Aditya Vardhan Gandhi

Fantasy Inspirational Children

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Aditya Vardhan Gandhi

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भाग 4 यारी सब पे भारी

भाग 4 यारी सब पे भारी

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जब सभी मोल से निकल कर घर जाते हैं। तभी दिग्विजय पाटिल का फोन बजता है। और फोन जसविंदर सिंग का होता है। वो कार में बैठने के बजाय वही रुक कर उनका फोन उठाते हैं। और बोलते हैं, कब आ रहे हो। वापस सामने फोन पर जसविंदर बोलते हैं, दो दिन में और आगे बोलते हैं, मैं वरदान की टीसी और मार्क शीट सब लेकर वापस मुंबई आ राहा हूँ। इतना बोलकर और बोलने लगते हैं। तभी दिग्विजय पाटिल बीच में बात काट देते हैं और बोलते हैं, तुम्हारा स्यूटुंडे बहुत बढ़िया है। उसकी बोलिंग जोरदार हे। तभी वरदान बोल पड़ता है, कोच का फोन हे। तभी दिग्विज हाँ बोलकर उसे फोन देते हैं, और बोलते हैं। लो बात करो तभी वरदान फोन उनके पास लेता है। और कोच से बात करना शुरू करता है। और कहता है। आप बस आ जाओ मैं और इंतज़ार नहीं कर सकता हूं। तभी जसविंदर बोलते हैं, बेटा वरदान मैं दो दिन बाद आ रहा हूं। इतना कहकर वो बोलते है। चलो फोन दिग्विज सर को दो इनकी बात सुनकर वो फोन दिग्विजय पाटील को देता है। और कहता है। सर लो आपका फोन कोच आपसे बात करना चाहते हैं। इतना कहकर वो समय जय कार की ओर चल देते हैं। तभी जसविंदर सिंह दिग्विज से बोलते हैं। और कहते हैं। इसका एडमिशन कहा करना है। तभी दिग्विजय पाटिल बोलते हैं। सेंट्रल सिटी स्कूल में दाखिला करा देंगे उसका वहाँ पे मेरा बेटा और जय भी उसी में पड़ रहा है। इतना बोल कर फोन काट देते हैं। और वो भी कार की ओर चल देते हैं। कार सभी बैठ जाता है। और कार घर और चल देती है। जब सभी घर पहुंच गए तब सबने मिलकर खाना खाकर सभी अपने कमरे जाकर सो जाते अगली सुबह वरदान और जय समय बहुत जल्दी उठ जाते हैं। घर के पास बने हुए मैदान पर जाते हैं। और बैटिंग और बोलिंग की प्रैक्टिस करते हैं। तभी थोड़ी ही देर में दिग्विजय पाटिल भी वहां पहुंच जाते हैं। और तीनों से कहते हैं। पहले जय तुम बैटिंग कर लो और वरदान तुम बोलिंग करो जय को और समय तुम देखो कौन दोनों में गलती करता है। इतना बोल कर वो भी उन दोनों को देखने लगते हैं। थोड़ी देर दोनों का गेम देखकर अपने बेटे से कहते हैं। अब तुम्हारी बारी है। समय बोल को लेता है। और वरदान से कहता है। तुम अब बैटिंग करो मैं बॉलिंग करूँगा और जय हमें दिखेगा उधर दिग्विजय पाटिल वापस घर की ओर चले जाते हैं। तीनों दोस्त मिलकर अच्छी खासी प्रैक्टिस कर के वापस घर चले आते हैं। जिसके बाद जय और समय तो स्कूल चले जाते हैं। लेकिन वरदान घर पर ही रहता है। क्योंकि अभी तक उसने स्कूल के अंदर एडमिशन जो नहीं लिया था। उन दोनों को स्कूल जाता देख वह अपने पिछली जिंदगी में चला जाता है। उन दिनों में जब वो स्कूल वाले और अपने ही मन में कहता है। काश वो दिन जल्दी


आ जाए मैं भी इनके साथ वापस स्कूल जा सकूं दो दिन यूं ही बीत जाते हैं। और दो दिन बाद कोच जसविंदर मुंबई आ जाते हैं।                                

कोच के आने के बाद वरदान बहुत खुश हो जाता है। और कहता है। कोच आप आ गए तो कोच उससे कहते हैं। हां मेरे बच्चे मैं आ गया हूं। तेरा एडमिशन स्कूल में करा दूंगा स्पोर्ट्स कोटे के जरिए पढ़ाई में भी तो बहुत अच्छा है। इसलिए स्कॉलरशिप भी आसानी से मिल जाएगी तू उसकी चिंता मत कर मैं बैठा हूं तेरे पीछे तेरी पढ़ाई और तेरी क्रिकेट दोनों को मैं संभाल लूंगा इतना बोलते ही वह दिग्विजय पाटिल को आवाज लगाते हैं। घर के बाहर आते हैं। जहां पर वरदान और जसविंदर पहले से ही बाहर खड़े थे। दिग्विजय बड़ा हैरान था। जसविंदर कब आ गया उसकी हैरानी को देखते हुए जसविंदर उसे कहते हैं। मुझे आए हुए सिर्फ पांच मिनट हुए हैं। मैं तुम्हें बुलाने वाला ही था। के वरदान मुझे बाहर ही मिल गया और हम दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई इसलिए मैं तुम्हें भुलाना भूल गया जैसे ही मुझे याद आया मैंने तुम्हें आवाज दी और बाहर बुला लिया दिग्विजय पाटील हैरानी से बाहर निकल कर कहते हैं। ठीक है हम तीनों स्कूल चलते हैं। और आज इसका एडमिशन करा देते हैं। इतना बोल कर दिग्विजय पाटील वापस घर की ओर जाते हैं।                                                       


दस मिनट में कपड़े बदल कर बाहर आते हैं। वही जसविंदर अपना सामान वरदान के कमरे में रख कर वापस आते हैं। तीनों कार में बैठकर स्कूल की ओर चल देते हैं। कुछ देर के बाद स्कूल पहुंच जाते हैं। स्कूल के दरवाजे के बाहर अपनी कार को पार्किंग एरिया में रखने की जगह ढूंढ कर कार को पारक करके तीनों प्रिंसिपल के रूम की ओर चल देते हैं। जिसके बाद तीसरे माले पर वह पहुंचते हैं। कमरा नंबर दस प्रिंसिपल का रूम होता है। तीनों दरवाजे के बाहर खड़े होते हैं। दिग्विजय पाटिल दरवाजा खटखटाते हैं। और कहते हैं। प्रिंसिपल साहब क्या हम तीनों अंदर आ सकते हैं। प्रिंसिपल बोलता है। जी आ सकते हो। और दरवाजा खोल कर तीनों प्रिंसिपल के रूम मे एंटर कर जाते हैं। प्रिंसिपल सभी को बैठने का बोलता है। और कहता है। तो बताइए पाटिल साहब आज आप का आना कैसे हुआ दिग्विजय पाटील कहते हैं। यह वरदान है। जिस का एडमिशन कराने में यहां पर आया हूं। तो प्रिंसिपल मना कर देता है। और कहता है। साल के बीच में मैं किसी को एडमिशन नहीं दे सकता हूं। तू दिग्विजय पाटील कहते हैं। अभी सिर्फ चार महीने ही गुजरे हैं। तो प्रिंसिपल कहता है। रूल्स मतलब रूल्स आपको उसको फॉलो करना ही पड़ेगा इतना बोल कर प्रिंसिपल उनको बाहर जाने का कहता है। तभी जसविंदर वरदान से कहते हैं।  बेटा तुम बाहर जाओ हम प्रिंसिपल से बात करके थोड़ी देर में थोड़ी मिलते हैं। वरदान चुपचाप वहां से चला जाता है। उसके जाने के बाद दिग्विजय पाटिल उससे कहते हैं। पहले हमारी पूरी बात तो सुन लो उसके बाद दिग्विजय पाटिल पूरी से बात बताते हैं। प्रिंसिपल यही कहता है। किसी की सिफारिश ले आओ तो मैं कुछ कर भी सकता हूं। मेरे हाथ भी बंधे हुए हैं। तभी जसविंदर दिग्विजय पाटील से कहता है। सुनील गावस्कर जी को कॉल लगाओ वही हमारा काम करवा सकते हैं। इतना सुनने के बाद दिग्विजय पाटील तुरंत ही सुनील गावस्कर को फोन लगाते हैं। और उनको वरदान की काबिलीयत के बारे में बताते हैं। और प्रिंसिपल के बारे में बताते हैं। सुनील गावस्कर कहते हैं। प्रिंसिपल से मेरी बात कराओ दिग्विजय पाटिल तुरंत ही अपना फोन प्रिंसिपल को देते हैं। सुनील गावस्कर से बात होने के बाद प्रिंसिपल कहता है। सर आप इतनी छोटी बात के लिए सुनील गावस्कर सब से बात करने की क्या जरूरत थी।  तभी दिग्विजय पाटिल कहते हैं। अगर आप चुपचाप मान जाते तो मुझे ऐसा कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ती इतना बोल कर एडमिशन का फॉर्म लेते हैं। भरकर उन्हें देते हैं। और बाहर निकल जाते हैं। बाहर बैठा वरदान कोच से पूछता है। मेरा एडमिशन हो गया तो कोच खुशी वाला चेहरा बनाकर कहते हैं। तुम्हारा एडमिशन हो गया यह सुनकर वरदान खुशी से चिल्लाकर कहता है। मैं भी स्कूल जाऊंगा।


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