बेटियों के अब फ़र्ज़ भी

बेटियों के अब फ़र्ज़ भी

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मोनिका के भाई नीरज का फोन आया था। उसकी कंपनी उसे दो साल के लिए उसे एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में बाहर भेज रही थी और वो अपने साथ भाभी, बच्चों और मम्मी पापा को लेकर जाना चाह रहा था। भाभी और बच्चे तो जाने के नाम पर बड़े खुश थे पर मम्मी पापा को भैया नहीं मना पा रहे थे और इसलिए उन्हें समझाने के लिए वो मोनिका को बुला रहा था।

मोनिका ने कल आने का कह कर फोन रख दिया। सबके जाने का सुन कर खुश भी थी कि वो लोग नई जगह घूम लेंगे तो साथ ही मायका दूर चला जाएगा ये सोच कर दुखी भी थी। खैर अब कल जाकर मम्मी पापा को तैयार भी करना है सो पहले अपनी तैयारियों में लग गई। उसका मायका दूसरे शहर में था जो कि बस घंटे भर की दूरी पर था। उसके पापा रिटायर हो चुके थे।

अगले दिन सब मोनिका को देखकर बड़े खुश हुए। पापा हंसने लगे कि भाई ने वकालत के लिए बुला लिया। वो हंस कर पापा के गले लग गई। सबसे गले मिलकर और चाय नाश्ता कर भैया मुद्दे पर आ गए।

भैया ने मोनिका को कहा कि देख मोनिका मम्मी पापा साथ जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। अब तू समझा, तेरी बात नहीं टालेंगे वो। मोनिका ने अपने मम्मी पापा से पूछा कि आप लोग क्यों मना कर रहे हो। अक्सर तो साथ लेकर जाना मुश्किल होता है और इस बार जब सब सेटिंग ठीक बैठ रही है तो आप दोनों नहीं मान रहे । पहले ज़िम्मेदारियों की वज़ह से नहीं घूम पाए तो कम से कम अब तो चले ही जाओ।

इस पर मम्मी ने कहा कि चले तो जाएं पर नई जगह पर हमारा मन नहीं लगेगा। नए लोग, नई भाषा, सब कुछ नया - अं हमारी उम्र नहीं रही इतनी एडजस्टमेंट की। इस उम्र में तो अपना शहर, अपनी मिट्टी ही भाती है। तुम लोगों को ये बात अभी समझ नहीं आ रही लेकिन जब तुम हमारी उम्र में पहुंचोगे तब जड़ों से जुड़े रहने का ही मन करेगा। नया हवा पानी अब हमे रास नहीं आएगा।

इस पर मोनिका चुप हो गई क्योंकि वो उनके जज़्बात समझ रही थी लेकिन भैया दुखी हो गए और कहने लगे कि आप दोनों ये क्यों नहीं समझ रहे कि मैं आप लोगों को अकेला कैसे छोड़ कर जाऊं। मोनिका को आने में भी एक घंटा तो लग ही जाता है। ऐसे में कोई जरूरत हुई तो कैसे गुज़ारा होगा। नहीं आप को हमारे साथ चलना होगा।

मोनिका ने कहा कि मेरे पास एक तरीका है जिससे आप सब की परेशानी दूर हो जाएगी। ऐसा करती हूं कि मैं मम्मी पापा को अपने साथ ले जाती हूं। इससे आप को उनकी चिंता नहीं रहेगी और मम्मी पापा का भी मन लगा रहेगा।

पर ये क्या, मोनिका के इतना कहते ही सब उसे गुस्सा करने लगे। मम्मी पापा तो साफ कहने लगे कि हम बेटी के घर जाकर नहीं रहेंगे और भैया भाभी तो गुस्सा होकर कहने लगे कि तुझे क्या लगता है कि हम अपना फ़र्ज़ नहीं निभाना चाहते। कुछ तो सोच लिया कर बोलने से पहले।

इस पर मोनिका बोलने लगी कि मैंने ऐसा कब कहा कि आप अपना फ़र्ज़ नहीं निभा रहे। आप लेकर जाना चाह रहे हो तभी तो अपनी पैरवी के लिए मुझे बुलाया है। 

लेकिन एक बात मुझे आप सब से पूछनी है कि जब जन्म से लेकर अब तक मम्मी पापा ने आप में और मुझ में कोई फर्क नहीं रखा तो अब क्यों। क्या बेटियों के सिर्फ अधिकार ही होते हैं, फर्ज़ नहीं। मेरे लालन पालन में आप ने कहीं कोई कसर नहीं रखी, जैसा भैया को दिया वैसा ही मुझे भी। तो अब फर्ज़ निभाने के वक़्त मैं पीछे क्यों हटूं। क्यों एक पल में मुझे पराई कर देते हो।

इसी सोच के कारण तो आज भी बेटियां बोझ लगती हैं। लोग डरते हैं बेटी के होने से। हमे अगर बेटियों को आगे बढ़ाना है तो हर मायने में उन्हें बेटों के बराबर रखना होगा चाहे वो अधिकार हो या फर्ज़। जब मैं अपने ससुराल में जाकर सारे फर्ज़ निभा सकती हूं तो अपने मायके के फर्ज़ भी निभा सकती हूं। अब अगर आप सब ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं भी आगे से कोई अधिकार नहीं जताऊंगी क्योंकि अधिकार तभी लिए जाते हैं जहां फर्ज़ निभाया जाए।

बेटियों को भी अपने फर्ज़ निभाने चाहिए और इसके लिए उन्हें इजाज़त मांगने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए।


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