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Divya Pal

Inspirational

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दो बातें

दो बातें

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मैं स्टेशन पे बैठी अपनी ट्रेन का इंतजार कर रही थी दिल्ली तक जाने वाली शताब्दी ट्रेन को अभी आने में आधा घंटा था । 

घर से थोड़ा जल्दी ही निकली थी ताकि रास्ते के ट्रैफिक की वजह से देर न हो पर समय से आधे घंटे पहले ही पहुंच गई ।


वेटिंग रूम में वेट करते हुए एक पत्रिका निकाल कर पढ़ने लगी कि तभी कुछ देर में एक लगभग पैसठ साल की महिला मेरे बगल वाली सीट पे आकर बैठ गई ,, मैने पत्रिका से नजर हटा हल्की सी नजर से उनकी तरफ देखा ! अरे ये तो मधुमिता भार्गव जी है हमारे घर से तीन घर छोड़कर रहती है ,, मैने औपचारिकता पूर्ण हल्की स्माइल के साथ उनका अभिवादन किया ,, " नमस्कार आंटी जी " आप यहां , कहीं जा रही है क्या ? ।


"अरे नमस्कार बेटा जी , हाँ स्वीडन चेतन के पास कल की फ्लाइट है दिल्ली से "उन्होंने आगे बताया । 


अच्छा जी , मैंने एक और स्माइल के साथ बोला ।


मधुमिता आंटी मेरे घर से तीन घर छोड़कर रहती है उनकी एक बेटी नमिता और एक बेटा चेतन है । चेतन अपनी वाइफ के साथ स्वीडन में है और बेटी बंगलौर।


अंकल जी को गुजरे हुए दो साल हो गए तब से भार्गव आंटी अकेली ही रहती है अपने घर में ।


कई बार लोगों से सुना की वो अकेली ही रहती है अपने घर पे इस उम्र में उन्हें अपने बेटे के पास चले जाना चाहिए 


बच्चों के होते हुए भी उन्हें अपना बाकी का जीवन अकेले रह के गुजरना पड़ रहा है।


मेरे मन में भी कई तरह के खयाल थे कि हो सकता है उनकी अपने बेटे या बहु से कम बनती हो ! पर उनका बेटा ऐसा तो नहीं है मैं मिली हूं उनसे स्वभाव के तो अच्छे है,, तो फिर क्या वजह हो सकती है कि आंटी जी अकेली ही रहती है यहां ?


साल में दो एक बार लगभग तीन से चार महीने के लिए आते ही है वो इंडिया ,, और तीन से चार महीनों के लिए आंटी जी भी तो चली जाती है अपने बेटे के पास ।


खैर जो भी है जरूरी तो नहीं जो लोग कहते हो वही सच हो ।


कुछ ही देर में ट्रेन भी प्लेटफार्म पे आ गई हम दोनों ही अपना अपना समान लेके चल दिए ट्रेन की तरफ,, सामानों में मेरे पास ही बड़ा सा ट्रॉली बैग था उनके पास तो एक छोटा सा बैग था जिसमे बहुत थोड़ा सा समान होगा ।


मैंने उनसे उनका बैग भी संभालने के लिए मांगा तो उन्होंने मना करते हुए कहा , नहीं बच्चे मैं अपना काम खुद करती हु आप परेशान मत हो। और अपना बैग लेके चल पड़ी ।


किस्मत से हमारी सीट भी साथ ही थी शायद हम दोनो ने एक ही दिन रिजर्वेशन कराया होगा ।


ट्रेन में जब हम सही से बैठ गए तो कुछ देर के बाद मैंने कौतूहल वश पूछ ही लिया , "आंटी जी आप बाहर जा रही है पर आपके पास सामान तो बहुत थोड़ा सा ही है मेरा मतलब कपड़े ,"! 


मेरी बात पे हंसते हुए बोली हा असल में मैं अपने लिए कपड़े तो लेकर ही नहीं जा रही इस बैग में तो बच्चो के जरूरत का थोड़ा सा समान है जो वहा जल्दी नहीं मिलता । और रही बात मेरे कपड़े तो वो तो चेतन खुद ही मना कर देता है बोलता है कुछ मत लेके आओ मैं यही खरीद दूंगा आपको ।


उनकी बात सुन खुशी हुई मुझे की अपनी मां के लिए इतना सोचते है , पर आप चाहे तो उन्हीं के पास रह सकती है मैंने देर न करते हुए अगला सवाल कर दिया , ?


हा बेटा वो खुद भी बुलाता है मुझे पर मैं खुद ही नहीं जाती ,  


पर क्यू? मेरा अगला सवाल था 


उन्होंने बताना शुरू किया , क्योंकि अभी मेरे हाथ पैर चल रहे है मैं खुद के लिए कर सकती हु तो अभी से मैं किसी पे क्यों निर्भर हो जाऊ  

 वो वहां एक पति पत्नि के रूप में अपना जीवन जी रहे है अभी आजादी है उनके पास मेरे जाते ही वो न चाहते हुए भी एक जिम्मेदारी में बंध जाएंगे 

और अभी से क्यू उन्हें इतनी जिम्मेदारियो में डालना , दोनो अभी अपने लाइफ में फोकस कर रहे है अपना भविष्य देख रहे है मेरी तरफ से निश्चिंत है ।


मुझे उनकी सोच थोड़ी आश्चर्य चकित करने वाली लगी। 

सोचा लगभग सभी लोग यही सोचते है कि बहु घर मे आ गई है तो अब सारी जिम्मेदारी उसकी हो गई और खुद निश्चिंत हो जाते है पर इन्होंने तो उन्हे ही सारी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया है। 


मेरी मन की बात और चेहरे की रेखाये शायद पढ़ ली उन्होंने! मेरे हाथ को अपने हाथ में लेते हुए बड़े प्यार से बोली। 


बेटा मैं समझ रही हुँ आप क्या सोच रहे हो। 


जब एक बेटी बहु के रूप मे हमारे घर आती है तो एक दम से वो हमारे घर में एडजस्ट नहीं हो पाती और फिर आज के समय मे हर लड़की पढ़ी लिखी होती है आखिर उनके माता पिता ने भी पैसा लगाया है उनकी पढ़ाई में! और फिर उसके अपने सपने और लक्ष्य होते है! 


अब अगर ऐसे में हम उन्हें सारी जिम्मेदारी पकड़ा देंगे और उन्हें उनके ही सपनों को खतम करने को बोलेंगे तो क्या वो आगे चलकर हमारी इज़्ज़त करेगी । 

नहीं आज अगर हम उनके साथ खड़े है तो जब कल जरूरत होगी तो वो बिना किसी सोच के दिल से हमारे लिए खड़ी होगी आकर। 


उनकी बातें सुन कहीं न कही उनपे गर्व हो रहा था कि काश सभी की सोच उनके जैसी हो जाती तो कितना अच्छा होता। 


उनसे बात करते करते कब हम दिल्ली पहुँच गए पता ही नही चला। 


दिल्ली स्टेशन पहुँच वो एरपोर्ट की ओर जाने के लिए मुड़ गई और मै मेट्रो की तरफ! पर जाते हुए भी उनपे एक गर्व महसूस हो रहा था । 



कहते है जैसे झगड़े मे ताली एक हाथ से नही बजती वैसे ही एक दूसरे को समझने मे भी ताली एक हाथ से नही बजती। 






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