भारत के दार्शनिक कवि

भारत के दार्शनिक कवि

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"नमस्ते चाचाजी,आज मेरी कक्षा में कबीर दास जी के दोहे पढ़ाए गए। अगर वे वर्तमान समय में होते तो उन्हें कितना विरोध झेलना पड़ता!"अनुज ने कहा।

 "नमस्ते बच्चों,कबीर दास 15वीं सदी के भारतीय    कवि थे।

 उस समय भी इनका विरोध हुआ था क्योंकि वे खरी - खरी बातें कहने से डरते नहीं थे।"

"चाचू, उन्हें दार्शनिक कहा गया और निर्गुण ब्रह्म को मानने वाला बताया गया।इसे सरल शब्दों में बताइए।"अमला बोली।

"कबीर दास जी की गणना हिन्दी साहित्य के  भक्तिकालीन युग के कवियों में की जाती है।वे ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे।सगुण शाखा मूर्ति पूजा करती है।निर्गुुण नहीं।"

"कबीर किस धर्म के अनुयाई थे? "करुणा ने पूछा।

"वे धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियोँ,कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। इसीलिए उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे।"

" चाचू, वे मूर्त्तिपूजा, रोज़ा, ईद, मस्जिद, मंदिर आदि को भी नहीं मानते थे। 

मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए उन्होंने एक साखी लिखी,"पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। वा ते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।।"

तो वहीं मस्जिदों से होने वाली अजान के बारे में कहा,

"कांकर पाथर जोड़ के मस्जिद लयी चुनाय

ता चढ़ी मुल्ला बांग दे ,क्या बहिरो भयो खुदा ?" तुषार ने बताया।

"वाह, तुमने कक्षा में बहुत अच्छी तरह मन लगाकर पढाई की।"

" कबीर दास जी की भाषा सरल और सुबोध थी।उन्होंने आत्मनिरीक्षण तथा आत्मपरीक्षण करने के लिये देश के विभिन्न भागों की यात्राएं कीं। 

उनको उदारवादी हिन्दुओं और मुस्लिमों का   समान रुप से स्नेह और सम्मान मिला।"

हमारे अध्यापक महोदय ने बताया कि कबीर अनपढ़ थे,फिर उन्होंने इतनी अच्छी रचनाएं कैसे कीं?"कैलाश ने पूछा।

" कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे,यह सच है उन्होंने कहा है- 'मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ। 'उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुंह से बोले और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया।


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