Preeti Agrawal

Inspirational

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Preeti Agrawal

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बहू का कन्यादान

बहू का कन्यादान

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"पुष्पा पुष्पा... जल्दी चल। तेरे घरवाले का एक्सिडेंट हो गया है" - पुष्पा के पड़ोस में रहने वाली रमीला उसको आवाज लगाते हुए दौड़ते हुए आई ।

रमीला की बात सुनकर पुष्पा जैसे सुध बुध खो बैठी और जिस हालत में थी वैसे ही दौड़ पड़ी।

पुष्पा का पति एक छोटे से रेस्टोरेंट में काम करता था और पुष्पा २-३ घरों में कपड़े, बर्तन और साफ सफाई का। 

 उस रेस्टोरेंट में गैस का सिलेंडर फटने से उसका पति बहुत बुरी तरह घायल हो गया था। लोग उसे अस्पताल ले गए थे। पुष्पा भागी भागी अस्पताल पहुंची पर तब तक उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी। पुष्पा के तीन छोटे छोटे बच्चे थे। उसपर तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा। सब क्रिया कलापों में तेरह दिन कैसे निकले उसे कुछ समझ में नहीं आया। सब रिश्तेदार भी चले गए। अब बस घर में उसकी बूढ़ी सास और ये तीन बच्चे ही थे। उसकी सबसे बड़ी बेटी केवल सात साल की थी और सबसे छोटा बेटा तो तीन ही बरस का था। बच्चों और बूढ़ी सास का मुंह देखकर पुष्पा ने फिर से हिम्मत जुटाई और अब ७-८ घरों का काम ले लिया। उसके घर  कमाने वाली वो अकेली ही तो थी। सुबह सात बजे अपने घर का पूरा काम करके निकलती फिर दोपहर में सबको खाना खिलाने आती और फिर जाती तो सीधे रात को नौ बज ही जाते। उसकी सास दिन भर बच्चों की देखभाल करती। वैसे तो वो हमेशा मुस्कुराते रहने का प्रयत्न करती पर कभी जब उसकी सास और बच्चे उसके पति की याद करके रोते तो वो बुरी तरह टूट जाती। पर फिर किसी तरह उनको संभालकर अपने पति की तस्वीर को सीने से लगाए रात भर उससे बातें करती। आखिर उसके दुख को बांटने वाला वही तो था। 


इसी तरह उसकी जिंदगी चल रही थी। बच्चे बड़े होने लगे तो उसने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का निर्णय लिया। 

"पुष्पा! तेरे घर दो समय ढंग से खाने को नहीं है तो तू तीनों बच्चों की पढ़ाई का खर्चा कैसे उठाएगी" - रमीला बोली।

" और मेहनत करूंगी ताकि मेरे बच्चे अच्छी जिंदगी जी सकें। उन्हें अपने जैसे घर घर काम करने नहीं दूंगी" - पुष्पा ने दृढ़ता से कहा।

जिन घरों में वो काम करती थी सब उसके घर की परिस्थिति को अच्छे से जानते थे। वो हमेशा हंसते हुए काम करती तो सभी लोग उससे बहुत स्नेह करते थे और उसके साहस की प्रशंसा भी।

वो सब अपने बच्चों की पुरानी कॉपी, किताबें, पेन, पेंसिल, कपड़े, सब पुष्पा को दे देते। कभी कभी बच्चों को खुद पढ़ा भी देते। पुष्पा की मेहनत से उसके तीनों बच्चों ने ग्रेजुएशन कर लिया। उसने अच्छा घर देखकर दोनों बेटियों की शादी भी कर दी। अब उसका लड़का भी अच्छी जगह नौकरी करने लगा। 

" मां हम तीनों के खर्च लायक तो मैं कमा ही लेता हूं। अब तुम्हें आराम की जरूरत है"

" बेटा जीवन भर काम किया है तो अब घर बैठा ना जाएगा। बस अब जल्दी से तेरी बहू आ जाए"

पुष्पा ने अपने बेटे की भी शादी कर दी। उसकी बहू बहुत सुशील और संस्कारी थी। अब घर के काम बहू ने अच्छी तरह संभाल लिए। पुष्पा ने भी कई घरों के काम छोड़ दिए। साल भर बाद ही उसके घर में किलकारी गूंज उठी। पूरा घर खुशियों से भर गया। पुष्पा की सास और पुष्पा दोनों ही बहुत खुश थे। अब जाकर उसे अपनी जिम्मेदारी पूरी होने का अहसास हो रहा था।

पर शायद अभी भी ईश्वर उसके सब्र और साहस की परीक्षा लेना चाह रहे थे। इस हंसते खेलते घर को जैसे किसी की नजर लग गई। नौकरी पर जाते हुए उसके बेटे को हार्ट अटैक आ गया और वो उसी वक्त चल बसा।

पुष्पा के घर फिर घनघोर अंधियारा छा गया। अब वो खुद भी थकने लगी थी। पहले युवावस्था में पति और अब जवान लड़का। उसके शोक की कोई सीमा ही नहीं थी। युवा बहू का वैधव्य उससे देखा नहीं जाता था। घर में बस यही तीन महिलाएं और एक नन्हा सा बालक ही था जो एक दूसरे का सहारा थे। 

पर पुष्पा ऐसे परिस्थितियों से हार मानने वालों में से नहीं थी। उसे जितने दुख और परेशानियां थी उतना ही ईश्वर ने उसे साहस और धैर्य भी दिया था। सही मायने में एक योद्धा की तरह जो हर मुश्किल परिस्थिति का डटकर मुकाबला करता है। 

पुष्पा जब भी अपनी बहू को देखती उसका मन करुणा और दुख से भर जाता। रात को सोने की कोशिश करते हुए भी पुष्पा विचार में ही डूबी थी। अपनी बहू के चेहरे पर उसकी नजर गई -  "अभी इसकी उम्र ही क्या है! जिंदगी जीना तो ठीक से  अभी तो इसकी जिंदगी शुरू भी नहीं हुई है" 

उसने मन ही मन एक दृढ़ निश्चय किया। 

" बेटा आ मेरे पास बैठ। मुझे तुझसे कुछ बात करनी है" - सुबह सुबह उसने बहू को बहुत प्यार से कहा।

बहू ने बहुत आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

"बेटा मेरी बात ध्यान से सुन। मैंने निश्चय किया है कि मैं तेरी दूसरी शादी करवाऊंगी"

पुष्पा की बात सुनकर उसकी बहू हक्की बक्की रह गई। उससे कुछ कहते नहीं बना। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसने अपने बच्चे को अपने सीने से चिपका लिया। 

" बेटा। मैं तेरी स्थिति बहुत अच्छी तरह समझती हूं। मैंने भी ये दिन देखे है। बहुत मुश्किल है बेटा ऐसा जीवन। मेरे साथ तो मांजी और तीन बच्चों का सहारा था। पर अभी तेरी उम्र ही क्या है। तू हां कर दे मेरी बच्ची। मैं तेरा कन्यादान करूंगी" - कहते हुए पुष्पा का गला रूंध गया।

" नहीं मां मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। आपने जीवन भर बहुत दुख सहे हैं और फिर अपने साथ  कृष्णा भी तो है ही। हम सब एक साथ बहुत अच्छे से रहेंगे" 

" नहीं बेटा। तेरी शादी के बाद तुझसे मेरा रिश्ता थोड़ी ना टूट जाएगा। तेरा ये मायका रहेगा। जब मन करे मिलने आ जाना। हम ऐसे ही लड़के को ढूंढेंगे जो कृष्णा को भी अपना ले और अगर नहीं भी अपनाता है तो मैं हूं ना। मैं उसका लालन पालन अच्छे से करूंगी" 


पुष्पा की बात सुनकर उसकी बहू रोने लगी। दोनों सास बहू बहुत देर तक गले मिलकर रोती रहीं जैसे अपना सारा दुख और तकलीफ वो इन आंसुओं में बहा देना चाहती हों।

अपने बेटे की मृत्यु के कुछ महीनों बाद ही पुष्पा ने अपनी बहू का दूसरा विवाह कर दिया और अपने पोते को भी उसे दे दिया। पुष्पा की सास और बेटियों ने भी उसका भरपूर समर्थन किया। आज भी उसकी बहू पुष्पा के घर अपने मायके जैसी आती है। दोनों में सगी मां बेटी जैसा प्यार है। 

दोस्तों ये कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है। एक घर काम करने वाली महिला में इतनी हिम्मत और हौसला और साथ ही उस के इतने ऊंचे विचार। अक्सर सास बहू का रिश्ता उतना मधुर नहीं होता जितना होना चाहिए। समाज में पुष्पा जैसी सास एक मिसाल है। पुष्पा को मेरा शत शत नमन।



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