भाग -2 (अमावस की रात )
भाग -2 (अमावस की रात )
तो दस्तों आप सभी ने अब तक ये पढ़ा होगा की अंधेरी काली रात मैं माधव अपने गांव से शाही पुजारी के गांव की तरफ डरते हुए किसी तरह से शाही पुजारी के गांव के बाहर सीमा तक पहुंच जाता हैं। लेकिन एक लड़की की रोने की आवाज़ सुनकर वो वही रूक जाता हैं। फिर वहां पर वो पिशाचनी आ जाती हैं और वो माधव को पकड़ कर काली पहाड़ी की तरफ ले जाती हैं।
अब आगे , माधव उपर हवा मैं चीख रहा होता हैं और पिशाचनी जोर जोर से हस्ती हुई उसे पकड़ कर ले जा रही होती हैं। शाही पुजारी जो की मंदिर के आंगन में बैठे हुए होते हैं। जब उनकी नजर माधव पर पड़ती हैं तो वो तुरंत उठ कर माधव की तरफ भागते हुए बोलते हैं।
नहीं पिशाचनी अब किसी और मासूम की बलि तुम्हे चढ़ाने नही दूंगा। अब बहुत हो गया तुम्हारा आतंक अब तुम्हे मै खत्म करके ही रहूंगा। तुम मेरे गांव की सीमा तक पहुंच गई तुम्हारी इतनी हिम्मत बढ़ गई हैं। तुमने अपना वचन तोड़ा हैं उसकी सजा अब तुम्हे भुगतनी ही होगी।
शाही पुजारी , अपनी शक्तियों से हवा मैं उड़ने लगते हैं और पिशाचनी के उपर माता काली के चरणों का सिंदूर डाल देते हैं। जिसकी वजह से माधव उसकी पकड़ से छूट कर नीचे गिरने लगता हैं। लेकिन तभी शाही पुजारी उसको पकड़ कर मंदिर ले जाते हैं।
पिशाचनी जब देखती हैं की माधव उसकी पकड़ से छूट गया हैं और वो अब मंदिर के अंदर हैं। तो उसे बहुत गुस्सा आ जाता हैं और वो गुस्से मैं जोर से चिलाते हुए बोलती हैं। शाही पंडित तुम अभी तक जिंदा हो ...? लेकिन अब जिंदा नही बचाओगे तुम भूल गए मैने तुम्हारे सामने ही पुरे राज्य वंश को खत्म किया था।
तब भी तुम मेरा कुछ नही बिगड़ पाए थे और अब भी नही कुछ बिगड़ पाओगे। इसलिए तुम्हारी भलाई इसी मैं की तुम चुप चाप मेरे सामने से हट जाओ और उस लड़के को मुझे दे दो। शाही पुजारी, हां मैं अभी भी जिंदा हूं और तब भी तुम मुझे मार नही पाई थी और अब भी तुम मेरा कुछ नही बिगाड़ पाओगी।
राज्य वंश के लोगों को तुम इसलिए खत्म कर सकी क्योंकि उस वक्त मैं अपने गुरु देव त्रिकाल के पास किसी जरूरी काम से गया हुआ था। जब तक मैं राजमहल पहुंचा बहुत देर हो चुकी थी। तुम ये मत भूलो इस बात को अब पूरे 20 साल हो चुके हैं। अब तुम मुझे हरा नही सकती क्योंकि मुझे माता काली ने स्वय अपनी सिद्धियां वरदान के रूप मैं दी हैं।
तुम भूलो मत मैने पिछली बार तुम्हारा क्या हाल किया था और तुमने मुझे क्या वचन दिया था। की तुम दुबारा कभी मेरे सामने या इस गांव के आस पास भी नही नजर आओगी। लेकिन तुमने अपना वचन तोड़ दिया हैं। इतना बोलते हैं शाही पुजारी अपनी शक्तियों से पिशाचनी को जकड़ लेते हैं।
लेकिन पिशाचनी अपनी काली शक्तियों से शाही पुजारी की कैद से छूट जाती हैं और एक साथ अपनी सभी शक्तियों से पुजारी पर हमला कर देती हैं। जिसकी वजह से पुजारी जी को संभालने का मोका नही मिलता और वो बहुत जख्मी हो जाते हैं। इससे पहले को पिशाचनी गांव मैं परवेश करे उससे पहले ही शाही पुजारी अपनी सभी शक्तियों से पूरे गांव के उपर एक त्रिसूल का कवच बना देते हैं।
फिर बोलते हैं तुम्हे क्या लगता हैं की तुमने उस दिन सभी राजवंशी को मार दिया था । ये बोल कर जोर जोर से हंसने लगते हैं लेकिन आगे कुछ नहीं बोलते ।
अब पिशाचनी को और गुस्सा आ जाता हैं और वो गुस्से मैं पागल होके शाही पुजारी के पास जाके उसकी आंखे नोच लेती हैं। उसके बाद उसका दिल निकल लेती हैं और शरीर का सारा खून चूस लेती हैं। कुछ पल मैं ही पुजारी का पूरा शरीर नीला पड़ जाता हैं और फिर पिशाचनी उसे भी जला कर भस्म कर देती हैं।
आगे की कहानी मैं हम पढ़ेंगे की अब गुस्से मैं पिशाचनी क्या करेगी कैसे गांव के उपर के कवच को तोड़ेगी। आखिर क्या हैं उस काली पहाड़ी का राज , क्यों पिशाचनी माधव को काली पहाड़ी पर लेके जा रही थी।

