भूत बंगला...भाग ४
भूत बंगला...भाग ४
आगे हमने भाग ३ में देखा की चेतन वो तांत्रिक की बातें और उनके प्लान में बुरा फँस चुका है और वो चेतन को अमावस्या को पूजा-विधि करेंगे एसा कहता है... अब आगे
अमावस्या के अगले दिन चेतन ने तमाम तैयारी कर दी और सीधा वो फिर प्राची के घर बाईक पर जा रहा था, तब बीच में कोई दादी मां जो रोड क्रॉस कर रहे थे उनको दिक्कत होती देख बाईक खड़ी करके वो दादी मां को रोड क्रॉस करवाने में मदद करने गया, उनके पास जाकर चेतन दादी मां से कहने लगा, "दादी मां मैं आपकी मदद करता हूँ आप मेरा हाथ पकड़ लो, रोड को क्रॉस करने में आसानी होगी। "दादी मां हाथ पकड़ती है और अचानक ही चेतन के शरीर में अजीब सी कंपन होने लगती हैं। उसी समय प्राची अपने घर के मंदिर के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही होती है की "मां मेरे चेतन को कुछ हो गया है, उनको तुम शक्ति देना और उन्होने बंगले में से बुरे साये को निकालने का प्रयास जो कर रहे हैं उसमें पूरी सहायता करना।" प्राची की बात शायद भगवानजी ने सुन ली और वो अच्छी शक्ति के रुप में उस दादी मां के भीतर आ जाते हैं जिनका हाथ पकड़ते ही चेतन को जिस चीज से अभिमंत्रित किया था उसका प्रभाव तुरंत ही खत्म हो जाता है। वो बुरा प्रभाव दूर हो जाने पर चेतन पहले था वैसा हो जाता है और दादी मां को रोड क्रॉस करवा के चल पड़ता है, तब दादी मां उसे कहते है कि "बेटा जो भी काम तू करने जा रहा है उसमें तुम्हें अच्छी सफलता मिलेंगी" और वो चले जाते हैं। चेतन स्माईल करके वहां से सीधा प्राची के पास पहुँच जाता है और वहाँ पहुँचते ही प्राची को मंदिर के आगे खड़ी देख वो हँसते हुए कहता हैं,"ओय प्राची ऐसे प्रार्थना करने से बंगले में से तेरा भूत नहीं भाग जाएगा उसके लिए तुम्हें उसे वहां ही ढूँढना पड़ेगा। वहां मैंने दो तांत्रिक को बुला रखा है वो उसको भगा देंगे, चल में तुम्हें लेने को आया हूँ, हमें वहां वो पूजा करने बैठना है। प्राची चेतन को पहले की तरह बात करते देख खुश तो हुई मगर सोचने लगी अचानक ही ऐसा परिवर्तन आया कुछ तो सच ही में गड़बड़ हैं और मन ही मन कहती है "चेतन तुम चिंता मत करो मैने जो सोचा है वो मैं कर दूंगी" और चेतन से कहती हैं,"चेतन चलो मुझे उस बंगले में ले चलो।"
दोनो बंगले में पहुँचते हैं, अमावस्या का दिन हैं, वो दो तांत्रिक तो अपने प्लान के मुताबिक बलि कैसे देनी है वो तैयारी कर चुके होते हैं। वहां पहुंचने से पहले प्राची ने थोड़ी जांच-पड़ताल की, उसे मामला थोड़ा अजीब सा लगा और चेतन ने भी वो सब देखा मगर वो कुछ बोला नहीं क्योंकि वो पहले की तरह हो गया था और ये सब मामले में वो पड़ना कम चाहता था। पूजा-विधि करने वो बैठ गए और तांत्रिक ने पूजा करने की शुरुआत की तभी ही अचानक धूपसली के धुएँ से प्राची को वो ही आत्मा का चेहरा नजर आया जो उसे पहले आग की ज्वाला में नजर आया था और वो कुछ दिखाना चाहती थी ऐसा प्राची को लगते ही वो बिना कुछ बोले बिना हिचकिचाते उसे चुपचाप देखती रही, वो आत्मा दिखा रही थी की कोई तांत्रिक लोग है वो कोई लड़की की बलि दे रहे हैं और प्राची तुरंत ही वहां से खड़ी हो जाती है और कहने लगती है की "मुझे ये पूजा में नहीं बैठना, आप लोग किसी लड़की की बलि दे रहे हो या फिर बलि देने वाले हो, ऐसा काम जो करते हैं उनके पास पूजा मुझे नहीं करवानी, मुझे यहाँ बिलकुल ही नहीं बैठना।" चेतन उसे पूछने लगता हैं,"प्राची उन्होने कोई बलि नहीं दी और वो बलि देना ऐसा कुछ करते नहीं है और नाही यहाँ ऐसा कुछ करने वाले है, यह तो वो पूजा करने को आए हैं जिससे तुम्हें वो बुरी आत्मा दिखी थी वो फिर नज़र ना आए, तुम नाहक ही डर रही हो।" प्राची उसे कहती हैं,"नहीं जो भी हो, मुझे अब इस पूजा में नहीं बैठना। " और प्राची वहां से थोड़ी दूर जाकर बैठ जाती हैं और वहां से भी भी वो धूपसली के धुएँ में देखती हैं की चेतन जैसा कोई बंदा श्मशान में बैठा है, जिसके सामने मनुष्य की खोपड़ी है उसके आसपास नींबू रखे हुए हैं मगर वो वहां दूर ही चुपचाप बैठी रहती है। वहाँ तांत्रिक के दिमाग में भूचाल सा मच जाता है की "आज हमें किसी भी तरह से बलि तो देनी ही है और जिसकी बलि देनी हैं वो क्यों अभी ऐसा कर रही है ? हमारा प्लान उसको मालूम पड़ गया है क्या ?" दोनो के दिमाग में टेन्सन मच गई है।