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Archana kochar Sugandha

Inspirational

4.0  

Archana kochar Sugandha

Inspirational

बड़ा साहब

बड़ा साहब

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सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाली रुक्मणी को स्वर्ग सिधारे अभी पन्द्रह दिन ही हुए थे । उसका पति लक्ष्मण उसके जाने का गम सह नहीं पाया । रात को सोया और सुबह उठा ही नहीं । 


बड़े साहब विवेक ने जहां रुक्मणी अम्मा का संस्कार एवं कर्मकांड बड़े मनोयोग से पूरे विधि विधान के साथ किया, वहीं आज लक्ष्मण बाबा के संस्कार में भी उनकी उसी भावना को मीडिया कवरेज ने समाज सेवक की मानद उपाधि से अलंकृत किया । उस दरियादिली के मसीहा को घर-घर में मिसाल के तौर पर पेश किया जाने लगा‌ ।


हरोज मां-बाबा द्वारा सर्वेंट क्वार्टर की जलती लाइट को देखने के अभ्यस्त विवेक साहब को वहां पसरा घुप्प अंधेरा बेचैन करने लगा। अतः रोशनी करने के उद्देश्य से वहां पहुंच गए। अभी बिजली का बटन चालू ही किया था कि सर्वेंट क्वार्टर का छोटा सा कमरा रोशनी से जगमगा उठा, लेकिन उस कमरे की हर चीज उसके बड़े साहब वाले रुतबे के आगे स्वयं को बौना महस

ूस करके एक कोने में सिमट रही थी । 


वहीं दीवार पर लगी रुक्मणी और लक्ष्मण के परिवार की तस्वीर जीवंत हो उठी । आर्थिक तंगी के पश्चात भी बाबा ने उसी की जिद पर यह तस्वीर फोटोग्राफर से खिंचवाई थी ‌। छोटी दोनों बहनें अनामिका और राधिका की नाराजगी के बावजूद भी मां-बाबा ने उन्हें अपने अगल-बगल तथा पुत्र मोह वश सात साल के विवेक के सिर पर शुभाशीष वाला हाथ रखकर अपनी गोदी में बैठाया तथा पूरे परिवार ने हंसते-मुस्कुराते हुए इस तस्वीर को खिंचवाया था । जैसे ही उसने तस्वीर को हाथ से सहलाया - मां-बाबा, अनामिका, राधिका सब उसकी दरियादिली के राज से पर्दा उठाने को उतारू हो गए। 


राज को राज बनाए रखने के लिए उसने फटाफट तस्वीर को दीवार से उतारकर मां की ओढ़नी में लपेटकर लाइट ऑफ कर दी । लक्ष्मण की अस्थियों के साथ ही उस जीवंत तस्वीर को गंगा में विसर्जित करके वह महान समाज सेवक अपने काफिले के साथ आगे बढ़ गया।



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