हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Inspirational

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हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Inspirational

भगवान की गलती

भगवान की गलती

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इस रचना में "आंख के अंधे नाम नयनसुख" मुहावरे का प्रयोग किया गया है। 

पिछले कई दिनों से शीत लहर चल रही थी और "मावठ" भी हो रही थी। 26 जनवरी से ही ऐसा हो रहा था। पता नहीं क्यों ऐसा होता है कि ये गणतंत्र दिवस हमेशा "धूजणी" लेकर ही आता है। बादल भी शायद इंतजार करते हैं कि गणतंत्र दिवस आये तो वे भी अपना "कमाल" दिखायें। तो उन्होंने ऐसा कमाल दिखाया कि खूब ओलावृष्टि हुई और ठंड एकदम बढ गई जिससे घर से बाहर निकलना बहुत साहस का काम हो गया था। 

इतने दिनों से बाहर नहीं निकले तो मन बड़ा बेचैन था। पहले तो बेचैनी का कारण समझ में नहीं आया मगर फिर सामने वाली बंद खिड़की पर नजर पड़ी तो कारण तुरंत समझ में आ गया। छमिया भाभी के दर्शन हुए कितने दिन बीत गये थे ? मन अगर बेचैन नहीं होगा तो और क्या होगा ? आखिर आज कंबल लपेट कर पार्क आ ही गये कि क्या पता आज छमिया भाभी के दर्शन हो जायें। 

हमारी आंखें इधर-उधर कुछ तलाश करने लगी थीं पार्क में। एक गाना है ना "जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें, राख के ढेर में शोला है ना चिंगारी है"। पर यहां तो "शोला और चिंगारी" दोनों ही थे। दिल कह रहा था "झलक दिखला जा, झलक दिखला जा, एक बार आ जा आ जा आ जा आ जा आ जा"। सच्चे दिल से जब कोई याद करता है तो पुकार सुनी जाती है। सामने से छमिया भाभी मुस्कुराती, इठलाती, इतराती, बल खाती हुई चली आ रही थीं। 

जैसा कि हमेशा होता आया है "चांद" के पीछे "राहू" और "केतु" हमेशा पड़े रहते हैं, यहां भी छमिया भाभी के पीछे फरेबी लाल और रसिक लाल राहू केतु की तरह पड़े हुए थे। आज उनके चेहरे खिले हुए थे। सही बात है, चांद को देखकर सबके चेहरे खिल जाते हैं, हमारा चेहरा भी तो खिल गया था। 

हमने "राम राम" किया तो छमिया भाभी ने "राधे राधे" कहकर हमारा अभिवादन किया। हमें उनकी यह अदा बहुत पसंद है। हमने पूछ ही लिया "भाभी, आप राम राम का जवाब राधे राधे कहकर क्यों देती हो" ? वे मुस्कुराते हुए बोलीं "आप राम राम बोलेंगे तो हम राधे राधे बोलेंगे। आप पुरुषवादी हो तो हम नारीवादी हैं" उनकी मुस्कान और गहरी हो गई। छमिया भाभी की हाजिर जवाबी के हम कद्रदान हैं। मगर फरेबी लाल और रसिक लाल जी को हमारा "राम राम" कहना जरा भी नहीं भाया। वे कहने लगे "इट्स कम्युनल"। आखिर वे दोनों लिबरल और सेकुलर हैं तो उन्हें राम राम क्यों अच्छा लगेगा ? उन्होंने कहा "सलाम नमस्ते" मतलब इट्स सेकुलर। वाह जी वाह ! गजब बात है। 

हमें छेड़ते हुए वे बोले "आखिर आपकी कम्युनल सरकार ने "मुगल गार्डन" का नाम बदल ही दिया ! ये कम्युनल लोग और कर ही क्या सकते हैं नाम बदलने के अलावा"। 

"इसमें गलत भी क्या है ? गुलामी के प्रतीकों को कब तक ढोते रहेंगे हम लोग" ? 

"गुलामी का प्रतीक नहीं है मुगल गार्डन, बल्कि मुगलों की विरासत का प्रतीक है" 

"मुगल यहां के देशवासी थे क्या" ? हमारी बात से वे कुछ असहज हुए और बोले 

"माना कि वे बाहर से आये थे लेकिन वे यहीं पर तो बस गये थे। कितना बड़ा अहसान किया था उन्होंने हम पर ! हमारी संस्कृति की पहचान बन गये थे वे" 

"मुगल कब से हमारी संस्कृति बन गये ? वे आक्रांता थे, बर्बर आततायी थे, विध्वंसक थे। वे हमारी पहचान कैसे हो सकते हैं ? हमारी पहचान तो आदि शंकराचार्य थे जिन्होंने पूरे भारत को सांस्कृतिक रूप से एक बनाने के लिए उत्तर में बद्रीनाथ धाम, पूर्व में जगन्नाथ पुरी, पश्चिम में द्वारिकाधीश जी और दक्षिण में रामेश्वर धाम की स्थापना की थी। हमारी पहचान तो भगवान श्रीराम से है जिन्होंने अपने कर्म, राज और व्यवहार से जन जन के लिए आदर्श प्रस्तुत किया था। हमारी पहचान तो श्रीकृष्ण भगवान हैं जिन्होंने "भगवत गीता" का ज्ञान देकर हमें जीने का तरीका बताया था। हमारी पहचान तो अयोध्या, मथुरा, काशी हैं जहां से शांति और सहिष्णुता का संदेश पूरे विश्व को मिला है। हमारी पहचान तो नीलकंठ महादेव हैं जिन्होंने "विष" पीकर संपूर्ण विश्व की रक्षा की थी। हमारी पहचान तो स्वामी विवेकानंद जी हैं जिन्होंने समूचे विश्व को "सनातन धर्म" से अवगत करवाया था। इसलिए मुगल गार्डन का नाम अब अमृत उद्यान हो गया है तो यह हम सबके लिए गौरव की बात है। इसमें गलत क्या है" ? 

"हमें सब पता है कि ये तानाशाह इस देश को धीरे धीरे हिन्दू राष्ट्र बना रहा है पर हम इसे ऐसा नहीं करने देंगे। हम लोग इसे धर्म निरपेक्ष ही बनाये रखेंगे" 

"फालतू की बातें मत किया करो। कौन बना रहा है इसे हिन्दू राष्ट्र ? एक मुगल गार्डन का नाम बदल देने से ही यह देश हिन्दू राष्ट्र बन जायेगा क्या ? आपके मौनी बाबा ने तो सरेआम कहा था कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है तो क्या उससे यह देश मुस्लिम राष्ट्र बन गया था" ? 

हमारे तर्कों से वे थोड़ा असहज हुए फिर कहने लगे "राम तो काल्पनिक थे। उनके अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं है" 

"आपकी यह दलील रामजन्म भूमि विवाद के समय सुप्रीम कोर्ट में "टांय टांय फिस्स" हो गई थी। आपकी खैरात पर पोषित इतिहासकारों का झूठ बेनकाब हो गया था सर्वोच्च अदालत में और उन्हें काल्पनिक गाथाऐं सुनाने के लिए फटकार भी पड़ी थी। भगवान के प्रति ऐसा भाव रखते हुए आपको शर्म आनी चाहिए मगर आप तो पैदाइशी बेशर्म हैं तो आपको शर्म कैसे आयेगी" ? 

और फिर बात मुगल गार्डन से भगवान पर आ गई। छमिया भाभी इस "शास्त्रार्थ" का भरपूर आनंद ले रही थीं। जब भगवान पर वे ऊलजलूल बातें करने लगे तो हमें तैश आ गया और हमने कहा "भगवान पर कोई टीका टिप्पणी बर्दाश्त नहीं करेंगे हम, कह देते हैं" 

"हम आपको दिखाते हैं कि भगवान ने क्या क्या गलतियां की हैं। चलो हमारे साथ फिर दिखाते हैं आपको" वे तैश में आ गये थे। 

"भगवान कोई गलती नहीं करते हैं, गलतियां इन्सानों से होती हैं" इतना कहकर हम उनके साथ हो लिए। 

हम लोग आगे बढे। सामने माली की कुटिया थी। माली ने अपने घर के सामने कुछ सब्जियां लगा रखी थी। सब लोग वहां रुक गये। वहां पर एक कद्दू की बेल लगी थी जिसमें एक बहुत बड़ा कद्दू लगा हुआ था। उसे देखकर वे दोनों बहुत खुश हुए और कहने लगे "देखो देखो, भगवान ने कितनी बड़ी गलती की है। बेचारी एक पतली सी नाजुक सी बेल उस पर इतना बड़ा कद्दू ? ये भी कोई तरीका है ? जब बेल छोटी सी, पतली सी, नाजुक सी है तो उस पर फल भी छोटा सा ही होना चाहिए ना। यह भगवान की एक बहुत बड़ी गलती है"। रसिक लाल जी ने यह गलती नोट कर ली 

आगे बढे तो सामने आम का एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पर आम लग रहे थे। छोटे छोटे और कच्चे कच्चे। उन्हें देखकर वे दोनों बहुत खुश हुए और कहने लगे 

" वो देखो, एक और गलती। इतने बड़े पेड़ पर इतने छोटे छोटे आम ? इससे बड़ी गलती और क्या होगी भगवान की" फरेबी लाल कुटिल मुस्कान के साथ बोले। रसिक लाल जी ने दूसरी गलती नोट कर ली। 

मुझे उन दोनों मूर्ख लोगों की मूर्खता पर हंसी आ गई। भगवान के बारे में कुछ जानते नहीं और भगवान की गलती ढूंढने निकले हैं। आंख के अंधे और नाम नैनसुख "। 

हम लोग आम के पेड़ के नीचे खड़े थे। इतने में एक पक्षी ने दो आम तोड़कर नीचे गिरा दिये। कच्चा आम पत्थर की तरह होता है। एक आम फरेबी लाल जी की नाक पर गिरा तो वे बेहोश होकर गिर पड़े। दूसरा आम रसिक लाल जी के चश्मे पर गिरा तो चश्मा टूटकर चकनाचूर हो गया। बिना चश्मे के वे अंधे जैसे लग रहे थे। मैंने पानी लाकर कुछ छींटे उनके चेहरे पर मारे तो फरेबी लाल जी होश में आ गये और रसिक लाल जी से बोले। 

"भगवान की दोनों गलतियां काट दो" 

"क्यों क्या हुआ" ? मैंने चौंककर पूछा 

"भगवान ने जो किया सही किया। जब एक छोटे से आम ने मेरा यह हाल कर दिया तो सोचो, अगर बड़ा होता तो क्या कर जाता" ? 

"आंख के अंधे नाम नयनसुख" को अब भगवान के बारे में कुछ कुछ पता लग रहा था। यह एक शुभ संकेत था। आगे आने वाले समय में उन्हें इस देश की संस्कृति के बारे में भी पता चलेगा, ऐसा मेरा मानना है। 


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