Ravi Ranjan Goswami

Drama Children

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Ravi Ranjan Goswami

Drama Children

भूरा पिल्ला

भूरा पिल्ला

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झाँसी शहर की पुरानी बस्ती में

मुन्ना विकास पुरी में रहता था और टोनी आज़ाद नगर में। ये दोनों मोहल्ले सटे हुए थे। मोहल्लों के बीच की सीमा पर एक नाली थी। मुन्ना और टोनी दोनों 11 वर्ष के थे और पड़ोस के सरकारी स्कूल में कक्षा 5 के विद्यार्थी थे।

 एक दिन दोपहर में टोनी विकासपुरी से होता हुआ आज़ाद नगर की तरफ आ रहा था। एक भूरे रंग का पिल्ला उसके पास आकर उसके पैरों को सूंघने लगा। पिल्ला बड़ा मासूम और प्यारा था। टोनी ने उसे पुचकारते हुए उसके माथे को धीरे से छुआ और अपने घर की और चल दिया। कुछ कदम चलने के बाद टोनी ने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया पिल्ला उसके पीछे पीछे चला आ रहा था।

नाली के पास आकर वह रुक गया। नाली उसके हिसाब से चौड़ी और गहरी थी। उसने कूँ कूँ की आवाज की टोनी ने उसे उठा कर नाली पार करा दी। उस समय टोनी ने सिर्फ इतना सोचा कि पिल्ला नाली पार करना चाहता है किन्तु कर नहीं कर पा रहा है । इतना समझ कर उसने पिल्ले को नाली पार करा दी। उसे उसने उठाकर नाली के दूसरी और जमीन पर उतर दिया और अपने घर चला गया।

टोनी का घर एक गली में था। उसके घर के आगे एक संकरा चबूतरा था। टोनी के पापा का स्कूटर चढ़ाने के लिये दरवाजे के सामने एक ढलान वाली एक फुट चौड़ी खिसल पट्टी बनी थी। टोनी ने ध्यान नहीं दिया और दरवाजा बंद कर अंदर चला गया।

थोड़ी ही देर बाद वह भूरे रंग का पिल्ला टोनी के दरवाजे पर बनी ढलान पर चढ़कर दरवाजे के करीब जाकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद वह वही लेट गया और आँखें बंद कर लीं। मानसून का आगमन हो चुका था। थोड़ी देर बाद बूंदा बांदी होने लगी। टोनी के दरवाजे में थोड़ी सांस थी। पिल्ला बारिश से बचने के लिए उसमें से अंदर घुसने की कोशिश करने लगा। सांस इतनी चौड़ी न थी कि वह उसमें घुस पाता। इस प्रयास में उसने कूं कूं की आवाज निकालते हुए दरवाजे को खड़खड़ा दिया। आवाज टोनी के कानों में पड़ी। उसने तुरंत दरवाजा खोलकर देखा तो उस भूरे पिल्ले को देखकर आश्चर्य चकित रह गया। दरवाजा खुलते ही पिल्ला भीगने से बचने के लिए दरवाजे के अंदर आकर एक कोने मैं बैठ गया। टोनी की छोटी बहन टीना और माँ भी उधर आ गयीं। माँ ने उसके लिए एक बोरा बिछा कर उस पर उसे बिठा दिया। टीना किचन में से एक रोटी का टुकड़ा ले आयी और उसके पास रख दिया। पिल्ले ने पहले रोटी के टुकड़े को सूँघा और फिर उसे खा लिया। टीना खुश हो गयी।

माँ जो पूछना चाह रही थी ,टीना ने पूछ लिया , " भैया यह कहाँ से आया। यह किसका है? "

टोनी ने कहा ," पता नहीं किसका है। मेरे पीछे आ गया।

टीना को छोटे से पिल्ले पर प्यार आ रहा था। उसने माँ से पूछा, "माँ क्या इसको हम पाल लें?"

टोनी ने भी उत्साहित होकर कहा, "हाँ मां इसे पाल लेते हैं वैसे भी इसकी हम सबसे दोस्ती हो गयी है।

माँ ने कहा, "न बाबा न। थोड़ी देर खेल कर इसे छोड़ दो। पता नहीं किसका कुत्ता है। या तो ये अपने आप वापस वहीं चला जाएगा जहाँ से आया है। या इसका मालिक इसे खोजता हुआ लेने आ जायेगा।"

टीना बोली , "इसके गले में पट्टा भी नहीं बंधा। मुझे नहीं लगता ये पला हुआ है।"

टोनी को विचार पसंद आया। किन्तु पिल्ले के गले में बांधने के लिए घर में पट्टा तो था नहीं।

उसने टीना से कहा, "तुम्हारा बालों की चोटी में बांधने वाला कोई पुराना फीता है?"

माँ बीच में बोली, "तुम लोग क्या करने वाले हो। लगता है मेरे लिए काम बढ़ाओगे। "

टीना ने माँ से कहा, "मैं और भैया इसको सम्हाल लेंगे। "

टोनी ने टीना की हाँ में हाँ मिलायी।

माँ ने कहा,, "पापा से पूछ लेना। और किसी का पालतू हुआ तो उसे वापस कर देना।

टीना जल्दी से जाकर अपना एक पुराना लाल रिबन लेकर आ गयी।

टोनी न वह रिबन पिल्ले के गले मैं बाँध दिया। टोनी ने जब फीता बांधने के लिये पिल्ले को पकड़ा तो

पिल्ले ने थोड़ा विरोध किया। हाथ पैर चलाकर छूटने की कोशिश की। किन्तु टोनी ने कसके पकड़ कर उसके गले में फीता बाँध दिया और उसे छोड़ दिया। वह दरवाजे के बाहर भाग गया। उसके गले में फीता बांध कर टोनी और टीना समझ रहे थे पिल्ला उनका हो चुका है।

उधर भूरे अपने नन्हे पैरो से दौड़ते हुए विकास पुरी चला गया।

 चार पांच दिन पूर्व विकास नगर में-

मुन्ना और उसके दोस्त कौतूहल से एक भूरे रंग के पिल्ले को घेरे खड़े थे।

मुन्ना बोला, " यह किसका पिल्ला है ?"

राजू ने कहा, "यह हमारे मोहल्ले का तो नहीं है।"

पप्पू ने कहा," मुझे तो यह आवारा कुत्तों के झुण्ड से छूट गया मालूम पड़ता

है। "

मुन्ना ने कहा , "मेरी बात सुनो, अब यह हमारे मोहल्ले का कुत्ता बनेगा। सब लोग

बारी बारी से इसे खाना खिलाएंगे। यह बड़ा होकर मोहल्ले की चौकीदारी करेगा "

मुन्ना ने सबसे कह तो दिया किन्तु पिल्ला को वही पालने वाला था। उसने सबको शामिल होने के लिये इसलिये कहा था कि कोई और उस पर अधिकार न ज़माने लगे। अधिकतर पिल्ला मुन्ना के घर पर ही खाना खाता। उसके दरवाजे पर बैठा रहता। मुन्ना की माँ उसे पसंद नहीं करतीं थी अतः वह बाहर ही रहता था। वह उसे खाना अवश्य देतीं थीं।

एक दिन दोपहर के बाद से भूरा पिल्ला मोहल्ले में नहीं दिखा। शाम जब ढलने को आयी तो मुन्ना को चिंता हुई। मुन्ना और उसके साथियों ने पूरे मोहल्ले में उसकी खोज चालू की। मुन्ना और उसका एक साथी पप्पू खोजते खोजते विकास पुरी और आज़ाद नगर की सीमा पर पहुंचे तो देखा भूरे नाली के दूसरी और बैठा था। इन दोनों को देखकर वह खड़ा होकर तेजी से पूछ हिलाते हुए कूँ कूँ करने लगा। मुन्ना ने उसे दोनों हाथ से उठा कर नाली के इस और खड़ा कर दिया। भूरा दौड़ कर मुन्ना के घर जाकर दरवाजे पर बैठ गया। जब मुन्ना घर पहुंचा तो वह खड़ा होकर पूछ हिलाने लगा और एक दो बार पतली आवाज में भौंका। मुन्ना ने उसके सर पर हाथ फेरा और कहा, "अभी ज्यादा दूर घूमने मत जाया कर। ये फीता तुझे किसने बाँधा। "भूरे उसकी और देखने लगा जैसे कुछ समझ रहा हो। मुन्ना ने पहले उसके गले से फीता खोलने का विचार किया लेकिन वह फीता उसपर अच्छा लग रहा था और उसके पास कुत्ते के गले में बांधने वाला पट्टा तो था नहीं अतः उसने वह फीता बंधा रहने दिया। खाने का टाइम हो गया था। मां ने एक विशेष बर्तन में भूरे को खाना दिया और मुन्ना से अंदर आकर खाने को कहा। भूरा खाने में व्यस्त हो गया था। मुन्ना अंदर चला गया।

टोनी समझ गया था भूरा वापस विकास पुरी चला गया होगा। रात को अपने बिस्तर पर लेटा वह सोच रहा था थोड़े दिन उसे बाँध कर रखेगा जिससे उसे उसके घर के पास रहने की आदत पड़ जाये। वह सोचने लगा भूरा है बहादुर, अकेला चला गया। उसे गली के आवारा कुत्तों से डर नहीं लगता। उसे थोड़ी चिंता हुई किसी बड़े कुत्ते ने भूरे को परेशान तो न किया होगा। फिर उसे याद आया उन दिनों उसके मोहल्ले और विकासपुरी में आवारा कुत्ते नहीं थे क्योंकि नगर पालिका वाले पकड़ कर के ले गये थे। टोनी को उन कुत्तों पर बड़ा तरस आया था।

दूसरे दिन स्कूल से लौटते हुए वह विकास पुरी के रास्ते से घर लौटा। भूरा एक मकान के आगे बैठा था। यह मुन्ना का मकान था। भूरे ने टोनी को देखा तो दौड़ कर उसके पास आ गया। टोनी आज टिफिन में कुछ बिस्कुट भी ले गया था जो वह भूरे के लिए बचा के लाया था। उसने बस्ते में से टिफिन निकाला और उसमें से दो बिस्कुट निकाल कर भूरे के सामने डाल दिए। भूरे ने झट पट बिस्कुट खा लिए।

टोनी ने देखा भूरे के गले में लाल फीता अब भी बंधा हुआ था। टोनी ने इसका मतलब ये लगाया कि

भूरे का कोई और मालिक या लेने वाला नहीं था। उस पिल्ले को वह अपने घर ले जा सकता है।

टोनी भूरे को पुचकारता हुआ घर ले गया।

घर के अंदर जगह कम थी इसलिए भूरे को घर के बाहर उसने मकान की खिड़की के सरिये से बाँध दिया। भूरा एक दो दिन में ही थोड़ा बड़ा हो गया लगता था। वह अपने सामने से निकलने वाले एक भिकारी को देख कर भौंकने लगा। टोनी यह देखकर बड़ा खुश हुआ। बड़ा हो जायेगा तो घर की रखवाली करेगा।

इसके बाद टोनी घर के अंदर चला गया। उसने खाना खाया और थोड़ा विश्राम कर होमवर्क करने लगा।

शाम को जब वह बाहर निकला तो भूरे गायब था.

वह रस्सी जिससे भूरे को बाँधा था, खिड़की के सरिये से बंधी हुई थी। मतलब कोई उसे खोल कर ले गया था।

टोनी के दोस्त श्याम और दीपू भी आ गए। उन्होंने बताया कि भूरे को दूसरे मोहल्ले के तीन चार लड़के खोलकर ले गए।

दीपू ने कहा,"उनमे एक लड़के का नाम मुन्ना था। मैंने उन्हें टोका था कि टोनी के पपी को कहाँ ले जा रहे हो? तो एक लड़के ने कहा था उसका नाम मुन्ना है और भूरे उसका पालतू पिल्ला है। "

टोनी को गुस्सा आया। भूरे अपने आप पहले की तरह जाता तो कोई बात न थी। लेकिन खोल के जबरदस्ती ले जाना तो दादागीरी है। ऐसा उसका ख्याल था।

टोनी ने उन दोनों से कहा," तुम लोग मुझे बुला लेते।"

श्याम बोला, "उनके साथ एक बड़े भैया भी थे। उन्होंने चुप चाप रहने को कहा था। हम डर गये थे। फिर भूरे भी उनसे घुला मिला था जैसे उन्हीं का पालतू हो।“

टोनी गुस्से से बोले अब तो मोहल्ले की इज्जत का सवाल है। हरी दादा को बताना पड़ेगा।

दीपू बोला, "हाँ यही तक रहेगा।“

टोनी , श्याम और दीपू उसी समय हरी दादा के अड्डे पर पहुंचे। मुहल्ले में एक खंडहर था। उसके बरामदे को साफ करके हरी दादा और उनके साथी अकसर वहां बैठ कर ताश खेलते या गपशप करते थे।

टोनी, श्याम और दीपू वहां पहुंचे तो हरी दादा ने पूछा, "तुम लोग यहाँ क्यों आये ? क्या बात है?”

टोनी ने भूरे पिल्ले को लेकर चल रही रस्सा कशी के बारे में बताया।

हरी ने पूछा, "असल में वो पिल्ला है किसका?"

टोनी ने कहा, " वह कहीं बाहर से आया है। वह कभी विकास पुरी और कभी हमारे मोहल्ले में घूमता रहता था। उसके गले में किसी ने पट्टा भी नहीं बांधा था। तो मैंने पाल लिया।"

विकास पूरी का दादा छुट्टन था। कुछ दिनों पहले हरी और छुट्टन की बाजार में पान की दुकान पे बहस हो गयी थी।

मोहल्ले के अधिकांश लोगों को पता नहीं था की विकास पुरी और आज़ाद नगर के बीच दुश्मनी चल रही थी। ये दोनों मोहल्लों के दादाओं और उनके गैंग के लोगों का मामला था। उनमें इतनी शराफत थी कि मोहल्ले के आम लोगों को इससे अलग रखते थे।

झगड़े की हालिया वजह थी कि छुट्टन ने पिछली होली पर विकास पुरी से लगे हुए आज़ाद नगर के कुछ घरों से चंदा ले लिया था। उसका कहना था वे लोग विकास पुरी के होली समारोह में शामिल होते हैं। मामला बढ़ जाता अगर वे घर आज़ाद नगर की गैंग को भी चंदा न देते।

हरी दादा को छुट्टन से बदला लेने का एक मौका भी था और मोहल्ले की इज्जत का भी सवाल था।

हरी दादा ने अपने साथियों से तैयार होने को कहा। वे चार लोग थे। खंडहर के एक कोने में सात आठ पुरानी हॉकियाँ पड़ी थीं। उन लोगों न एक एक हॉकी उठा ली और टोनी और उसके दो साथियों के साथ मुन्ना के घर की ओर चल दिए।

वहां मैदान साफ था। भूरे को मुन्ना ने अपने दरवाजे के बगल में दीवाल में गड़े खूंटे से बाँध दिया था। दरवाजा बंद था। कुछ छोटे बच्चे गली में खेल रहे थे। टोनी को देखकर भूरे पूछ हिलाने लगा और रस्सी से छूटने की कोशिश करने लगा।

हरी दादा ने रस्सी खूंटे से खोलकर टोनी के हाथ में पकड़ा दी। भूरे को लेकर वह सभी अपने मोहल्ले को लौट गये। अब मुन्ना ने छुट्टन दादा से शिकायत की। छुट्टन दादा ने अपने गैंग को इकट्ठा किया और हॉकी और सरियों से लैस होकर आज़ाद नगर को चल दिये। टोनी ने भूरे को घर के बाहर खिड़की से पहले की तरह बाँध दिया।

इतने में आज़ाद नगर और विकास पुरी की सीमा के करीब रहने वाला रक्कू भागता हुआ आया।

उसने टोनी से कहा, "मुन्ना छुट्टन दादा और उसकी गैंग को लेकर आ रहा है।

श्याम ने कहा, "मैं हरी दादा को बता कर आता हूँ। " और वह खंडहर की तरफ दौड़ गया।

कुछ मिनटों में टोनी के घर से पहले गली के नुक्कड़ पर दोनों गुटों का आमना सामना हो गया।

टोनी ने भूरे को खोल कर घर के अंदर कर दिया और दरवाजा भेड़ दिया।

छुट्टन और हरी आमने सामने थे। दोनों के पास हॉकियाँ थीं।

दोनों गुटों में सदस्यों की संख्या बराबर थी छह और छह। सबने मन में तौल लिया था कौन किससे भिड़ेगा।

छुट्टन ने हरी से कहा, " तुम लोग हमारे मोहल्ले के एक घर से पिल्ला खोल कर क्यों ले गये ?"

हरी ने कहा," वह हमारे मोहल्ले का पिल्ला है। तुम्हारे मोहल्ले के लड़के चोरी से उसे ले गए थे। "

अब मुन्ना बोला, "वह मेरा पालतू पिल्ला है।"

टोनी ने जवाब में कहा, "वह मेरा पिल्ला है। उसके गले में सबसे पहले मैंने पट्टा बांधा था। "

हरी और छुट्टन ने टोनी और मुन्ना को पीछे किया और खुद फिर आमने आमने खड़े हो गये।

हरी ने हॉकी पर अपनी पकड़ मजबूत की और छुट्टन से कहा, "तुम लोग यहाँ से चुपचाप वापस चले जाओ। पिल्ला तुम्हें नहीं मिलेगा।

छुट्टन ने भी हॉकी दोनों हाथो से पकड़ कर हरी से कहा, "हम लोग पिल्ला लेकर ही जायेंगे।

तभी वहां एक खाकी वर्दी वाला पुलिस का सिपाही साइकिल से आया। उसने भीड़ देखकर साइकिल की घंटी बजाई और साइकिल उनके करीब जाकर रोक दी।

उसने जेब से एक फोटो निकाली और उन लोगों को दिखाई। सब चौंक गए। वह भूरे की फोटो थी।

न जाने कैसे टोनी के घर से निकल कर भूरे भी आ गया। भूरा सिपाही को देख कर भौंकने लगा साथ ही तेज गति से पूछ हिलाने लगा।

भूरे को देखकर सिपाही खुश हो गया और उसने कहा, "यही तो भूरे है। हमारे थानेदार साहब का पालतू पिल्ला चार दिन से गायब था। पता नहीं यहाँ कैसे आ गया। लगता है कोई किसी वाहन पर बिठा कर चोरी के इरादे से लाया होगा और फिर किसी कारण से उसे यहाँ छोड़ कर चला गया। मैं साहब के यहाँ अक्सर जाता हूँ इसलिए मुझे अच्छी तरह पहचानता है देखो कैसे खुश हो रहा है।

सिपाही ने साइकिल में आगे लगी बास्केट में भूरे को खड़ा कर लिया। टोनी और मुन्ना ने आखरी बार भूरे के सर पर हाथ फेरा और टाटा किया।

सिपाही भूरे को लेकर चला गया।

हरी को एक नेक ख्याल आया। वह सब से बोला, "झगड़े की कोई वजह ही नहीं बची चलो सब लोग हाथ मिलाओ। " यह कह कर उसने छुट्टन की तरफ हाथ बढ़ा दिया। छुट्टन ने मुस्कराते हुए हरी से हाथ मिलाया और फिर सभी लोगों ने आपस में हाथ मिलाया।

टोनी और मुन्ना ने भी हाथ मिलाया। दोनों थोड़ा उदास थे और खुश भी। भूरे अपने असली मालिक के पास चला गया था, एक बड़ा झगड़ा होने से बच गया था और दोनों मोहल्लों के बीच की रंजिश मिट गयी थी।



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