भक्ति की चाह।
भक्ति की चाह।
गोदावरी नदी तट पर एक बड़े प्रसिद्ध महात्मा रहा करते थे।उनकी प्रशंसा बड़ी -बड़ी दूर तक फैली हुई थी। एक दिन एक मनुष्य उनके पास आ पहुंचा और कहने लगा "महाराज"! मुझे भक्ति का कुछ साधन बतलाइए।" महात्मा सुनकर चुप हो गए ,कुछ नहीं बोले। दूसरे दिन फिर जाकर उसने इसी प्रश्न को किया परंतु उस रोज भी उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। तीसरे दिन उस आदमी ने महात्मा जी से विनय की "महाराज! मुझे कई दिन पूछते हो गए परंतु अभी तक आपने मुझे भक्ति करने की क्रिया नहीं बताई यह क्या बात है?"
महात्मा बोले -अच्छा आज मैं तुमको भक्ति करना सिखाऊंगा परंतु सीखने से पहले स्नान कर लेना बहुत जरूरी है ताकि शरीर शुद्ध हो जाए। वह बोला बहुत अच्छा। साधु ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ -साथ चलता हूं मुझे भी नहाना है। दोनों नदी में कूद पड़े और खूब ही डुबकियाँ ले- लेकर नहाने लगे।
एक बेर जब कि वह मनुष्य गोता मार रहा था, साधु ने पानी के अंदर ही उसको दबोच लिया और उसे उठने का मौका नहीं दिया। थोड़ी देर में वह घबरा गया ,तड़पने लगा क्योंकि वहां सां
स लेने को उसे हवा नहीं मिली थी। जब वह बहुत ही अधीर- सा हो गया तभी साधु ने उसे छोड़ दिया और पानी से निकलने पर उसने कई गहरी सांसें खींची तब उसे होश आया।
साधु ने पूछा! उस समय तुम को किस वस्तु की अत्यंत आवश्यकता थी? उसने कहा- हवा की। साधु बोला -इसी तरह जिस समय तुम को "भक्ति की चाहना" होगी तब मैं तुम्हें भक्ति करना सिखाऊंगा। जब तक तुम्हारा मन इस अवस्था को ना प्राप्त हो जाये तब तक तुमको इंतजार करना चाहिए अभी तुम अधिकारी नहीं हो। हां उस समय तक प्रार्थना करते रहना और उसका नाम लेते लेते रहना चाहिए ,ताकि हृदय शुद्ध होता रहे।
हां! इसके साथ ही साथ अपने मन की भी देखभाल करते रहना और माया के प्रपंच से होशियार रहना भी बहुत ही जरूरी है। क्योंकि यही दोनों मनुष्य को बुरे कर्मों में फंसाते हैं और अधोगति को प्राप्त कराते हैं। इसी को "शैतान" कहते हैं जिन्होंने आदम जैसे पूर्ण मनुष्य को भी स्वर्ग से नीचे गिरा दिया था। जो इन बैरियों के पंजे में फंसा, वह मारा गया और जिस पर इनका जाल चल गया वह किधर का भी नहीं रहा।