बैर बाँधने से पहले
बैर बाँधने से पहले
"अम्माँ, अब घर की रसोई अलग अलग कर दे, जीजी अपना अलग रसोई रांधे। हम अपनी अलग। रोज रोज की किट किट तो न रहेगी।" छोटी बहू ने सास के सिर पर तेल लगाते हुए अपनी बात रखी।
"बेटा, बड़े की तबीयत ठीक नहीं है उसे डॉ ने मिर्च मसाले वाले खाने से परहेज बताया,और बड़ी बहू भी कई दिनों से बीमार चल रही है। इन दिनों (मिनोपास) औरतों मे चिड़चिड़ा पन हो जाता है। इसलिये उसने तुमसे कुछ कह दिया होगा। ऐसे दिल पर नहीं लेते।
"बीमार है तो हम क्या करे। आज ही बोली की मैं जानबूझकर रम्मा से (खाना बनाने वाली) मसालेदार सब्जी बनवाती हूँ। मैं नहीं चाहती की बड़े भईय्या का स्वास्थ अच्छा हो। उन्होंने क्या क्या नहीं सुनाया, अब सहन नहीं होता। आप रसोई अलग कर दो बस।"
"ठीक है, तुम्हारी ही सही।"
"छोटी तुम्हें याद है। विजातीय होने के कारण इस घर मे कोई नहीं चाहता था कि तुम्हारी शादी छोटे से हो पर बड़ी बहू ज़िद पर अड़ गई। तुम और छोटे एक दूसरे को चाहते हो तो शादी यही होगी। कितने उत्साह से तुम्हारा ब्याह रचाया उसने समाज के दहेज, और विजातीय होने के तानों से तुम्हे दूर रखा। है न ?"
छोटी चुप।
"मुनिया के जन्म के समय पूरे नौ महिने डॉ ने बेड रेस्ट कहा था। तब बड़ी ने कितनी सेवा की थी तुम्हारी। की थी न ?
"हाँ।"
"और जब छोटे की कंपनी मे छंटनी हुई थी। तब साल भर घर का पूरा खर्च बड़े ने उठाया। उफ़ तक नहीं की उसने। तुम मानती हो न ये सब।"
"हाँ अम्माँ, जीजी और बड़े भईय्या ने समय समय पर हमें सहारा तो दिया।"
"मैं यही कह रही हूँ मेरी छोटी रानी, बैर बाँधने से पहिले अतीत का प्रेम झाँक लेना चाहिये। अब तुम्हारी मरजी।"