सद्गति का मोक्ष द्वारा
सद्गति का मोक्ष द्वारा


उमा फोन पर, “रेनू, मधु के पति रजत नहीं रहे।”
क्या हुआ उन्हें ? कल ही तो मधु से बात हुई थी, कह रही थी बेटे वैभव ने स्थाई रूप से यूएसए रहने का मन बना लिया है।
उमा रात में हार्ट फेल हो गया । आज दोपहर दो बजे की संस्कार हैं।
वैभव ….?
मेरी बात सुने बिना उमा ने फोन काट दिया। चलो मिलते हैं ।
मैं झटपट तैयार होकर मधु के घर चल पड़ी । रोती-बिलखती मधु को गले लगाकर प्यार और तसल्ली के बाम से सहलाया । वह भी बिलख-बिलखकर, “वैभव ने आने की बहुत कोशिश की, लेकिन विदेश का मामला है, औपचारिकताएं पूरी करने में पांच-छह दिन लग जाएंगे । अब इतना लंबा समय डेड बॉडी को कैसे रखते। कर्मकांड दामाद अभिषेक करेगा । अब बेटा-बेटी में कोई फर्क तो रहा नहीं।”
अभिषेक भी बड़ी जिम्मेदारी से पत्नी वैशाली, मधु तथा आए हुए रिश्ते-नातेदारों को संभाल रहा था ।
राम नाम सत्य में डेड बॉडी शमशान घाट रवाना हो गई । मटका फूटने के साथ ही अभिषेक जैसे मुखाग्नि देने लगा, वैशाली वैभव तथा अन्य रिश्तेदार बड़ी देर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वैभव से जुड़ने का प्रयत्न करते रहें, लेकिन नेट की समस्या के कारण संभव नहीं हो पाया।
वैभव की अलख जोत जलाने के लिए मधु ने तीन-तीन बेटियों की कोख बली दें दी थी । हम सहकर्मियों के समझाने पर कि, “आजकल बेटे और बेटियों में कोई फर्क तो रहा नहीं ।”
वह हमेशा यही दलील देती कि “बेटे के कर्मकांड के बिना मुझे तथा रजत को सद्गति का मोक्ष द्वारा कैसे प्राप्त होगा।”
वहीं वैभव जीते जी स्वर्ग की जन्नत का आभास नहीं करवा सका और मरने के बाद विदेशी औपचारिकताएं तथा नेट धोखा दे गया।