बचपन का प्यार
बचपन का प्यार
दिल्ली की मेट्रो स्टेशन पे अपनी मैट्रो का इंतज़ार करते हुए एक चेहरा नजर आया । कुछ जाना पहचाना सा था,, कही देखा देखा सा लग रहा है । बिल्कुल उसकी तरह , हा बिल्कुल उसी की तरह ही तो चेहरे पे मासूमियत थी जो पहले थी ।
फर्स्ट क्लास का वो मासूम सा चेहरा जो पहली बार हमारी क्लास में दाख़िल हुआ था , गुलाबी से गाल , गुलाब की पंखुड़ी से छोटे और प्यारे से होठ , बड़ी बड़ी गहरी काली आंसुओं से डबडबाई आंखें , देख कर ऐसा लगा जैसे किसी परी को देख रहा हूं।
पर आंसू ,,,,, उसकी खूबसूरती में कुछ इस तरह खोया की उसकी आंखों के आंसू देख कर भी नहीं देख पाया ।
पर जब पीछे बैठे दोस्तों ने मजाक उड़ाया तो होश में आया कि वो तो रो रही थी बस आंखों में ही ।
शायद इस स्कूल में पहला दिन था उसका तभी ।
खैर समय ने अपनी रफ्तार पकड़ी हम फर्स्ट क्लास से फिफ्थ क्लास तक पहुंच चुके थे । वो अभी भी क्लास में कम ही बोलती थी बस काम की बात ,,, मै उसके पीछे वाली सीट पे बैठता था और हमेशा उसी पे नजर रहती और उसकी नजर किताबों पे ।
फर्स्ट क्लास से लेकर फिफ्थ क्लास तक हर साल क्लास में फर्स्ट आने का मेडल हासिल कर चुकी थी ,, ना जाने इतने मैडल लेके क्या करेगी ?
खैर मैडल तो मेरे पास भी कम ना थे ,,, डाट खाने के मैडल ,,,,,, उसके मैडल से तुलना की जाए तो ज्यादा ही होंगे मेरे पास । क्लास में बस पास हो जाता था । हा गेम्स में बहुत अच्छा था मैं,, उसमें ट्रॉफियां जरूर मिली थी ।
उसके पास से हमेशा एक अपने पन की महक आती थी ,, अपने पन की महक।
आज भी सामने खड़ी उस लड़की से अपनेपन का वही अहसास हो रहा था ।
मन किया जाके एक बार पूछ ही लेता हूं क्या होगा ज्यादा से ज्यादा नहीं होगी तो चार गालियां ही तो देगी ,, सुन लूंगा।
दो कदम आगे बढ़ने ही वाला था,, कि एक दम ठिठक गया । कही वो ना हुई तो और पता नहीं क्या सोचेगी मेरे बारे में , और अगर चिल्ला दी तो पास खड़े लोग बहुत पीटेंगे मुझे ।
पर वो अपनेपन का अहसास मुझे बार बार कहता कि ये वही है । कैसे भूल सकता हूं वो अपने पन की महक जब मां ने मुझे लंच में मैगी दी थी और उस टाइम मैगी लेके जाना बहुत बड़ी बात थी अमीरों वाली फीलिंग आ रही थी,, क्योंकि ज्यादातर सब अचार और पराठा ही लाते थे। सारे दोस्त लंच के टाइम तक मजाक उड़ाते रहे की मैं लंच में केंचुए लाया हूं ,, और जैसे ही मैं हैंडवाश के लिए गया सारे दोस्तों ने मिल के पूरी मैगी साफ कर दी ।
पता होता तो लंच का डब्बा साथ लेके जाता ,, सुबह से सब केंचुए का मजाक बना रहे थे तो लगा नहीं खायेंगे ,, पर उन सब ने तो एक केंचुआ मतलब मैगी का एक बाइट तक नहीं छोड़ा ।
अब तो भूखा सा मै चुपचाप अपनी बेंच पे बैठा था कि सामने से वो आकर मेरी साथ वाली बेंच पे बैठ गई और अपना लंच बॉक्स खोल कर मेरे आगे सरका दी।
कचौड़ी की खुशबू ने मेरी भूख और जगा दी पर मैंने औपचारिकता वश मना कर दिया।
उसने मेरा लंच दोस्तों के द्वारा खत्म करना देख लिया था इसीलिए उसने दोबारा फिर से एक प्यारी सी मुस्कान के साथ कचौड़ी खाने का आग्रह किया ।
वो स्वाद मै कभी भूल नहीं सकता ,, उसके खाने में जो अपनापन लगा शायद यही अपनापन मुझे उसकी ओर और भी ज्यादा खींच ले गया ।
अगले दिन प्रेयर के समय मां सरस्वती से विद्या के वरदान की जगह उसे ही मांग लिया ।
पर शायद सरस्वती मां कुछ नाराज हो गई इस बात से और उन्होंने मुझे उससे दूर कर दिया ।
कुछ समय बाद पता चला कि उसने बड़े और अच्छे स्कूल का एंट्रेंस क्वालीफाई कर लिया है , और अब नेक्स्ट ईयर वही पढ़ेगी।
कसम से उस दिन पढ़ाई का महत्व समझ आया क्योंकि उस स्कूल का एंट्रेंस निकाल पाना मेरे बस की बात नहीं थी ।
और हम बिछड़ गए ,, पर दिल से ना बिछड़ सकी वो , उसका वो अपनापन और किसी में आज तक नजर ना आया ।
आज इतने सालों बाद सामने खड़ी थी शायद वही है चेहरा तो उसी से मिलता है । चेहरे से ज्यादा मेरा दिल कह रहा था कि ये वही है ।
अब कुछ भी हो एक बार जाके बात तो करनी ही पड़ेगी और अगर वो ना हुई तो सारी बोलकर माफी मांग लूंगा सोच आगे ही बढ़ा था कि मैट्रो धड़धड़ाते हुए प्लेटफार्म पे आ गई और आने जाने वाले की भीड़ में वो एक बार फिर से खो गई ।
काफी मशक्कत के बाद भी वो कही नजर नहीं आई ,, ऑफिस का समय भी हो रहा था तो मैं भी आशा छोड़ मैट्रो पकड़ ऑफिस पहुंच गया ।
आज काम में ज्यादा मन भी नहीं लग रहा था । थोड़ी देर में बॉस की आवाज सुनाई दी ,,, हेलो एवरीवन ,,,, आज मैं आप सब को ! हमारी टीम की नई हेड ऑफ द डिपार्टमेंट और एच आर मिस निकिता भारद्वाज से ,, इन्होंने आज ही ज्वाइन किया है और इसके पहले हमारी दूसरी कंपनी में थी । आप सब से उम्मीद है कि आप इन्हें फॉलो करेंगे।
मिस निकिता भारद्वाज ,,,, नाम सुनते ही नजरे झट से उस तरफ गई , अरे! ये तो वही है जो मैट्रो स्टेशन पे मिली थी ।
"ओह ! तो ये निकिता ही थी और मैं अपना सारा टाइम कन्फ्यूजन में वेस्ट करता रहा ।"
पर अब क्या ,, ये हमारी नई बॉस के रूप में हाजिर हुई है अब तो अपना कोई चांस नहीं ,, स्कूल दिनों में भी दिल की बात ना कह पाया और अब तो कहने का सवाल ही नहीं उठता ।
लंच टाइम में कैंटीन में बैठा आज का दिन सोच रहा था कि क्या ऑर्डर करूँ क्योंकि यहां तो मां लंच बना के नहीं भेज सकती दूसरे शहर में । तो बस टिफिन सर्विस या कैंटीन का ही सहारा था हा कभी कभी मैगी बना के खुद खा लेता।
अभी बैठे कुछ देर ही हुई थी कि फिर से उसी तरह के खाने की खुशबू फिर से आई। पीछे पलट के देखा तो निकिता लंच बॉक्स लिए पीछे ही खड़ी थी ।

