भूचाल
भूचाल
बात उन दिनों की है जब मैं छठवीं या सातवीं क्लास में थी। मेरे पिता को बिजनेस के सिलसिले में अक्सर बाहर आना जाना पड़ता था उनके किसी मित्र ने पिताजी से कुछ सामान खरीदा था और उसके बदले में जो पैसे देने थे वह उन्होंने पापा के भाइयों के नाम पर भेज दिए।
जब पापा वापस आए तो उन्होंने चाचा से पैसे मांगे चाचा ने वह पैसे देने से साफ इनकार कर दिया... उन लोगों ने कहा कि, आप यह घर खाली कर जब अपने दूसरे घर में जाएंगे तभी हम आपको यह पैसे देंगे।
जो हमारा नया घर बन रहा था वह इस हालत में नहीं था कि हम उस घर में जा सके। पर पिताजी को पैसों की भी सख्त जरूरत थी हमारे सामने और कोई रास्ता नहीं था कि हम कुछ अन्य प्रयास कर सकें। और हमको वैसे ही आधे बने हुए घर में बारिश के मौसम में रहना पड़ा।
पिताजी के मित्र द्वारा भेजा गया वह पत्र और बैंक ड्राफ्ट के पैसे हमारे जीवन में इतना भूचाल ले आएंगे यह तो कभी किसी ने नहीं सोचा था। और पिताजी जो हर सुख-दुख में अपने भाइयों के साथ सदैव खड़े रहते थे उन्हें भी इस चीज का एहसास हो गया कि सच्चा सुख का साथी और दुख का साथी कौन है!
सभी भाई-बहन उस समय बहुत छोटे छोटे थे यह घटना हमारे मानस पटल पर ऐसी चित्रित हो गई कि आज भी भुलाए नहीं भूलती।