Renuka Tiku

Inspirational

4.6  

Renuka Tiku

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भादुरी से बेलाघाट

भादुरी से बेलाघाट

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आज मैं आपको उस दौर की सैर कर आऊंगी जो हम अक्सर फिल्मों में या अपने घर के बड़े बुजुर्गों के मुंह से सुनते हैं। आज की 21वीं सदी में सांस लेने वाले हम सभी शायद उस दौर की कल्पना भी ना कर सकेंगे।

 

 शुभेंद्र चट्टोपाध्याय जी बांग्लादेश के भाधुरी गांव में एक धनी एवं समृद्ध जमींदार थे। गांव में काफी प्रतिष्ठा थी उनकी, अपने पद या ओहदे की वजह से नहीं, बल्कि अपनी सूझबूझ और लोगों को सही परामर्श देने के लिए। गांव वाले भी उन्हें अपना देवता ही मानते थे। उनका दिल और धन कोष दोनों ही बड़े थे और किसी की सहायता से कभी हाथ ना खींचते।

 शुभेंद्र बाबूजी के दो जुड़वा पुत्र अभय और अभीक और छोटी पुत्री बारुणी थी। जात से सुरेंद्र बाबू एक कट्टर ब्राह्मण थे। बारुणी को सभी प्यार से हसिया पुकारते। अभय और अभीक पास के गांव में पढ़ने जाते और बारुणी घर में ही मां और बाबा का भरपूर प्यार बटोरती।। बारुणी का रंग केसर और दूध के मिश्रण सा था। आंखें बड़ी बड़ी और शरारत से भरी हुई। एक और खासियत थी बारुणी में -वह हंसने में कभी कंजूसी ना करती। इतना खिलखिला कर हंसती कि सामने बैठा हुआ व्यक्ति अपनी हंसी रोक ही न पाता। भाई तो तभी प्यार से उसे हसिया बुलाते।

 कहानी क्योंकि करीब 19वी सदी के दौर की है तो उस समय विवाह की उम्र भी यही 11 या 12 साल रहा करती थी। बारुणी शायद 11 साल की रही होगी तो शुभेंद्र बाबू ने उसका विवाह पास के जमीदार के पुत्र महतू से कर दिया। सारा गांव आमंत्रित था। दिल खोलकर खर्चा किया शुभेंद्र बाबू ने। यह तय किया गया कि बारुणी को दो साल के बाद ही ससुराल विदा किया जाएगा।

 इस साल गांव में प्लेग एक भयंकर महामारी की तरह फैला। बहुत लोगों की जान गई । कई परिवार उजड़ गए, किसी के सर से पिता ,किसी की मां, भाई, बहन बहुत परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया। इन सब में बारुणी के ससुराल वाले भी थे। महतू और उसके पिता दोनों ही इस बीमारी के शिकार हुए और दुनिया से चल बसे।

 अब शुभेंद्रबाबू तो कट्टर ब्राह्मण थे, दिल को धक्का तो बहुत लगा परंतु अपने रूढ़िवादी विचारों का पालन करते हुए बारुणी को विधवा ठहरा कर उस पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी। बारह साल की अल्हड़ बच्ची जिसने शायद कभी महतू का चेहरा भी ना देखा था, कुछ समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो रहा है। दूसरी और अभय और अभी पिता के इस तरह के व्यवहार को अचरज से देखते और मन ही मन बहुत घुटन महसूस करते। दोनों ने मौका देखकर बाबूजी को समझाने की कोशिश करी कि बारुणी तो अभी बच्ची है, और आप उससे इतना कठोर व्यवहार क्यों कर रहे हैं?हम उसका दूसरा विवाह कर देंगे बाबू जी, कुछ समय रुक जाए, आप।

शुभेंद्र बाबू ने क्रोधित हो उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाई। कुछ समय बाद दोनों भाई आगे पढ़ने के लिए कोलकाता चले गए और यह निश्चित करके गए कि बारुणी का दूसरा विवाह तो जरूर होगा और हम ही करवाएंगे।

 करीब चार साल बाद दोनों भाई गांव लौटते हैं, और आते ही उन्होंने बारुणी के लिए वर तलाशना शुरू किया।अब क्योंकि बारुणी बेहद खूबसूरत थी और एक जमीदार की बेटी, तो एक नौजवान तुरंत शादी के लिए तैयार हो गया। शादी भी हो गई। दोनों भाई खुश थे कि आखिर उन्होंने बारुणी का विवाह कर ही दिया। अब अगले दिन का नजारा देखिए-- बारुणी दौड़कर भाइयों के पास आती है और कहती है कि दूल्हा तो उसके सारे गहने और कीमती सामान लेकर भाग गया। कह कर खुद ही जोर जोर से खिलखिला कर हंस पड़ती है। भाइयों ने जल्दी से उसका मुंह दबा कर उसे किनारे किया। 

  अब यह वृत्तांत शुभेंद्र बाबू को कौन सुनाएं ? वह तो इस प्रतीक्षा में बैठे थे कि आज सब मिलकर एक साथ भोजन करेंगे। बारुणी को कमरे से बाहर आने से मना कर दिया दोनों भाइयों ने। कुछ साहस कर शुभेंद्रबाबू के पास जाकर बोले- बाबा एक गड़बड़ हो गई है……….. और जैसे ही वाक्य खत्म हुआ, शुभेंद्रबाबू गुस्से से लाल पीले हो गए। अपने आसन से उठ खड़े हुए और चिल्ला कर बोले- ठीक से पता भी ना कर सके कि बहन किसी सौंप रहे हो? इतनी बड़ी गलती? इतनी बड़ी लापरवाही? कैसे भाई हो तुम? एक चोर के हाथ सौंपने चले थे बारुणी को। मैं मूरख तुम पर पूरी जिम्मेदारी सौंप निश्चिंत हो गया था कि दोनों भाई अब समझदार हैं और सही निर्णय कर सकते हैं। कहां है बारुणी ? दोनों भाइयों ने कमरे की तरफ इशारा किया। शुभेंद्रबाबू फिर गुस्से में बोले- दोनों भाई अभी इसी वक्त निकल जाओ घर से। सूरत मत दिखाना मुझे अपनी।

अब दोनों भाइयों ने सोचा कि बारुणी यहां रही तो फिर से कोपभवन में चली जाएगी और फिर से सब तरह की पाबंदियां लग जाएंगी उस पर। दोनों ने निश्चय किया की बारुणी को चुपके से कोलकाता साथ ले चलेंगे।       तीनो भाई बहन कोलकाता पहुंचते हैं, अब बेलाघाट जाने के लिए टैक्सी ढूंढी जाती है। एक सरदार जी बेलाघाट जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। टैक्सी में सामने लगे शीशे में कनअंखियों से बारुणी को देखते जा रहे थे सरदार जी।सोलाह सत्रहां साल की बारुणी एक जवान और बेहद खूबसूरत लड़की दिखती थी। एक बार उसे देख कोई दोबारा पीछे मुड़कर ना देखें, ऐसा हो ही नहीं सकता था।

 बेलाघाट उतर कर सरदार जी बोले -जी मैं मनजीत सिंह चड्ढा, वह सामने जो टैक्सी स्टैंड है ना जी, उसका मालिक हूं। चार टैक्सिया चलती है, जी मेरी। आज एक ड्राइवर छुट्टी पर है, तो गाड़ी मैंने ही निकाली। दोबारा सेवा का मौका लगे तो याद कीजिएगा। 

 कुछ समय बाद दोनों भाइयों की अच्छी-अच्छी नौकरियां लग गई और बारुणी तो घर पर ही रहती। अब मनजीत सिंह जी का दिल तो बारुणी पहली नजर में ही जीत चुकी थी। वह दिन में उसके घर के आस-पास दो- तीन चक्कर लगा जाता इस उम्मीद में कि शायद कभी बारुणी का चेहरा दिख जाए। यह कार्यक्रम करीब दो साल चला और कभी-कभी उसे बारुणी का चेहरा दिख भी जाता।बारुणी को भी आभास हो गया था कि यह मनजीत सिंह चड्डा जी यूं ही चक्कर नहीं लगाते, इसके पीछे क्या प्रयोजन है?

 खूब समझने लगी थी बारुणी। थोड़ी सयानी हो चली थी।

 एक दिन मनजीत सिंह चड्डा जी ने हिम्मत कर अभय से पूछ लिया कि आप अपनी बहन का ब्याह करने का नहीं सोचते? बहुत सोच विचार कर उसने मनजीत सिंह से बिना कुछ छिपाए बारुणी का सारा अतीत खोल दिया। मनजीत सिंह जी बोले- दादा मैं भी अनाथ हूं, मामा ने पाला पोसा, अब अपना कारोबार है। मैं बहुत पढ़ा लिखा तो नहीं परंतु पैसे अच्छे कमा लेता हूं। आपकी बहन से सच्चा प्यार करता हूं। खुश रखूंगा जी उसे जब तक रहूंगा। मुझे उसके अतीत से कुछ नहीं लेना देना। दोनों भाई दो साल से मनजीत सिंह चड्डा जी को देख ही रहे थे। 

मनजीत सिंह चड्डा जी एक नेक इंसान थे और अच्छे बिजनेसमैन।बारुणी का विवाह भाइयों की सहमति से मनजीत सिंह चड्डा जी के साथ हो गया। बारुणी सरदार मंजीत सिंह चड्ढा जी की धर्मपत्नी बनी। मनजीत सिंह चड्डा जी का प्रेम, धन दौलत ,ऐशो आराम, नौकर चाकर सभी कुछ बारुणी को मिला। चार अच्छे भी हुए। बहुत खुश थी बारुणी।

 कहां जमीदार शुभेंद्र बाबू जी की सोच की वह एक ब्राह्मण है, और बारुणी आजीवन विधवा की तरह रहेगी। और दूसरी ओर दोनों भाइयों किस दिन के बारुणी को खुश रहने का, खुलकर जीने का पूरा अधिकार है ।इस सोच के अंतर ने बारुणी के जीवन में एक नया सवेरा लाया। यदि सही समय पर बारुणी भाइयों के साथ भादुरी से ना निकलती तो ना ही वह बेलाघाट पहुंचती, और ना ही उसके जीवन में यह नया सवेरा आता। 


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