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भीखारी सा दिखता एक आदमी

भीखारी सा दिखता एक आदमी

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रविवार की छुट्टी वाले दिन बाजार से वापिस आया तो देखा घर के सामने एक भिखारी जैसा दिखने वाला आदमी बैठा हुआ था। शायद भूखा था इसीलिए मेरे हाथ के पैकेट पर बड़ी ललचाई सी नज़र डाल रहा था। मैंने भी पैकेट में से दो केले और बिरयानी निकाल कर दे दी। जिसे उसने बड़े चाव से खा लिया। लिहाज़ा मुझे खुद के लिए खाना बनाना पड़ा। खैर ....

शाम को जब चाय के बाद घूमने निकला तब ही वो आदमी वही बैठा था और मैं भी एक बार फिर से उसे चाय पिलाने का निश्चय करके अंदर आ गया।

डिनर बनाने से पहले ही बाहर झांक कर देख आया। वो वही था।

अगली सुबह से लेकर शाम तक वो वही बैठा था। उसके अगले दिन भी हालात नहीं सुधरे। और इसी तरह तकरीबन पूरा हफ्ता गुजर गया और एक बार फिर रविवार आ गया।

आज मेरे पास टाइम भी था लिहाज़ा मैंने निश्चय कर लिया उससे बातचीत करने का। उसके यहां बैठे बैठे खाने के इंतज़ार करते रहने से मुझे भी कोफ्त महसूस होने लगी थी इसीलिए मैंने सीधे वही सवाल पुछा की आखिर कब तक वो यहां रहने की सोच रहा है। उसने यह कह कर मेरे होश उड़ा दिए कि वो हमेशा यही रहेगा।

शायद वो मजाक कर रहा था। कुछ देर लगा उड़े होश काबू में आने के लिए। लेकिन जैसे जैसे बातचीत आगे बढ़ती गयी मेरे होश फिर से उड़ते गए। उसका जाने का कोई इरादा नहीं दिख रहा था।

मैन भी सोचा कि थोड़ा अलग तरीके से सोचना चाहिए। इस बार मैंने यह सोच कर बात आगे बढ़ाई की वो यही रहने वाला है और मुझे उसे चाय खाना आदि देते रहना है। लिहाज़ा मेरा मुख्य मकसद यही जानना था कि वो मेरे किस काम आ सकता है।

मैं सोच रहा था कि वो चौकीदारी का काम तो कर ही सकता है। परंतु उसका जवाब एक बार फिर मेरे होश उड़ा रहा था उसने जवाब दिया कि वो चौकीदार नहीं है परंतु उसके बैठने से बाहर का वो कोना अपनी खूबसूरती बड़ा रहा है इसीलिए मुझे उसको इसी तरह स्वीकार करना चाहिए।

मैं चाहता था कि यदि वो यही बैठने वाले और मुझसे दोनो टाइम खाने की उम्मीद रखता है तो कम से कम मेरे वो काम कर दिया करे जिनको करने का वक़्त मेरे पास नहीं है। परंतु वो तैयार नह8न था। उसका कहना था कि मुझे उसको उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए जैसे वो है।

मुझे बाहर को वो कोना पहले की तरह खाली पसंद था फिर भी मैन उसको वहाँ से नहीं उठाया था। अब काफी दिन हो गए तो मैं उससे चाहता था कि या तो वो उस कोने को खाली कर दे या फिर मेरे किसी काम आए। परंतु वो मुझे अपने वहां बैठने के फायदे गिनवता रहा। उसके गिनवाए फायदे मेरे लिए सिर्फ काल्पनिक थे जैसे कि उसके बैठने आए वो कोना खूबसूरत लग रहा था या उसकी मौजूदगी से वो कोना भरा भरा से लगता है।

एक बार तो उसने हद ही कर दी उसने कहा कि वो तो यहां इसीलिए है क्योंकि मुझे उसकी जरूरत है वरना तो वो चला जाता।

अब मुझे भी खीझ आने लगी लिहाज़ा मैंने उससे कहा दिया उसे मेरे बारे में सोचने की जरूरत नहीं है वो अब चला जाये। परंतु वो नहीं गया।

मैंने उसे इग्नोर करने का फैसला किया तो पड़ोसी उस बेचारे के पक्ष में तरह तरह के तर्क गढ़ने लगे। मैं उनकी नज़र में असमाजिक तत्व बन गया।

आखिर मैन उसे हाथ पकड़ कर बाहर का रास्ता दिखाने का निश्चय किया लेकिन सरकारी नौकर ने मुझे ऐसा भी नहीं करने दिया।

अब वो भिखारी सा दिखने वाला आदमी जो मेरे किसी काम का नहीं वही बैठा रहता है दोनो वक़्त खाने के इंतज़ार में। और मैं अपने कमरे में कैद काटने को मजबूर।


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