बेटियां की महानता कब समझोगे
बेटियां की महानता कब समझोगे


भारत के इतिहास में नारी शक्तिकरण की महिमा देखने को अनेको बार मिली रानी लक्ष्मीबाई से लेकर अनेकों नाम ऐसे है जिन्होंने समय समय पर इतिहास के पन्नों पर अपनी महानता का परिचय दिया।आज भारत के राज्य( बिहार के एक छोटे से गांव दरभंगा की एक बेटी ज्योति उम्र चौदह-पन्द्रह बर्ष की उसने कोरोना महामारी और लॉक डाउन में हरियाणा के गुरुग्राम से एक पुरानी साइकिल पर अपने बीमार पिताजी को पीछे बैठकर 1200 किलोमीटर का सफर तय करने वाली बच्ची की हिम्मत ने पूरे देश को यह समझ दिया कि बेटी की हिम्मत बेटो से कम नही है)
एक बेटी माँ- बाप के लिए कुछ भी कर सकती है। इसी भारत जैसे देश में बेटियों की भ्रूण में ही हत्या कर दी जाती है। आज भी बेटी को एक बोझ समझ जाता है। सोचो इसी भारत में अनेक महिलाओं ने अपनी महानता का परिचय दिया है। देश के बड़े-बड़े क्षेत्रों में महिलाएं अपना लोहा मनवा चुकी है और आज एक बेटी पिता को साइकिल पर बैठकर हरियाणा से बिहार ले आई। भारत आज भी पुरूष प्रधान देश समझता है जबकि भारत के इतिहास में नारीशक्ति का परिचय हमेशा देखने को मिलता है।
नारी पुरूष से अधिक शक्तिशाली है। उसकी क्षमता को नजर अंदाज किया जाता रहा है और समय समय पर वह अपनी योग्यता का परिचय देती रही है। (आज बिहार की ज्योति ने फिर हमें दिखाया उस योग्य बच्ची का धन्यवाद करना चाहिए) और बेटियों की भ्रूण हत्या करने वालों इंसानों को सोचना होगा कि बेटी की शक्ति, योग्यता ,भावना, स्नेह, ममता को अंदाजा नही किया जा सकता है।
बेटियां भी घर का चिराग है जो दो घरों में रोशनी और वंश को बढ़ने के लिए अपनी जान पर खेल कर एक नन्ही जान को जन्म देती है बेटा बेटी सब एक ही दर्द से उत्पन्न होते हैं।
वो एक बेटी ही माँ बनकर बच्चों को काबिल बनातीं है एक माँ सौ गुरु के बराबर होती है बेटी, माँ बहन ,पत्नी सब शक्ति का प्रतीक और जीवनदाता है बेटी पर हो नाज बेटी ही जीवन का आधार है जिस भारत माँ की गोद में आप जीवन का आनंद ले रहे हो वो भी एक नारी शक्ति है जो अनगिनत बच्चों को अपनी गोद में संजोकर बैठी है फिर इंसान क्यों बेटी बेटे के भेद में गुमराह हो रहा है। क्यों बेटी की काबिलियत से अंजान बना है। क्यों भ्रूण हत्या जैसा पाप कर रहा है सोचो आज भी पढ़ाई लिखाई के बाद भी लोगों की मानसिकता में बेटा और बेटी में भेद दिखाई दे रहा है दो बेटी के जन्म के बाद भी चाहत बेटे के लिए रहती है। दिल से पूछो कि आज भी घर का चिराग बेटा ही क्यों कहलाता है। बेटी क्यों नहीं।