बेरोजगारी का दंश
बेरोजगारी का दंश
आज गाँव में एक पेड़ की डाल से एक तीस साल का युवक लटका हुआ मिला। उसने फांसी लगाकर आत्महत्या की थी। जांच में पता चला कि वह कोई और नहीं बल्कि गाँव का ही बेरोजगार युवक रामसिंह था। जांच के दौरान लाश के पास से ही एक सुसाइड नोट मिला, जिस पर लिखा था-
"मैं राम सिंह अपनी मौत का जिम्मेदार खुद हूँ। मेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। परिवार में तीन बहनें और एक बूढ़ी इजा ( माँ ) है। पिताजी बचपन में ही हमारा साथ छोड़कर चल दिए, जिस कारण परिवार के भरण-पोषण की पूरी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आन पड़ी। कंकड़-पत्थर तोड़कर मैंने अपनी कालेज की पढ़ाई पूरी की और एम० ए० फर्स्ट डिवीजन में पास किया। अपनी बहनों को भी पढ़ाया-लिखाया। दो बहनें हाईस्कूल में पढ़ रही हैं और एक ने हाल ही में बी० ए० पास किया है।
एम० ए० पास करने के बाद मैंने कई बार नौकरी पाने की कोशिश की। एक बार पुलिस में भर्ती हो भी गया था, लेकिन अंतिम मेरिट में बाहर हो गया। उस साल भर्ती में खूब घूसखोरी चली थी। मेरे ही साथ का जग्गू दस लाख रूपये देकर भर्ती हुआ था। मुझसे भी कहा गया था, लेकिन मैं कहाँ से इतने रूपये दे पाता ! यह केवल मेरी ही कहानी नहीं है, बल्कि मेरे जैसे कितने ही युवक देश में भ्रष्टाचार के शिकार हो रहे हैं।
एक बार मैंने समूह 'ग' का पेपर भी दिया। सौ में से पिचासी नंबर आये मेरे, लेकिन किस्मत तो फूटी ठहरी। जनरल की कट आफ उस बार ठीक अठासी गई। दूसरी तरफ एस० सी० वाले लौंडे का चालीस नंबर में चयन हुआ ठहरा। मैं तो कह रहा हूँ इस कलयुग में जनरल कास्ट का होना भी गुनाह है।
अब एक ओर मेरी तीनों बहनें भी बड़ी हो गई हैं और मुझे इनकी शादी की फिकर होने लगी है, दूसरी तरफ महंगाई कद्दू के बेल की तरह दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है। वक्त की मार अब मैं सहन नहीं कर पा रहा हूँ और बेरोजगारी से तंग आकर अपनी जीवन-लीला समाप्त कर रहा हूँ।
- रामसिंह
एक बेरोजगार।"