बड़े घर की बहु
बड़े घर की बहु
"आप समझते क्यूँ नहीं, मुझे नहीं करनी है शैली की शादी इतने बड़े घराने में... शहर के सबसे बड़े बिल्डरों में जब श्यामल रॉय की गिनती होती है, तो फ़िर अपनी बराबरी में वो अपने बेटे का रिश्ता क्यों नहीं कर रहें हैं...! आख़िर क्या बात होगी इतने बड़े समझौते की.. क्या आपको संदेह नहीं हो रहा है..? " ये बात जबसे मास्टर जी की पत्नी सुमन ने सुनी थी तबसे ही उनके दिमाग़ में लगातार ये सवाल उठ रहे थे, कि कुछ तो गड़बड़ ज़रूर होगी...और आपने हामी क्यों भर दी !
परन्तु राधाकांत जी तो फूले नहीं समा रहे हैं..और पत्नी के सारे सवालों से बेख़बर वो बस यही कहे जा रहे हैं - " जानती हो, सुमन मैं हमेशा ही शैलजा को देखकर सोचता था.. कैसे ईश्वर ने इतनी ख़ूबसूरत बच्ची को हमारे घर में पैदा किया... ये तो बड़े घराने की रौनक मालूम होती है.. और आज मेरी मुराद पूरी भी हो गई...!"ये कहते हुए ख़ुशी से उनकी आँखें छलछला गयी.. I जिसे पोछते हुए वो बोले -" सुमन तुम चिंता मत करो, ईश्वर की यही मर्ज़ी है.. उन पर भरोसा है मुझे.. हमने किसी का बुरा नहीं किया है न, तो हमारे लिए भी उन्होंने अच्छा ही सोचा होगा..l"
और अब अपने सबसे अच्छे कपड़े निकाल वो जाने की तैयारी करने लगे.. I
और पुनः उत्साहित होकर पत्नी और शैली से बोले - "अच्छा चलो.. तैयार हो जाओ भई..! आज शाम ही हमें शैली को उसके शगुन के लिए उसके ससुराल लेकर जाना है..!"
आख़िरकार हारते हुए सुमन ने अपने सारे प्रश्नों को मानो किसी संदूक में बंद करके पति की ख़ुशी में अपने आपको शामिल कर लिया .. उसी शाम ये लोग शैली के ससुराल पहुँचे...वहाँ पर घर के सदस्यों के अलावा दो चार मित्रों का भी परिवार था, पंडित ने मंत्रोच्चार के साथ शैली को शगुन के ढेर सारे कपड़े ज़ेवर आदि भेंट किये ..! और पूजा के बाद शानदार डिनर होते ही मास्टर जी ने रॉय जी से विदा ली और अब जैसे ही उन्होंने बंगले से बाहर कदम रखा तो तत्काल उन्हें रॉय साहब के मित्र की आवाज सुनाई दी - " रॉय साहब..! शादी की इतनी जल्दी क्या थी, अच्छे रिश्ते के लिए आपको कुछ दिन और इंतज़ार कर लेना था.. भला बताइये पैर की जूती भी कहीं सिर का ताज बन सकती है..!"
ये सुनते ही रॉय साहब फुसफुसाकर बोले - " क्या बताएं मित्तल साहब बहुत कोशिशों के बाद ही हमने ये फ़ैसला लिया है, हमारे साहबजादे की आदतें तो किसी से छिपी नहीं है .. हम तो शादी इसलिये कर रहे हैं ताकि बेटा हमारा सुधर जाये... !"
तो तुरंत मित्तल साहब ने प्रतिउत्तर में कहा - " ऐसी बात है तो ठीक ही है, पर ज़रा सोचिये उस लड़की ने तो सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा कि ..!"
उनकी बातें पूरी होने के पूर्व ही वार्तालाप की मंशा तो जाहिर हो ही चुकी थी इसलिए बग़ैर एक पल की देरी किये राधा कांत जी तुरन्त बंगले की तरफ़ वापस मुड़े और अपने हाथो का सारा सामान रॉय जी के सामने रखते हुए बोले -" रॉय जी, ये आपकी भूल है कि आप मेरी बेटी को ख़रीद लेंगे.. मेरी बेटी बिकाऊ तो हरगिज़ नहीं है, और न ही हम कोई समाज- सुधारक हैं..!! और न ही इस तरह बड़े घर की बहु बनाकर हमें कोई ख़ुशी मिलेगी...! हमें तो अपनी बेटी एक समझदार इंसान से ब्याहनी है, आपके करोड़ों रुपये से नहीं ..वैसे एक बात तो आप भी जानते हैं कि मखमल में टाट का पैबंद ख़ूबसूरत कहाँ लगता है..! " मास्टर जी के ऐसा कहते ही उनकी पत्नी सुमन ने दृढ़ता से उनका हाथ थाम लिया और अब मास्टर जी को पत्नी की आँखों में किसी तरह का भय नहीं.. किसी हारी हुई जंग को जीतने की चमक दिखाई दे रही थी..!