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Divya Pal

Inspirational

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सामाजिक विषमताएं

सामाजिक विषमताएं

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सुबह सुबह बेटे को स्कूल बस में बैठाने के बाद कुछ समय के लिए वही पास के पार्क में वॉकिंग के लिए निकल गई ।

कुछ देर टहलने के बाद जब घर की तरफ वापसी की तो पार्क के एक्जिट गेट के पास पड़ी बेंच पे चार महिलाएं बैठी दिख गई जिसमें दो तो मेरे घर के पास में पड़ोस की थी।

उनकी एक जुट निष्ठा पूर्वक बात करने के अंदाज से लगा कि शायद कोई बहुत गंभीर मुद्दा है । मुझे भी कुछ आशंकाओं ने घेर लिया ,," क्या हुआ कही कुछ हो तो नहीं गया सोसाइटी में " सोच मैं उनकी तरफ बढ़ गई ।


"Good morning आंटी जी " मैने उनकी बातों के लय में खलल डालते हुए बोला ।


आंटी जी ने अपनी बात रोकर मेरी तरफ घूर के देखा- "अरे divya beta Good morning" 

पास बैठी दो और महिलाओं से मेरा परिचय कराती हुई बोली - बहुत प्यारी बेटी है।

खैर मैं भी बैठ गई और सुनने लगी आखिर किस मुद्दे पे गंभीर चर्चा हो रही थी।

चर्चा का विषय आंटी जी की परिवार की एक बहू थी,, जिसने दो साल अपने सास ससुर की सेवा कर अब अपने पति के साथ दूसरे शहर चली गई।


"क्या करता है उसका पति?" गुट की एक आंटी जी ने सवाल दागा।

"एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता है ,, घर वालों को बोलकर बहू ले गया कि सुबह जल्दी निकलना होता है तो खाने में दिक्कत होती है ।" 
 

बात सुन दूसरी आंटी बोल पड़ी - "हा शादी से पहले कभी खाने की दिक्कत ना हुई होगी पर शादी होते ही होने लगी ।"

उनकी बात पर सभी ने अपनी सहमति जता दी। " सही कह रही हो।" 

"अब बुढ़ापे में सास ससुर की सेवा करनी चाहिए तो जाके वहां बैठ गई ।"

एक से बढ़कर एक ताने कसे जा रहे थे ,, उस बेचारी बहू के लिए।

"आंटी जी आपकी बहन की बेटी की भी तो शादी हुई है अभी दो तीन महीने पहले,, कैसी रही शादी?" 

मैने उन सबकी बातों के बीच एक नया टॉपिक छेड़ दिया। 

" अरे! वो तो बहुत खुश हैं,, और शादी भी बहुत अच्छी हुई, बहुत कुछ लाए थे ससुराल वाले।" आंटी जी खुश होकर बताने लगी।

अच्छा!!

"जेवर में तो कोई चीज नहीं छोड़ी सब लाए थे बिन्नी के ससुराल वाले और कपड़े वो तो एक एक साड़ी पूरे आठ हजार से पंद्रह हजार तक की थी। सच में बहुत भाग्य वाली है हमारी बिन्नी।"

उनकी बातें सुन सभी बहुत खुश हुई।

"कहां है आजकल?" एक पास बैठी दूसरी आंटी ने पूछा।

"अरे वो तो नोएडा में है शादी की चौथी चलते ही दामाद जी के साथ चली गई थी। और यहां करती भी क्या उसके सास ससुर तो बस किचन में ही लगाए रखते।" 

"हा बिल्कुल सही कहा आपने।" सबने एक साथ फिर सहमति जताई।


एक पल को वो खामोश हो गई।
"चलती हू आंटी जी घर पे मां, पापा नाश्ते का इंतज़ार कर रहे होगे" बोल अब मैने हाथ जोड़ प्रणाम कर वहां से निकल ली।

चलते हुए मन में एक ही बात आई 

"वाह रे ये सामाजिक विषमताएं।"

एक बात अच्छे से जानती थी कि अब उनका अगला टॉपिक मै ही होंगी।



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