Priyanka Gupta

Inspirational

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Priyanka Gupta

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बच्चा स्वस्थ होना चाहिए (बच्चे -14)

बच्चा स्वस्थ होना चाहिए (बच्चे -14)

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"फाल्गुनी ,जल्दी -जल्दी हाथ चलाओ। दीदी किसी भी वक़्त पहुँच सकती हैं। दीदी समय की बड़ी पाबन्द हैं ;उन्हें हर चीज़ समय पर चाहिए। अनुशासन पसंद दीदी खुद भी हर कार्य बड़े व्यवस्थित ढंग से करती है ।दीदी के घर पर हर चीज़ इतनी व्यवस्थित रहती है कि रात के अँधेरे में कोई सुई भी माँग ले तो तुरंत मिल जायेगी । ",दक्षा ने अपनी एकलौती बहू के काम पर सरसरी नज़र डालते हुए कहा। 

आज दक्षा बहुत ही उत्साहित थी । हो भी क्यों न ;उसकी बड़ी बहन जागृति जो आने वाली थी। जागृति ,फाल्गुनी और समर की शादीमें अपनी व्यस्तताओं के चलते नहीं आ पायी थी ;तो अब फुर्सत से कुछ दिन के लिए अपनी छोटी बहिन के पास रहने आ रही थी ताकि घर में आये नए मेहमान फाल्गुनी के साथ भी कुछ समय बिता सके ।जागृति को अपनी छोटी बहिन दक्षा और उसके बच्चों से विशेष स्नेह रहा है । जागृति हाल ही प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हुई थी।फाल्गुनी गर्भवती थी ;इसीलिए दक्षा अपनी दीदी के सेवानिवृत्ति के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में जा नहीं सकी थी। 

फाल्गुनी का चौथा महीना चल रहा था।शुरू के कुछ महीने तो दक्षा ने फाल्गुनी को भारी कामों से दूर रखा और उसका विशेष ध्यान रखा ,लेकिन अब वह फाल्गुनी से घर के सारे काम करवाने लगी थी। फाल्गुनी काफी कमजोर हो चली थी ;उसका चेहरा निस्तेज हो चला था ;लेकिन दक्षा उसे हमेशा काम में लगाए रखती थी। दक्षा का विश्वास था कि ,"गर्भवती स्त्री को बहुत काम करना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान आलस तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। इससे एक तो डिलीवरी नार्मल होती है और दूसरा बच्चा भी काफी एक्टिव रहता है। अगर माँ आलस्य करेगी तो बच्चा भी आलसी होगा । "

अगर कभी समर ,फाल्गुनी की हालत देखते हुए कहता कि ,"मम्मी ,आपकी बहू को आराम की जरूरत है। सबका शरीर एक सा नहीं होता।सब पर एक से नियम लागू नहीं होते । "

तब दक्षा कहती ,"तू चुप रह। तुझे क्या पता ?तेरी माँ ने भी बच्चे जने हैं। हवा की तेज़ी से काम करती थी। बिना हॉस्पिटल गए ;बिना चीरा लगे ही मेरे तो तीनों बच्चे आराम से हो गए। इसके भले के लिए ही सब कर रही हूँ। "

समर फिर चुप्पी लगा जाता था। डॉक्टर ने भी फाल्गुनी की हालत देखते हुए एक बार दक्षा को समझाते हुए कहा था कि ,"आंटी,आपकी बहू काफी कमजोर है। इसे ज्यादा से ज्यादा आराम करवाओ।हल्का -फुल्का काम कर ले ;ज्यादा तनाव न ले । अगर यही हाल रहा तो बच्चे की ग्रोथ पर भी असर पड़ेगा । "

"जी ,डॉक्टर। ",दक्षा ने बहस न करने की गरज से डॉक्टर की बात से सहमति दिखाई । कई बार बहस न करना मानसिक शांति के लिए भी अच्छा होता है और जो व्यक्ति अपने क्षेत्र में पारंगत है ;उससे तो बहस करने से बचने में ही भलाई है ।

लेकिन डॉक्टर के चैम्बर से बाहर निकलते ही दक्षा फाल्गुनी को समझाने लग गयी थी कि ,"इन डॉक्टर को कुछ नहीं पता। इनके सब पैसे लूटने के चोंचले हैं। तुम आजकल की लड़कियों को ही बार -बार डॉक्टर के पास जाने की लगती है। हम तो एक बार भी डॉक्टर के पास नहीं गए थेये मुये डॉक्टर तो चाहते ही हैं कि हर औरत का पेट चिरे ।पेट चिरंगे ,तब ही तो ज्यादा पैसे मिलेंगे । "

"लेकिन मम्मी जी आजकल तो सरकार भी यही कहती है कि संस्थागत डिलीवरी करवाओ। गर्भावस्था में अच्छे से ध्यान रखो। ",फाल्गुनी ने धीरे से कहा। 

"फाल्गुनी तुम अभी बच्ची हो ;कुछ नहीं समझती। आजकल की डॉक्टर पूरे नौ महीने बेडरेस्ट करवाती हैं और उसके बाद भी पेट चीरने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगाती। वो तो चाहती ही नहीं कि डिलीवरी नॉर्मल हो। ",दक्षा ने समझाया। 

"गलत कह रही हूँ तो तुम्हारी माँ से पूछ लेना। तुम तो 5 भाई -बहिन हो। ",दक्षा ने फिर कहा। 

"जी ,मम्मी जी। ",फाल्गुनी अपनी मजबूरी अच्छे से जानती थी ;इसीलिए खुलकर अपनी सास दक्षा की बात का विरोध नहीं कर पाती थी। फाल्गुनी 4 बहिनें और एक भाई था। फाल्गुनी सबसे बड़ी बहिन थी ;अभी तो उसके बाद उसके चारों भाई -बहिनों की पढ़ाई -लिखाई और शादी -ब्याह बाकी थे। 

फाल्गुनी के मायके की आर्थिक स्थिति भी उसके ससुराल से कमजोर थी ।इसीलिए फाल्गुनी कई बार चाहकर भी दक्षा की गलत बातों का पुरजोर विरोध नहीं कर पाती थी । कुछ लोग तो अपने से कमजोर परिवार की बेटी को बहू ही इसीलिए बनाते हैं ताकि बहू पर अपनी धौंस जमा सके । 

वैसे फाल्गुनी जब से शादी होकर आयी थी ;उसे अपने ससुराल में कोई परेशानी नहीं थी। समर जैसा प्यार करने वाला और ध्यान रखने वाला पति था ।वैसे दक्षा भी एक अच्छी सास थी ;लेकिन बहू की डिलीवरी नॉर्मल ही हो ;इसका उन पर न जाने एक जुनून सा ही सवार हो गया था। 

पूरे घर भर के कपड़े वाशिंग मशीन में धुलते ;लेकिन फाल्गुनी को अपने और समर के कपड़े हाथों से धोने पड़ते थे।शैलजा का सख्त आदेश था कि,"फाल्गुनी कपड़े हाथों से धोओ और वह भी उकड़ू बैठकर। "यहाँ तक कि फाल्गुनी को स्टूल या पट्टा लेने की भी इज़ाज़त नहीं थी। 

फाल्गुनी को पूरे घर का झाड़ू -पोंछा करने के लिए निर्देशित कर दिया गया था। फाल्गुनी ही झाड़ू -पोंछा करे ;इसीलिए घेरलू सहायिका कोभी कुछ दिनों के लिए हटा दिया गया था। डस्टिंग आदि तो दक्षा कर ही देती थी। 

दक्षा की बड़ी बहिन जागृति आने वाली हैं ;यह सोचकर-सोचकर तो फाल्गुनी की हालत वैसे ही पतली हो रही थी । वह सोच रही थी कि ,"जब छोटी बहिन ऐसी हैं तो बड़ी बहन तो और भी कड़क होगी। ऊपर से प्रिंसिपल और रही हैं। "

फाल्गुनी उन्हीं के लिए लंच की तैयारी कर रही थी। दक्षा ने अपनी दीदी की पसंद की सब चीज़ें बनवा ली थी। फाल्गुनी ने भरवां टमाटर,माँ की दाल ,मटर पुलाव ,बेजड़ की रोटी ,सूजी का हलवा सब तैयार कर लिया था। बस अब वह पुदीने का रायता ही बना रही थी।सलाद भी उसने काटकर रेफ्रिजरटर में रख दिया था । रायता बनाकर वह सिकंजी की तैयारी करने वाली थी। मासीजी को आते ही ,सबसे पहले सिकंजी ही तो देगी। फाल्गुनी ने सब काम समय पर निपटा लिया था । वह अब अपनी मासी सास का सामना करने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी ।बीच -बीच में बज रहा उसकी सास की डाँट का टेप रिकॉर्डर उसकी दिल की धड़कनें बढ़ा रहा था । खैर जब ओखली में सिर दे ही दिया तो मूसलों से क्या डरना ?

फाल्गुनी अभी किचेन में ही थी कि दक्षा की आवाज़ गूँज उठी ,"फाल्गुनी जल्दी आओ ,समर दीदी को लेकर आ गया है। "

दक्षा को देखते ही जागृति ने उसे गले से लगा लिया था । तब तक फाल्गुनी भी पसीने से तर-बतर किचेन से बाहर आ गयी थी। वह साड़ी के पल्लू से अपना मुँह पोंछ रही थी ; वह आगे बढ़कर मासी जी के पैर छूने लगी तो मासीजी ने कहा कि ,"बेटा ,ऐसे समय में ज्यादा झुका मत करो" और उसे गले लगा लिया था। 

"बेटा ,इस समय क्यों नहाई हो ? गर्मी में पानी भी गर्म होगा। ",फाल्गुनी के गीले कपड़ों के कारण जागृति ने शायद यह प्रश्न पूछ लिया । 

"नहीं मासी जी ,मैं तो किचेन में लंच की तैयारी कर रही थी । ",फाल्गुनी ने धीरे से कहा। 

"हाँ दीदी ;अब कौनसे नहाने का टाइम है ?सब सुबह ही नहा लेते हैं । आपकी तरह चाहे प्रिंसिपल नहीं बन पायी;लेकिन घर में आपके जैसे अनुशासन बनाकर रखती हूँ । ",दक्षा ने कहा। 

"चलो ,आओ दीदी ;थोड़ा फ्रेश हो जाओ। आपके लिए सिकंजी भी तैयार है। फिर साथ में लंच करते हैं। ",दक्षाने जागृति को गेस्ट रूम की तरफ ले जाते हुए कहा।

"जी ,मासी जी। ",फाल्गुनी ने कहा। 

जागृति को गेस्ट रूम में छोड़कर ,दक्षा बाहर आ गयी थी । दक्षा किचन की तरफ लंच की तैयारियों का अंतिम रूप से जायजा लेने के लिए बढ़ चली थी ।दक्षा लंच लगाने में फाल्गुनी की मदद करने लगी । दक्षा की मदद से फाल्गुनी ने डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया था। फाल्गुनी को अपने ससुराल की यह बात बहुत अच्छी लगती थी कि सभी लोग खाना साथ में खाते थे । दक्षा फाल्गुनी को सारी रोटियाँ एक साथ बनाने के लिए कह देती थी। उसके मायके में तो मम्मी सबसे लास्ट में खाना खाती थी। 

जागृति फ्रेश होकर गेस्ट रूम से बाहर आ गयी थी । "वाह -वाह सास -बहू मिलकर काम कर रहे हो । दक्षा चल तेरी यह बात तो अच्छी है;बहू के आने से तुने काम करना बंद नहीं किया । नहीं तो अक्सर सासें बेटे की शादी के साथ ही एकदम से इतनी बीमार हो जाती हैं कि काम करना छोड़ देती हैं । ",जागृति ने डाइनिंग टेबल पर खाना लगा रही दक्षा और फाल्गुनी को देखकर कहा । 

"अरे दीदी आओ ,पहले शिकंजी पी लेते हैं । ",दक्षा ने अपनी दीदी जागृति की बात सुनी -अनसुनी करते हुए कहा । 

सिकंजी पीने के बाद सब एक साथ खाना खाने बैठ गए थे। अपनी पसन्द की सब चीज़ें देखकर जागृति बड़ी ही खुश थी। जैसे ही दक्षा ने बताया कि ,"सब कुछ फाल्गुनी ने बनाया है। "

तब जागृति अपने हाथ में पहना हुआ सोने का कंगन निकालकर फाल्गुनी को देते हुए बोली कि ,"अरे बेटा ,यह तो मैं तुम्हारे लिए ही लायी थी ;लेकिन बातों -बातों में देना भूल गयी। सुरक्षा की दृष्टि से बैग में न रखकर हाथ में पहन लिया था।एक और बात तुम चाहे खाना बनाकर खिलाती या न खिलाती ;कंगन तो तब भी तुम्हें देती । "

जागृति फाल्गुनी की पाककला से भावविभोर थी। "वैसे दक्षा तू है तो बहुत ही किस्मत वाली ;यह हीरा तुझे कहाँ से मिल गया ?",जागृति ने कहा। 

"दीदी , आप भी। फाल्गुनी भी तो किस्मत वाली है ;जो मेरी जैसी सास मिली । ",दक्षा ने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा। 

"मज़ाक कर रही हूँ। लेकिन बहू तो तू बहुत बढ़िया ही लायी है। ",जागृति ने कहा। 

खाना -पीना हो गया था। फाल्गुनी ने सारे बर्तन भी समेट दिए थे। अब वह किचेन साफ़ कर रही थी। तब ही जागृति मासी जी किचेन में आ गयी ;उनके साथ दक्षा भी थी। मासी जी ने फाल्गुनी से कहा ,"बेटा ,जब से आयी हूँ ;देख रही हूँ, तुम काम ही कर रही हो। ऐसी हालत में इतना काम नहीं करना चाहिए। चौथे महीने में तो तुम्हारा चेहरा चमकना चाहिए था ;ऐसा निस्तेज है। ठीक से खाया - पिया करो और आराम करो। "

"जी ,मासी जी। ",फाल्गुनी ने धीरे से कहा। 

"दीदी ,कैसी बातें कर रही हो ?आराम करेगी तो डिलीवरी नॉर्मल कैसे होगी ?फिर बच्चा भी आलसी पैदा होगा। पहले के जमाने में औरतें कितना काम करती थी ;तब ही तो बिना चिरा लगाए बच्चे हो जाते थे। ",दक्षा ने कहा। 

"ओह्ह तो दक्षा तू भी उसी सोच की मारी है। पहले कितनी सारी औरतें डिलीवरी के दौरान मर भी तो जाती थी। समय से पहले ही बूढ़ी लगने लग जाती थी। ",जागृति ने कहा। 

"क्या मतलब दीदी ?",दक्षा ने पूछा। सबसे भिड़ जाने वाली दक्षा की ,अपनी दीदी के सामने आवाज़ कम ही निकलती थी । 

"देख दक्षा ,सबका अपना -अपना शरीर होता है। किसी को ज्यादा आराम चाहिए होता है और किसी को। पहले की तो बात ही मत किया कर ;पहले औरतों की फ़िक्र किसे थी। औरतों पर और उनकी सेहत पर सबसे कम पैसे खर्च किये जाते थे या यह कहूँ कि खर्च ही नहीं होते थे। ",जागृति कह रही थी। 

"चलो ,हम बाहर चलते हैं। बेचारी फाल्गुनी पसीने से तर हो रही है। बाहर चलकर बात करते हैं। ",जागृति मासी ने फाल्गुनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। 

"चलो फाल्गुनी । ",दक्षा ने कहा। 

"तुझे पता है 1990 में भारत की जो मातृत्व मृत्यु दर 556 प्रति लाख थी ;अब घटकर 112 प्रति लाख हो गयी है। विकसित देशों में तो और भी कम है। वैसे भी डिलीवरी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है ;तब शरीर में उसी अनुरूप परिवर्तन होने लग जाते हैं। ",जागृति समझाते हुए कह रही थी। 

"अच्छा दीदी। ",दक्षा ने कहा। 

"कहीं ज्यादा थकान से फाल्गुनी और उसके बच्चे पर कुछ गलत असर न पड़ जाए। डिलीवरी चाहे कैसे भी हो ;नार्मल हो या सीज़ेरियन ;फोकस इस पर कर कि बच्चा स्वस्थ हो। डॉक्टर की सभी बातें सुन और उसे मान। तू या मैं डॉक्टर नहीं है। डॉक्टर अपना काम अच्छे से करना जानते हैं। ",जागृति ने कहा। 

तब तक समर भी आ गया था। "मासी ,मैं भी तो मम्मी को यही समझा रहा था ; लेकिन यह सुनती ही नहीं हैं। ", समर ने कहा। 

"अब सुनेगी और नहीं सुने तो मैं फिर आ जाऊँगी ;इसके कान मरोड़ने। ",जागृति मासी ने हँसते हुए कहा। 

"नहीं दीदी ,अब आपको कान मरोड़ने नहीं आना पड़ेगा। ",दक्षा ने कहा। 

सब हँसने लगे थे। 


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