लगी परन्तु फिर भी उस वक्त महाराज ने खुद को थोड़ा संभाल लिया परन्तु जैस-जैसे युद्ध बढ़ता गया वैसे-वैसे उनके मन में बाते आने लगी और इसके के फलस्वरूप उनका युद्ध से ज्यादा उस भविष्यवाणी के बारे में सोच रहे थे उस वक्त उनकी हालत ऐसी हो गई थी की वे रण भूमि को छोड़ कर भाग जाए युद्ध का माहौल यूं था की महाराज की आधी सेना वीर गति को प्रपात हो चके थे युद्ध को चलते लगभग शाम हो गई थी वो परिणाम यह निकला की महाराज युद्ध हार गए(जारी है)............??????
(- अब महाराज का क्या फैसला होगा?? - क्या महाराज युद्ध हर जाए गे?? - क्या वे अपने कर्तव्य को भूलकर भविष्यवाणी को स्वीकार करेंगे?? - क्या होगा महाराज का भविष्य??)
( जानने के लिए जुड़े रहिये मुझसे और देखिये भविष्य भाग २ में की महाराज के साथ क्या होगा क्या वह राज्य वापिस ले लेंगे या वे अपना सब कुछ गवा देंगे??)