भारत के आधुनिक दानवीर
भारत के आधुनिक दानवीर
" आज हम अपने देश के आधुनिक दानवीर के बारे में जानेंगे।जैसा की हम सब जानते हैं बिहार के गया जिले में बाराचट्टी प्रखंड अति नक्सल प्रभावित है।उसी का एक गांव है बंधाटोला। दो दशक पहले तक इस गांव में कोई विद्यालय नहीं था और अगल-बगल के स्कूल कोसों दूर थे। गरीब, फटे हाल बच्चे बेवजह भटकते रहते थे।"
"आप आधुनिक दानवीर के बारे में बताने वाले थे,कौन हैं वे और इन बातों का उनसे क्या संबंध है ?"
"ये हैं बालेश्वर मांझी,वे शिक्षा ग्रहण करना चाहते हुए भी नहीं पढ़ पाए थे। बालेश्वर मांझी को यह मंज़ूर नहीं था कि आने वाली पीढ़ी भी उन्हीं की तरह अभिशप्त हो। बालेश्वर मांझी ने वन्य क्षेत्र के बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए जो किया, वह आज प्रेरणा के रूप में सामने है।
बालेश्वर मांझी दीन- हीन दुर्बल हैं, लेकिन दानवीर ऐसे कि उनके समक्ष श्रद्धा से बड़ों- बड़ों के शीश झुक जाते हैं। उन्हें गुजर-बसर करने के लिए सरकार से ज़मीन का एक टुकड़ा मिला था। अपने घर के लिए एक कोना रखकर बाकी ज़मीन उन्होंने विद्यालय निर्माण के लिए दान कर दी।
" यह तो सचमुच बहुत बड़ा दान है।लोग तो एक इंच ज़मीन के लिए लड़ते- झगड़ते हैं।"
"सच कहा,मगर बालेश्वर मांझी ने पहले पांच डिसमिल जमीन दान की,जिस पर प्राथमिक विद्यालय बना ,फिर 22 डिसमिल जमीन और दी, जिस पर माध्यमिक विद्यालय बना,और तो और वे अपने मेहनत मजदूरी से बचें समय में विद्यालय की साफ सफाई भी करते हैं। आज इस माध्यमिक विद्यालय, कलवर में 326 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उनमें 178 छात्राएं हैं।"
"अद्भुत, हां अनोखी मिसाल है यह बदलाव की कहानी । इस सदी की शुरुआत तक लड़कियां गांव से बाहर क़दम तक नहीं रखती थीं। लड़के स्कूल के बजाय मज़दूरी करने जाते थे। इस बदलाव का समस्त श्रेय बालेश्वर मांझी को जाता है जिनके त्याग से स्थापित स्कूल में पढ़-लिखकर कई बच्चे ऊंचे ओहदे पर भी पहुंच गए हैं।"
"बालेश्वर मांझी का उदाहरण अनुकरणीय है।"
" बिल्कुल,वे खुद राजमिस्त्री का काम, कर घर-गृहस्थी चलाते हैं , लेकिन शिक्षा का मोल बखूबी जानते हैं।उन्होंने वर्ष 1994 में राजबाला वर्मा, गया की जिलाधिकारी को दौरे पर अपने गांव में देखा जो उनकी बस्ती की गंदगी-बदहाली और बच्चों को सुअर चराते देख चिंतित थीं,जब
जिलाधिकारी ने विद्यालय की स्थापना के लिए लोगों से ज़मीन की मांग कीं, कोई तैयार नहीं हुआ तब बालेश्वर मांझी ने अपनी ज़मीन दान करने का फैसला कर लिया।
आज उसी विद्यालय में उनके पोता-पोती के साथ दूसरे बच्चे भी पढ़ रहे हैं। उन्हें पढ़ते और आगे बढ़ते देख, बालेश्वर मांझी बेहद संतुष्ट और खुश हैं।"
"हमारे भारत की शान बढ़ाने वाले बालेश्वर मांझी को नमन है।"