Kaushal Upreti

Abstract

2.1  

Kaushal Upreti

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भूख सरेआम बिकती है

भूख सरेआम बिकती है

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भूख

सरेआम बिकती है

चौराहों पर

सड़क के किनारे

मंदिरों के बाहर

मस्जिदों के

छोटे गलियारों पर

पेट कि भूख

विचारों कि भूख

अरमानो कि भूख

दरअसल

रोटी का अस्तित्व

ही तब-तक है

जब तक भूख है

 

 

 


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