भीड़तंत्र
भीड़तंत्र
"चोर, चोर, पकड़ो, पकड़ो" पंडितजी मंदिर से बाहर की तरफ भागते हुए चिल्ला रहे थे।
पंडितजी की चीख पुकार से एक एक करके भीड़ जुट गई।
"पकड़ो साले को, मंदिर में चोरी करता है" पंडितजी धोती संभालते हुए बोले।
"चोर, चोर, पकड़ो साले को" भीड़ भी चिल्ला रही थी।आखिर दबोच ही लिया ,चोर को।
"मारो, मारो, छोड़ना मत" सभी चिल्लाते हुए अपना अपना हाथ साफ़ करने लगे, लातों का भी इस्तेमाल बेधड़क हो रहा था।
कुछ ही देर मे भीड़ छंट गई। सड़क पर चोर का मृत शरीर पड़ा था, उसकी एक मुट्ठी में केला और दूसरी मे सेब था, जो उसकी मुट्ठी से अभी तक नही छूटा था।
"हुंह, चोर कहीं का" पंडितजी ने मुँह टेढा करके कहा और मंदिर का चढावा बटोरने लगे।